राजेश कुमार पासी
टीएमसी के विधायक हुमायूं कबीर बंगाल के मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाने जा रहे हैं। ममता बनर्जी ने उनके इस कारनामे के कारण उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया है। इसके बाद हुमायूं कबीर ने ममता बनर्जी को मुस्लिम विरोधी करार दिया है। बाबरी मस्जिद के नाम पर हुमायूं खुद को मुस्लिम समाज का हीरो बनाने की कोशिश कर रहे हैं । 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद की नींव रख दी गई है और हर जुमे पर नमाज पढ़ने के लिए वहां लाखों की भीड़ इकट्ठा हो रही है। लोग अपने सिर पर मस्जिद निर्माण के लिए ईंटें उठाकर निर्माण स्थल पर आ रहे हैं। इसमें सिर्फ बंगाल के मुस्लिम शामिल नहीं हैं बल्कि दूसरे राज्यों से भी लोगों की भीड़ आ रही है। मुस्लिम समुदाय भावनात्मक रूप से इस मस्जिद से जुड़ता जा रहा है। जिस देश में 25 करोड़ मुस्लिम रहते हों, वहां मस्जिद का बनना एक सामान्य घटना है लेकिन बाबर के नाम पर एक मस्जिद का निर्माण एक असामान्य घटना है । इस मस्जिद की आड़ में हुमायूं कबीर अपना राजनीतिक कद बढ़ा रहे हैं। अचानक ही वो मुस्लिम समाज के बड़े नेता बन गए हैं। इससे उत्साहित होकर उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी का मुकाबला भाजपा के साथ-साथ ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी से भी होगा।
देखा जाए तो एसआईआर से होने वाले संभावित नुकसान से परेशान ममता बनर्जी के लिए एक नई समस्या खड़ी हो गई है। मेरा मानना है कि मामला इतना सीधा नहीं है, जितना दिखाई दे रहा है। ममता बनर्जी की राजनीति का मुख्य आधार उनका मुस्लिम वोट बैंक है. उसे इतनी आसानी से ममता बनर्जी हाथ से जाने नहीं दे सकती । सरसरी तौर पर देखा जाए तो बेशक हुमायूं कबीर मुस्लिमों के बड़े नेता दिखाई दे रहे हों लेकिन सवाल यह है कि क्या वो मुस्लिम समाज के लिए ममता बनर्जी का विकल्प बन सकते हैं। क्या सच में हुमायूं ममता बनर्जी का विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं या वो ममता बनर्जी की राजनीति के मोहरे है । सवाल यह है कि हुमायूं टीएमसी के कितने वोट अपनी संभावित पार्टी के खाते में डाल सकते हैं। मेरा मानना है कि सिर्फ एक भावनात्मक मुद्दे के सहारे ममता बनर्जी जैसी नेता को पटकनी देना संभव नहीं है। पिछले 15 साल से ममता बनर्जी के साथ मजबूती से जुड़े हुए मुस्लिम बाबरी मस्जिद के नाम पर उनको छोड़कर एक नए नेता के पीछे खड़े नहीं हो सकते।
वर्तमान राजनीति में ममता बनर्जी एक ऐसी नेता हैं जो भाजपा के लिए एक पहेली बनी हुई हैं। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और विपक्ष के अन्य नेताओं में ममता बनर्जी की राजनीतिक सूझबूझ सबसे ज्यादा है। भाजपा पूरा जोर लगाकर भी उनके खिलाफ कोई बड़ी सफलता अर्जित नहीं कर पाई है। भाजपा को जो सफलता बंगाल में हासिल हुई है, वो कांग्रेस और सीपीएम के कमजोर होने से हासिल हुई है। देखा जाए तो भाजपा ने कांग्रेस और सीपीएम को विपक्ष से हटाकर खुद को स्थापित किया है। 2026 के चुनाव में अब उसका मुकाबला सत्ता के लिए ममता बनर्जी से होने वाला है। ममता बनर्जी ने एसआईआर से होने वाले नुकसान का अंदाजा लगा लिया होगा । उनकी पूरी कोशिश होगी कि इस नुकसान की भरपाई की जाए । 15 साल से सत्ता में बैठी ममता इतनी आसानी से सत्ता हाथ से जाने नहीं देंगी, इसलिए उन्होंने अपनी चाल चलना शुरू कर दिया है। हुमायूं कबीर ममता बनर्जी के खिलाफ मैदान में उतर आए हैं और वो ओवैसी के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। सवाल यह है कि ममता बनर्जी उन्हें इतना बड़ा क्यों बनने दे रही हैं, जो उनको ही चुनौती देने लगा है। सारा पेंच यही है कि ममता बनर्जी ने हुमायूं कबीर को इतनी छूट क्यों दी कि उसने सिर्फ बंगाल ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों के मुस्लिमों को भी बाबरी मस्जिद के पक्ष में खड़ा कर लिया।
मेरा मानना है कि ममता बनर्जी की सहमति से ही सब कुछ हो रहा है। ममता बनर्जी एक ऐसी नेता हैं जिन्हें सत्ता के लिए देशहित से समझौता करने में भी गुरेज नहीं है। उनकी सरकार ने मुस्लिम वोट बैंक खड़ा करने के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंगायो की मदद की है, यह बात एसआईआर से साबित हो रही है। उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक पर कब्जा करने के लिए सीपीएम और कांग्रेस को कमजोर किया है। भाजपा समर्थक मीडिया में यह विमर्श चल रहा है कि हुमायूं कबीर टीएमसी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा सकता है जिससे सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा । बिहार में ओवैसी अपना कमाल दिखा चुके हैं, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि हुमायूं कबीर की मदद से वो ये कमाल बंगाल में भी दिखा सकते हैं। यही कारण है कि सोशल मीडिया में भाजपा समर्थक एसआईआर और मुस्लिम वोट बैंक के बंटवारे के कारण ममता बनर्जी की हार निश्चित मान कर चल रहे हैं।
ममता बनर्जी की राजनीतिक चाल को समझने के लिए हमें हुमायूं कबीर के बयानों को समझना होगा । अगर हम हुमायूं के बयानों का ध्यानपूर्वक विश्लेषण करें तो पता चलता है कि वो ममता बनर्जी को मुस्लिम विरोधी सिद्ध करने में लगा हुआ है। इसके अलावा वो ममता बनर्जी को हिंदुओं की समर्थक बता रहा है क्योंकि उसे ममता ने बाबरी मस्जिद की नींव रखने के कारण निलंबित कर दिया है। ममता बनर्जी की 15 साल की राजनीति को जानने वाला उन्हें हिन्दू विरोधी मान सकता है, लेकिन मुस्लिम विरोधी नहीं मान सकता । सवाल यही है, क्या कारण है कि मुस्लिम तुष्टिकरण नीति की पराकाष्ठा करने वाली ममता बनर्जी को उनका ही एक विधायक मुस्लिम विरोधी सिद्ध करने में लगा हुआ है। उनकी छवि के विपरीत उन्हें हिंदुओं का नेता बता रहा है। उन्हें बाबरी मस्जिद का विरोधी सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है, सच तो यह है कि अगर ममता बनर्जी बाबरी मस्जिद की विरोधी होती तो वो मस्जिद की एक ईंट भी नहीं रख सकता था। निर्माण स्थल पर करोड़ो ईंट जमा कर ली गई हैं और करोड़ों का चंदा इकट्ठा हो गया है। यह तब हो रहा है, जब ममता बनर्जी को मस्जिद का विरोधी बताया जा रहा है। क्या कोई मुस्लिम नेता यूपी में बाबरी मस्जिद के निर्माण की ऐसी कोशिश कर सकता है।
ऐसा लगता है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण एक राजनीतिक साजिश है जिससे बंगाल के हिन्दू समुदाय को बहकाया जा रहा है। बाबरी मस्जिद के निर्माण के विरोध में ममता बनर्जी के खड़े होने से हिन्दू समुदाय में एक सकारात्मक संदेश गया है। हिन्दू समाज बहुत जल्दी बहकावे में आ जाता है. इसी कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश की जा रही है। जहां तक मुस्लिम समाज की बात है, उसकी राजनीतिक समझ बिल्कुल स्पष्ट है. उसे बहकाना संभव नहीं है। 2021 के चुनाव में मुस्लिमों के धार्मिक स्थल फुरफुरा शरीफ की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट ममता बनर्जी के खिलाफ खड़ी थी लेकिन मुस्लिम समाज ने उसका साथ नहीं दिया । मुस्लिम समाज अच्छी तरह जानता है कि उसकी असली नेता ममता बनर्जी हैं. उनको छोड़ने का मतलब, भाजपा को मजबूत करना होगा। बंगाल में मुस्लिम समाज पूरी तरह से ममता बनर्जी के पीछे खड़ा है, उसके पास ममता बनर्जी के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यही कारण है कि वो अब कांग्रेस और सीपीएम को वोट नहीं देता क्योंकि उसे लगता है कि इससे वोटों की बर्बादी होती है।
ऐसा लगता है कि हुमायूं कबीर की कोशिश मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की नहीं है क्योंकि बंगाल में यह सम्भव नहीं है। उसकी कोशिश हिन्दू वोट बैंक में सेंधमारी करने की है। एसआईआर के कारण ममता बनर्जी को मुस्लिम वोट बैंक में कमी आने का अंदेशा हो गया है. वो इसकी कमी हिंदुओं के वोटों से पूरी करना चाहती हैं। बाबरी मस्जिद मामले से वो खुद को हिंदुओं के पक्ष में खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं। वो हिन्दू समाज को बताना चाहती हैं कि वो हिन्दू विरोधी नहीं हैं। मुस्लिम वोट बैंक की प्रतिक्रिया में हिंदुओं के ध्रुवीकरण को रोकने की कोशिश की जा रही है। ममता बनर्जी जानती हैं कि मुस्लिम समाज के पास उनके अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि बंगाल में वो ही एकमात्र नेता हैं जो भाजपा को सत्ता में आने से रोक सकती हैं। मुस्लिम समाज भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। हिंदुओ को यह गलतफहमी हो सकती है कि ममता बनर्जी मुस्लिम विरोधी हैं लेकिन मुस्लिमों को ऐसी गलतफहमी होना संभव नहीं है। ममता बनर्जी अभी से चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं और हुमायूं कबीर उनका ही फेंका हुआ एक पत्ता है, जिसे भाजपा लपकने की कोशिश कर सकती है। ममता बनर्जी एक ऐसी खिलाड़ी हैं, जो आखिरी बॉल फेंके जाने तक मुकाबला करेंगी । भाजपा के लिए जरूरी है कि वो उनके हर कदम पर नजर रखें। बंगाल जीतना भाजपा के लिए आसान होने वाला नहीं है। ममता बनर्जी सीधी चाल चलने के अलावा टेढ़ा चलना भी जानती हैं. उनसे मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। 2026 का बंगाल विधानसभा चुनाव पूरे देश की राजनीति बदलने वाला साबित हो सकता है।
राजेश कुमार पासी