बराक़ ओबामा की भारत यात्रा के आयाम

-प्रभात कुमार रॉय

भारत और अमेरिका के कूटनीति और राजनीतिक संबंध तो पूर्व प्रेसिडेंट बिल क्लिंटन के वक्‍त में ही एक नए दौर में पंहुच गए थे, जबकि शीत युद्ध की समाप्ति के पश्‍चात 1991 में भारत सोवियत समाजवादी कैंप से बाहर निकलकर फिर से अमेरिका से उसी गर्मजोशी के साथ हाथ मिला रहा था, जैसे कभी राष्‍ट्रपति जॉन एफ कनैडी के दौर में उसने अमेरिका से मिलाए थे। 1971 के बांग्‍ला देश युद्ध के पश्‍चात जो कटुता भारत-अमेरिकी संबधों में शुरू हुई थी, वह अमेरिका द्वारा कश्‍मीर के प्रश्‍न पर पाकिस्‍तान को अंध सर्मथन प्रदान करने के साथ बढती ही चली गई। परिणामस्‍वरूप भारत शनै: शनै: अमेरिका से बहुत दूर हटते हुए सोवियत सोशलिस्‍ट कैंप के अत्‍यंत निकट चला गया। 1990 में सोवियत संघ के पराभव के पश्‍चात सब जैसे कुछ बदलने लगा। भारत में मुक्‍त बाजार अर्थव्‍यवस्‍था की लहर ताकतवर हो उठी। भारत लाइसेंस राज की जकड़न से बाहर आ गया और विदेशी पूंजी निवेश की अपार संभावनाओं ने उसे अमेरिका और पश्चिम के अत्‍यंत निकट ला दिया। जब 9/11 को न्‍यूयार्क वर्ल्‍ड ट्रेड सेंटर को जे़हादी अलका़यदा ने नेस्‍तोनाबूद कर दिया, तभी अमेरिका को जे़हाद के हाथों 1988 से जख्‍़म झेलते आए भारत के दुख दर्द का ऐहसास हुआ और उसने कश्‍मीर के प्रश्‍न पर पाकिस्‍तान के अंध सर्मथन से गुरेज़ प्रारम्‍भ किया। अमेरिका ने इस बात के अहम इक़दामात भी किए कि अमेरिकी सैन्‍य और आर्थिक सहायता का इस्‍तेमाल भारत में जेहादी आतंकवाद के विस्‍तार के लिए न हो सके। इंटरनेशनल जे़हाद जैसे ताकतवर विध्‍वसंक साझा शत्रु के बरखिलाफ़ अमेरिका और भारत अब एक दूसरे के बहुत निकट आ चुके हैं और इस कूटनीतिक दोस्‍ती के उत्‍तरोतर मजबूत होते चले जाने की बेहद जरूरत भी है। इस दोस्‍ती में अगर कोई खलल है तो वह है पाकिस्‍तान, जिसका दामन किसी हाल में अमेरिका छोड़ नहीं सकता, क्‍योंकि अफ़गान जे़हादी युद्ध में पाकिस्‍तान अमेरिका का विश्‍वस्‍त रणनीतिक सहयोगी बना है। ओबामा की भारत यात्रा इसलिए भी बेहद महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि इसमें भारत- अमेरिकी आर्थिक सहयोग को बढाने के अतिरिक्‍त जे़हाद से संयुक्‍त मुकाबले के प्रश्‍न पर भी गहन चर्चा होगी। ओबामा ने बाकायदा विश्‍व रंगमंच पर स्‍वीकार किया है कि एक उभरती हुई आर्थिक ताकत भारत यकी़नन विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। वह प्रथम अमेरिकी प्रेसिडेंट हैं, जिन्‍होने राष्‍ट्र के रूप में भारत को शानदार हैसियत को कूटनीतिक स्‍वीकृति प्रदान की है।

बराक़ आबोमा जब अमेरिका के प्रेसिडेंट निवार्चित हुए तो उनके चुनाव ने अमेरिका और समूचे विश्‍व में एक नई आशा और विश्‍वास का संचार किया। जिस वक्‍त आबोमा ने अमेरिकन प्रेसिडेंट का पद संभाला था, उस वक्‍त इराक़ युद्ध और अफ़गानिस्‍तान युद्ध के साथ ही अमेरिका गहन आर्थिक मंदी की चपेट में आकर बेहद संकटग्रस्‍त था। आबोमा की जबरदस्‍त शख्सियत और उनकी थंडरिंग तकरीरों ने जटिल समस्‍याओं से जूझने और निपटने के लिए अमेरिका को एक नई प्रेरणा और उर्जा प्रदान की। बर्बादी के क़गार तक जा पंहुचे अमेरिकी ऑटो उद्योग को ओबामा ने मंदी से उबार लिया। ओबामा ने तेल को बचाने के लिए कुछ महत्‍वपूर्ण फैसले लिए। अपने चुनाव के दौरान अमेरिकी जनमानस से किए गए जोरदार वायदों को निभाने की दिशा में ओबामा ने स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के सुधार के लिए कुछ कडे़ कदम उठाए। ओबामा ने स्‍वास्‍थ्‍य योजनाओं में जेनेरिक दवाओं के उपयोग बढाने और दवा कंपनियों से सस्‍ती जेनरिक दवाओं की आपूर्ति पर बहुत जोर दिया। आबोमा की स्‍वास्‍थ्‍य सुधार योजना ने बडी़ अमेरिकी दवा कंपनियों के कैंप्स से हडकंप मचा दिया।

अमेरिकी की भयावह आर्थिक मंदी से निपटने के लिए ओबामा ने बेहद कारगर समाजवादी फार्मूले अजामाए और दिवालिया बैंकों एवं फाइनेंशियल इंस्‍टीट्यूशन को दोबारा उठ खडा़ होने के लिए विशाल धन राशि के शासकीय कोष से पैकज के तौर पर प्रदान की। ओबामा के इन तमाम आर्थिक फैसलों का दक्षिणपंथी रिपब्लिकन पार्टी के कैंप के अलावा अमेरिकी के आम लोगों ने जोरदार खैर मक़दम किया। अमेरिका की शिक्षा व्‍यवस्‍था को गुणात्‍मक तौर पर सुधारने की खातिर समाजवादी अंदाज में ध्‍यान दिया, जिसके लिए जबरदस्‍त समर्थन अमेरिकी जनमानस ने ओबामा को प्रदान किया।

संयुक्‍त राष्‍ट्र की जनरल ऐसम्‍बली को प्रथम बार संबोधित करते हुए आबोमा ने महत्‍पूर्ण कूटनीतिक कामयाबी हासिल की। ओबामा ने ईरान को प्रदान किए जाने वाले भारी भरकम पैकैज पर दोबारा से विचार करने के लिए रशिया को मना लिया। रशिया और चाइना को परमाणु अस्‍त्रों में कटौती करने के लिए भी राजी कर लिया। स्‍वयं का महात्‍मा गॉंधी का अनुयायी घोषित करते हुए संपूर्ण विश्‍व को परमाणु हथियारों से पूर्णत: मुक्‍त कराने की दिशा में आगे बढने का संकल्‍प दोहराया।

प्रेसिडेंट आबोमा ने दुनिया के सामने एक सभ्‍य, सुसस्‍ंकृत और सौहार्दपूर्ण अमेरिका की तस्‍वीर पेश करने का समुचित प्रयास किया। अपने पूववर्ती अमेरिकी प्रसिडेंट्स के एकदम विपरीत ओबामा ने अमेरिकी अंहकार का परित्‍याग करते हुए बेहद विनम्रतापूर्ण लहजा अपनाया। बेहद जटिल फिलीस्‍तीन समस्‍या पर इजराइल को अंध समर्थन देना बंद करते हुए ओबामा ने सार्वजनिक तौर पर इजराइल को समस्‍या का शांतिपूर्ण समाधान निकालने का निर्देश देकर, एक नई अमेरिकी नीति पेश की।

प्रेसिडेंट ओबामा के समक्ष सबसे बडी़ चुनौती रही है, अलकायदा के विश्‍वव्‍यापी जे़हाद से निपटना। ओबामा ने इराक के दीर्घ युद्ध के बेहद दुखद अनुभव को दृष्टिगत रखते हुए, उससे यथाशीघ्र बाहर निकलना ही श्रेयस्‍कर समझा। अपनी समस्‍त ताक़त को अफगानिस्‍तान में केंद्रित करने का समुचित प्रयास किया। इसके लिए अफ़गानिस्‍तान में अमेरिकी सैनिकों की सख्‍ंया में पचास हजार की बढोत्‍तरी अंजाम दी। भारत ने भी युद्ध में ध्‍वस्‍त अफ़गानिस्‍तान को पुर्ननिर्माण के लिए एक हजार करोड़ की धनराशि प्रदान की। अलका़यदा जे़हादियों की अफ़गा़निस्‍तान में निर्णायक पराजय में ही भारत और अमेरिका की सुरक्षा निहित है। भारत एक विश्‍वस्‍त दोस्‍त के तौर पर राष्‍ट्रपति ओबामा से यह उम्‍मीद करता रहा है कि वह अपनी कूटनीतिक ताकत का सकारात्‍मक इस्‍तेमाल करके पाकिस्‍तानी हुकूमत को विवश करे कि वह भारत के विरूद्ध आईएसआई की आतंकवादी कारगुजारियों पर कारगर रोक लगाएं। कश्‍मीर में यदि निरंतर भारतीय रक्‍त बहता रहेगा तो यही समझ आएगा कि इस कश्‍मीर प्रश्‍न पर अमेरिकी कूटनीतिक आश्‍वासन एक छलावा मात्र हैं और भारत- अमेरिकी सबंध उन ऊंचाइयों को कदाचित नहीं छू नहीं सकेगें, जिनकी उम्‍मीद की जा रही है। सोवियत रूस और भारत के संबंध इसीलिए अत्‍यंत प्रगाढ़ता के साथ बढे, क्‍योंकि कश्‍मीर के प्रश्‍न पर सोवियत रशिया ने खुलकर भारत की हिमायत की थी। कश्‍मीर का सवाल भारत के लिए जीवन मरण का प्रश्‍न रहा है और बना रहेगा। अमेरिकी राष्‍ट्रपति के दिलो दिमाग में यदि आतंकवादी जे़हाद को समूल नष्‍ट करने का संकल्‍प विद्यमान है तो उन्‍हे दुनिया के सबसे विशाल प्रजातांत्रिक देश भारत की भावनाओं को समझना ही होगा कि पाकिस्‍तान किसी तरह उसका भरासेमंद साथी सिद्ध नहीं हो सकता, क्‍योंकि वहॉं के हुक्‍मरान वहॉं की शासन व्‍यवस्‍था आज भी बाकायदा बर्बर सामंती आचरण की रहनुमा है। अमेरिकी राष्‍ट्रपति को अफ़गानिस्‍तान युद्ध की विभिषिका से निकलना है तो उनका मार्ग भारत ही प्रशस्‍त कर सकता है, पाकिस्‍तान तो कदाचित नहीं। आइए इस उम्‍मीद के साथ बराक़ आबोमा का इस्‍तक़बाल करें कि इंडियन कॉ‍न्टिनेंट में वह अपने पूववर्ती प्रेसिडेंट्स द्वारा अंजाम दी गई ऐतिहासिक गलतियों का दुरूस्‍त करने का समुचित प्रयास करेगें।

2 COMMENTS

  1. श्रीमान् राज सिंह ने बहुत ठीक फरमाया है कि प्रेसिडेंट बराक ओबामा कोई जादूगर नहीं वरन् जादुई व्‍यक्तित्‍व के एक ऐसे अमेरिकन स्‍टेट्समैन हैं, जिसने अमेरिका को संकीर्ण नस्‍ली, पूंजीवादी साम्रज्‍यवादी मानसिकता से निजा़त दिलाने में एक ऐतिहासिक संघर्ष जारी रखा और इस मुहिम में कुछ कामयाबी दर्ज की है। आज अमेरिका की विश्‍वस्‍नीयता यदि दुनिया में बढ रही है तो ओबामा का इसमें विशेष रोल है। अमेरिका की भारत साथ बढती प्रगाढता की पृष्‍ठ भूमि में भी ओबामा की शख्सियत है, जिसने भारत के बेनुलअक़वामी महत्‍व को सरेआम तस्‍लीम किया है।

  2. बहुत ही सही आकलन और समीक्षा .मैंने भी ओबामा अभियान में उनका प्रचार और आर्थिक सहयोग दिया था और अमेरिकी इतिहास में वह स्वर्णिम अवसर था जिसने साबित किया की अमेरिका नस्लवादी दुराग्रह से आगे बढ़ चुका है .

    इस समय मैं अमेरिका में ही हूँ और दुःख होता है की अमरीकी जनता उनसे शायद कोई जादुई छडी की उम्मीद करती थी की इतने सालों की रिपब्लिकन गंदगी और आर्थिक बदहाली को वे कुर्सी पर बैठते ही साफ़ कर देंगे.
    इसीलिये रिपब्लिकन प्रभाव के मीडिया और ‘ जनशत्रु पूंजी ‘ ( जिसे आप ने इंगित भी किया है ) उनके खिलाफ एकजुट हो गयी है और कल के सीनेट ,कांग्रेस आदि चुनाओं के नतीजे डेमोक्रेटों के खिलाफ जा रही है और निशाना ओबामा ही हैं.
    वैसे अमेरिकी तंत्र में ओबामा ‘ चेक्स एंड बैलंसस ‘ के चलते ( कांग्रेस और सीनेट में रिपब्लिकन बढ़त ) अब अपने निर्णयों में कितने प्रभावी रह पाएंगे ,अगला वक्त ही बता सकेगा .

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