पवन शुक्ला
अयोध्या, मात्र एक नगर नहीं है; यह भारत की आत्मा, आस्था का केंद्र और सनातन संस्कृति की अविनाशी चेतना है। सदियों की प्रतीक्षा, अनगिनत बलिदानों और अटूट संकल्पों के पश्चात, जब राम जन्मभूमि पर नव-निर्मित भव्य राम मंदिर के शिखर पर केशरिया ध्वज लहराया, तो यह केवल एक कपड़े का फहराना नहीं था, बल्कि एक युग का समापन और भारत के गौरवशाली नए अध्याय का शुभारंभ था। वह क्षण जिसने न सिर्फ करोड़ों भक्तों के नेत्रों को अश्रुओं से भिगोया, बल्कि पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरो दिया।
यह विजय पताका अनादि काल से चली आ रही एक यात्रा की परिणति थी—एक ऐसी यात्रा जिसके साक्षी कई पीढ़ियाँ रहीं। राम मंदिर का संघर्ष केवल भूमि के एक टुकड़े के लिए नहीं था; यह स्वाभिमान, सांस्कृतिक पहचान और ऐतिहासिक न्याय की पुनर्स्थापना के लिए था। न्यायिक प्रक्रिया के लंबे और जटिल मार्ग से गुजरते हुए, यह सपना तब साकार हुआ जब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने आस्था और इतिहास के पक्ष में निर्णय दिया। इस निर्णय ने करोड़ों रामभक्तों की श्रद्धा को कानूनी मान्यता दी और मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
संघर्ष की गाथा और अटूट आस्था
राम नाम की शक्ति ने इस पूरे आंदोलन को ऊर्जा दी। हर रामभक्त ने इस संकल्प को अपने जीवन का हिस्सा बनाया कि “रामलला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएँगे।” इस यात्रा में त्याग और तपस्या की भावना सर्वोपरि रही। असंख्य कारसेवकों ने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। यह उनकी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही आस्था ही थी जिसने इस आंदोलन की लौ को कभी बुझने नहीं दिया।
जिस दिन मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई, वह दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया। सूर्य की पहली किरण जब अयोध्या पर पड़ी, तो उसने एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार किया। वातावरण वैदिक मंत्रों की गूंज, शंखनाद और ढोल-नगाड़ों की ध्वनि से भरा हुआ था। दूर-दूर से आए भक्त “जय श्री राम” के उद्घोष से आसमान को गुंजायमान कर रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो देवता स्वयं इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनने के लिए पृथ्वी पर उतर आए हों।
शिखर पर केशरिया ध्वज का आरोहण
प्राण प्रतिष्ठा के मुख्य अनुष्ठान समाप्त होने के बाद, वह बहुप्रतीक्षित क्षण आया जब राम मंदिर के सुवर्ण शिखर पर केशरिया ध्वज फहराया गया। जैसे ही ध्वज को ऊपर ले जाया गया, मंदिर परिसर और आसपास का पूरा क्षेत्र ‘जय श्री राम’ की एक लहर से थर्रा उठा। यह ध्वज, जिसे श्रद्धा और भक्ति से तैयार किया गया था, अब अयोध्या के आसमान की ओर मुख करके हवा में झूल रहा था।
केशरिया रंग, जिसे भगवा भी कहते हैं, हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण है। यह मात्र एक रंग नहीं, बल्कि त्याग, वैराग्य, शौर्य और ज्ञान का प्रतीक है। सूर्योदय का यह रंग अंधकार को हटाकर प्रकाश, निराशा को हटाकर आशा और अज्ञान को हटाकर ज्ञान का बोध कराता है। राम मंदिर पर फहराया गया यह ध्वज संदेश देता है कि सदियों के संघर्ष के बाद अब सत्य और धर्म की विजय हुई है। यह ध्वज रामराज्य के आदर्शों को पुनर्स्थापित करने का संकल्प है—एक ऐसा राज्य जहाँ धर्म, न्याय और नैतिकता का शासन हो।
राष्ट्रीय एकता का प्रतीक
राम मंदिर में लहराता यह केशरिया ध्वज केवल एक धार्मिक स्थल की पहचान नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक भी है। इस मंदिर के निर्माण ने देश के कोने-कोने में बसे हर भारतीय को भावनात्मक रूप से जोड़ा है, भले ही उनकी भाषा, प्रांत या उपासना पद्धति भिन्न क्यों न हो। यह सिद्ध करता है कि भारत की विविधता में भी उसकी आस्था का मूल एक ही है, और वह है राम।
यह मंदिर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनेगा। यह उन्हें सिखाएगा कि धैर्य, दृढ़ता और सामूहिक संकल्प से बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। यह उन्हें अपनी जड़ों, अपनी संस्कृति और अपने इतिहास के महत्व को समझने में मदद करेगा। राम मंदिर अब तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए एक वैश्विक आकर्षण का केंद्र होगा, जो भारतीय स्थापत्य कला, आध्यात्मिकता और मूल्यों का प्रतिनिधित्व करेगा।
राम मंदिर के शिखर पर लहराता केशरिया ध्वज न केवल अयोध्या के इतिहास में एक अध्याय की समाप्ति है, बल्कि यह एक सशक्त और समृद्ध भारत के निर्माण की उद्घोषणा भी है। यह ध्वज हमें याद दिलाता रहेगा कि हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों पर गर्व करना चाहिए और राष्ट्र निर्माण के कार्य में निरंतर संलग्न रहना चाहिए। यह केवल एक मंदिर नहीं, यह एक राष्ट्र का आत्म-सम्मान है, जो अब अनंत काल तक विश्व को अपनी भव्यता से आलोकित करता रहेगा।