बाबू गधाराम‌

donkeyएक गधे को मिली नौकरी,

दफ्तर के बाबू की|

सबसे अधिक कमाऊ थी जो,

वह कुर्सी काबू की|

 

काम कराने के बद्ले वे,

जमकर रिश्वत लेते|

जितना खाते उसमें से,

आधा अफसर को देते|

 

अफसर भालूराम मजे से,

सभी काम कर देता|

बाबू गधाराम था उसका,

सबसे बड़ा चहेता|

 

रोज मजे से भालूजी,

अंग्रेजी दारू पीते|

और बुलाकर गधेराम को,

देशी पकड़ा देते|

 

देशी पीकर गधेराम का,

गला हो गया भोंपू|

इस कारण अब करते रहते,

दिन भर चेंपू चेंपू|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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