राजनीति व्यंग्य व्यंग्य बाण : आगे अम्मा की मरजी October 9, 2013 | Leave a Comment पिछले दिनों कई साल बाद एक घरेलू कार्यक्रम में गांव जाने का अवसर मिला। बहुत दिन बाद गया था, अतः पुराने संबंध और यादें ताजा करने के लिए मैं कुछ दिन और रुक गया। एक दिन मैं अपने पुराने मित्र चंपकलाल के घर बैठा गप लड़ा रहा था, तभी वहां एक अधेड़ महिला प्रेस के […] Read more » व्यंग्य बाण : आगे अम्मा की मरजी
राजनीति व्यंग्य बाण : फटा पोस्टर, निकला जीरो September 30, 2013 | 2 Comments on व्यंग्य बाण : फटा पोस्टर, निकला जीरो मैं आपको पहले ही स्पष्ट कर दूं कि मुझे फिल्म देखने का शौक पिछले जन्म में ही नहीं था, फिर इस जन्म की तो बात ही क्या है ? इसलिए आप इस शीर्षक को ‘फटा पोस्टर, निकला हीरो’ का प्रचार न समझें। इसके लिए तो अमिताभ बच्चन और उनका महाकरोड़पति वाला कार्यक्रम ही बहुत है। […] Read more » निकला जीरो व्यंग्य बाण : फटा पोस्टर
राजनीति लमहों ने खता की और…. September 26, 2013 / September 26, 2013 | 1 Comment on लमहों ने खता की और…. उर्दू कवि मुजफ्फर रजमी की निम्न पंक्तियां बहुत प्रसिद्ध हैं, जिन्हें लोग बातचीत में प्रायः उद्धृत करते हैं – ये जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई।। जब-जब जम्मू-कश्मीर की वर्तमान दुर्दशा की चर्चा होगी, तब-तब इन पंक्तियों की सार्थकता दिखाई देगी। लोग इन गलतियों […] Read more » लमहों ने खता की और..
व्यंग्य व्यंग्य बाण : हम बने, तुम बने… September 12, 2013 | Leave a Comment बात बहुत पुरानी है। एक राजा की अत्यधिक विद्वान बेटी का सही नाम तो न जाने क्या था; पर लोग उसे विद्योत्तमा कहकर बुलाते थे। अपनी विद्या के गर्व से दबी राजकुमारी अपने से अधिक विद्वान युवक से ही विवाह करना चाहती थी। उसने विवाह के इच्छुक कई विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया। […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : आह प्याज, वाह प्याज August 30, 2013 / August 30, 2013 | Leave a Comment प्याज मूल रूप से भारतीय उपज है या विदेशी, इस पर शोधार्थियों को खोपड़ी लड़ाने दीजिये; पर हम तो इतना जानते हैं कि प्याज के छिलकों की तरह इसकी कहानी में बाहर से लेकर अंदर तक, और ऊपर से लेकर नीचे तक, कई रंग और आकार की परतें मौजूद हैं। जो लोग प्याज नहीं खाते, […] Read more »
कला-संस्कृति गोरक्षा की उज्जवल परम्परा August 24, 2013 | 1 Comment on गोरक्षा की उज्जवल परम्परा भारत एक धर्मप्राण देश है। भारत की आत्मा के दर्शन करने हों, तो तीर्थों और धामों में जाना होगा। गोमाता इसी धर्म का सजीव रूप है। इसलिए किसी भी काम को करते समय गोमाता के दर्शन शुभ माने जाते हैं। यदि उस समय गोमाता अपने बछड़े या बछिया के साथ अर्थात सवत्स हो, फिर तो […] Read more » गोरक्षा की उज्जवल परम्परा
राजनीति व्यंग्य व्यंग्य बाण : मनमोहन सिंह ‘मजबूर’ August 10, 2013 | 1 Comment on व्यंग्य बाण : मनमोहन सिंह ‘मजबूर’ दुनिया में गद्य और पद्य लेखन कब से शुरू हुआ, कहना कठिन है। ऋषि वाल्मीकि को आदि कवि माना जाता है; पर पहला गद्य लेखक कौन था, इसका विवरण नहीं मिलता। इन लेखकों के साथ एक बीमारी जुड़ी है। लेखन का कीड़ा काटते ही उन्हें यह ज्ञान हो जाता है कि माता-पिता ने उनका नाम […] Read more » मनमोहन सिंह ‘मजबूर’
राजनीति व्यंग्य व्यंग्य बाण : मेरी छतरी के नीचे आ जा.. July 23, 2013 / July 23, 2013 | Leave a Comment इस सृष्टि में कई तरह के जीव विद्यमान हैं। सभी को स्नेह-प्रेम, हास-परिहास और मनोरंजन की आवश्यकता होती है। पशु-पक्षी भी मस्ती में खेलते, एक-दूसरे पर कूदते और लड़ते-झगड़ते हैं। यद्यपि कथा-सम्राट प्रेमचंद ने ‘दो बैलों की कथा’ में बैल के साथ ही एक अन्य प्राणी की चर्चा की है, जो कभी नहीं हंसता, और […] Read more » मेरी छतरी के नीचे आ जा
व्यंग्य साहित्य वे देख रहे हैं June 26, 2013 | 2 Comments on वे देख रहे हैं कल शर्मा जी के घर गया, तो वहां असम के वन विभाग में कार्यरत उनके एक पुराने मित्र वर्मा जी भी मिले, जो अपने 12 वर्षीय बेटे के साथ आये हुए थे। बेटे का पूरा नाम तो मनमोहन था; पर वर्मा जी उसे मन्नू कहकर बुला रहे थे। उन्होंने बताया कि वे अपने बेटे को […] Read more » वे देख रहे हैं
व्यंग्य साहित्य भैंस की पूंछ -विजय कुमार June 11, 2013 / June 11, 2013 | 1 Comment on भैंस की पूंछ -विजय कुमार पिछले दिनों शर्मा जी के गांव में पूजा का आयोजन था। उनकी इच्छा थी कि मैं भी चलूं। यहां भी कुछ खास काम नहीं था, इसलिए उनके साथ चला गया। पूजा के बाद एक-दो दिन रुककर ग्राम्य जीवन का आनंद लिया। तीसरे दिन जब चलने लगा, तो सामने वाले घर में कुछ शोर-शराबा होता देखा। […] Read more »
व्यंग्य साहित्य सांप और सीढ़ी June 5, 2013 | Leave a Comment परसों शर्मा जी के घर गया था। वहां उनसे गपशप का सुख तो मिलता ही है, कभी-कभी शर्मा मैडम के हाथ की गरम चाय भी मिल जाती है; लेकिन परसों शर्मा मैडम घर में नहीं थीं, इसलिए चाय की इच्छा अधूरी रह गयी। तभी शर्मा जी ने बताया कि उनके पड़ोस में एक नये किरायेदार […] Read more » सांप और सीढ़ी
व्यंग्य व्यंग्य बाण : डंडा सैल May 28, 2013 / May 28, 2013 | Leave a Comment परसों शर्मा जी बहुत दिन बाद मिलने आये, तो उनकी सूजी हुई आंखों से दुख टपक रहा था। चेहरे से ऐसा लग रहा था मानो सगे पिताजी चल बसे हों। इतना परेशान तो मैंने उन्हें पिछले 25 साल में कभी नहीं देखा था। फिर आज… ? – क्या हुआ शर्मा जी, कुछ तो बताओ। बड़ों […] Read more » डंडा सैल व्यंग्य बाण : डंडा सैल