कविता झारखंड के झरिया का जर्जर विकास January 28, 2014 / January 28, 2014 | 3 Comments on झारखंड के झरिया का जर्जर विकास -ऋतु राय- झारखण्ड के झरिया का विकास एक ऐसा विकास जिसके बारे में जानकार लगा की अब लोग बड़े निष्ठुर हो गए और ऐसा विकास तो कतिपय नहीं होना चाहिए। लालच एक सीमा त्यागने के बाद ललकारती भी है। प्रकृति के दुःख को अनसुना करना खतरनाक साबित हो सकता है। इस देश के लिए […] Read more » Jharkhand poem poem on Jharia problems झारखंड के झरिया का जर्जर विकास
कविता भारत एक बड़ा बाज़ार बन गया है June 3, 2013 / June 3, 2013 | 1 Comment on भारत एक बड़ा बाज़ार बन गया है भारत एक बड़ा बाज़ार बन गया है बिकने लगा सब कुछ विदेशी हाथों का औज़ार बन गया है इंसान बिक गया, ईमान बिक गया घर में रखा साजों-सामान बिक गया विचार बिक गया समाचार बिक गया आदमी की भीतर से बाहर तक शिष्टाचार बिक गया अब खिलौनों की क्या बात करे ना रहा दम-ख़म खेल […] Read more » भारत एक बड़ा बाज़ार बन गया है