कविता मैंl वह बड़ा बेटा हूँ June 8, 2025 / June 9, 2025 | Leave a Comment ✍️ डॉ. सत्यवान सौरभ मैं वह बड़ा बेटा हूँ,जिसने हँसकर जीवन की आग पिया है।जिसने चुपचाप लुटा अपना यौवन,और घर का भाग्य सिया है। जो माँ की छाया बना रहा,पिता की लाठी बन कर चला,भाई की पढ़ाई में खो गया,बहन की शादी में गल गया। सपनों का शव ढोता रहा,अपनों का ऋण ढोता रहा।न मोल […] Read more » I am the elder son मैंl वह बड़ा बेटा हूँ
राजनीति कुदरत के सबक को कब पढ़ेगा इंसान? June 6, 2025 / June 6, 2025 | Leave a Comment पाँच साल पहले कोविड-19 लॉकडाउन ने जहां दुनिया की अर्थव्यवस्था को झकझोरा, वहीं पर्यावरण को राहत दी। वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैसों और औद्योगिक उत्सर्जन में गिरावट ने साबित किया कि प्रकृति को सुधारना संभव है। नदियाँ स्वच्छ हुईं, आसमान नीला दिखा, और हवा शुद्ध हुई। यह लेख महामारी के माध्यम से प्रकृति की चेतावनी और […] Read more » When will man learn the lesson of nature कुदरत के सबक
कविता जब आँसू अपने हो जाते हैं June 4, 2025 / June 4, 2025 | Leave a Comment डॉ सत्यवान सौरभ जीवन के इस सफ़र में,हर मोड़ पर कोई न कोई साथ छोड़ देता है,कभी उम्मीद, कभी लोग —तो कभी ख़ुद अपनी ही परछाईं पीछे रह जाती है। हर हार सिर्फ हार नहीं होती,वो एक आईना होती है —जिसमें हम देखते हैं अपना असली चेहरा,बिना मुखौटे, बिना तालियों के शोर के। जब आँखें […] Read more » When tears become your own जब आँसू अपने हो जाते हैं
कविता सांस की कीमत पूछी गई June 3, 2025 / June 3, 2025 | Leave a Comment साँस-साँस को मोहताज किया,जीवन को नीलाम किया।मासूम थी, बस एक साल की,फिर भी व्यवस्था ने इनकार किया। “वेंटिलेटर चाहिए?” — पूछा गया,“सिफ़ारिश है?” — तौल कर कहा।दोपहर से लेकर रात तलक,बच्ची की साँसों ने दस्तक दी हर पल। कभी सिस्टम की फाइल में अटकी,कभी डॉक्टरों के मुँह के फेर में भटकी।कंधे पर बैठी थी ममता […] Read more »
कविता दर्द से लड़ते चलो June 3, 2025 / June 3, 2025 | Leave a Comment (आत्महत्या जैसे विचारों से जूझते मन के लिए) ज़िंदगी जब करे सवाल,और उत्तर न मिले हर हाल,तब भी तुम थक कर बैठो नहीं,आँखों में आँसू हो, पर बहो नहीं। देखा है मैंने अस्पतालों में,साँसों को बचाने की जंग में,कोई ज़मीन बेचता है,कोई गहने गिरवी रखता है।जीवन को जीने की कीमत,हर दिन वहाँ कोई चुकाता है। […] Read more » दर्द से लड़ते चलो
लेख दोस्ती या मौत की सैर: युवाओं की असमय विदाई का बढ़ता सिलसिला June 2, 2025 / June 2, 2025 | Leave a Comment “जब यार ही यमराज बन जाएं, तो मां-बाप किस पर भरोसा करें?” – डॉ सत्यवान सौरभ हरियाणा में इन दिनों एक डरावना चलन पनपता दिख रहा है। हर हफ्ते कहीं न कहीं से यह खबर आती है कि कोई युवा दोस्तों के साथ घूमने गया और लौट कर अर्थी में आया। ये घटनाएं केवल अखबार […] Read more » Friendship or a walk of death: The increasing trend of untimely departure of youth
कविता सात सन्नाटे, एक संसार May 28, 2025 / May 28, 2025 | Leave a Comment एक घर था कभी, जहाँ हँसी भी गूंजती थी,आज वहीं शून्य की चीत्कार सुनाई देती है।सात देहें, सात कहानियाँ, सात मौन प्रश्न,और हम सब — अब भी चुप हैं… केवल देखते हैं। कहते हैं — “क्यों नहीं बताया?”पर क्या कभी हमने पूछा था — “कैसे हो?”कभी चाय पर बैठकर पूछा होतातो शायद ज़हर के प्याले […] Read more » Seven silences आत्महत्या
कविता रिश्तों की रणभूमि May 27, 2025 / May 27, 2025 | Leave a Comment लहू बहाया मैदानों में,जीत के ताज सिर पर सजाए,हर युद्ध से निकला विजेता,पर अपनों में खुद को हारता पाए। कंधों पर था भार दुनिया का,पर घर की बातों ने झुका दिया,जिसे बाहरी शोर न तोड़ सका,उसी को अपनों के मौन ने रुला दिया। सम्मान मिला दरबारों में,पर अपमान मिला दालानों में,जहां प्यार होना चाहिए था,मिला […] Read more » The Battlefield of Relationships रिश्तों की रणभूमि
कविता स्वार्थ की सिलवटें May 26, 2025 / May 26, 2025 | Leave a Comment चेहरों पर मुस्कानें हैं,पर दिलों में दूरी है।रिश्ते हैं बस नामों के,हर सूरत जरूरी है। हर एक ‘कैसे हो’ के पीछे,छुपा होता है सवाल,“तुमसे क्या हासिल होगा?”,नहीं दिखता कोई हाल। ईमान यहाँ बोली में है,नीलाम हर मज़बूरी है।जो बिक न सका आज तलक,कल उसकी मजबूरी है। धर्म, जात, सियासत सब,अब सौदों की भाषा हैं,बिकते हैं […] Read more » स्वार्थ की सिलवटें
कविता घर के भेदी May 22, 2025 / May 22, 2025 | Leave a Comment ये कौन लोग हैं जो मुल्क बेच आते हैं,चंद सिक्कों में ज़मीर सरेआम ले जाते हैं।न बम चले, न बारूद की ज़रूरत पड़ी,अब तो दुश्मन को बस एक चैट भा जाती है।जिसे पढ़ाया था कल देशभक्ति के पाठ,वो ही फाइलें अब व्हाट्सऐप पे दिखा जाती है।हमने ही अपने घर में दी थीं दीवारें,अब उन्हीं से […] Read more » home piercing घर के भेदी
कविता बिकती वफ़ादारी, लहूलुहान वतन May 20, 2025 / May 20, 2025 | Leave a Comment किसने बेची थी, ये हवाओं की खुशबू,किसने कांपती जड़ों में, जहर घोला था,किसने गिरवी रखी थी, मिट्टी की सुगंध,किसने अपने ही आंगन को, लहूलुहान बोला था। तब तलवारें चुप रहीं,घोड़ों ने रासें छोड़ दीं,दरवाजों ने रोशनी सेनज़रें मोड़ लीं। जब जयचंदों ने रिश्तों की ज़मीन बेच दी,मीर जाफरों ने गंगा की लहरें गिरवी रख दीं,तब […] Read more » बिकती वफ़ादारी लहूलुहान वतन
कविता देश की पीठ में खंजर May 18, 2025 / May 22, 2025 | Leave a Comment गद्दारों की बिसात बिछी, देश की मिट्टी रोती है,सीमा के प्रहरी चीख उठे, जब अंदर से चोट होती है।ननकाना की राहों में छुपा, विश्वास का बेईमान,पैसों की खातिर बेच दिया, अपना पावन हिंदुस्तान।मंदिर-मस्जिद की आड़ में, देशद्रोह का बीज पनपता,सोने की चिड़िया का कंठ घुटा, जब अंदर से लहू बहता। ज्योति ने छल की ज्वाला […] Read more » देश की पीठ में खंजर