BE और MSc: शिक्षा के स्तर नहीं, सोच के आईने हैं

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महिमा सामंत

यहाँ उल्लिखित MSc से आशय भौतिकी, रसायनशास्त्र, गणित आदि शुद्ध विज्ञान विषयों की स्नातकोत्तर डिग्री से है। कुछ लोग BE (स्नातक डिग्री) और इस प्रकार की MSc (स्नातकोत्तर डिग्री) की ग़लत तुलना करके, MSc करने वालों को BE करने वालों से कम महत्त्व का समझते हैं। इस लेख में उसी ग़लत धारणा के बारे में बताया गया है।

हमारे समाज में अकादमिक डिग्रियों को लेकर एक अदृश्य लेकिन गहरा पूर्वाग्रह व्याप्त है। विशेषतः जब बात BE (बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग) और MSc (मास्टर ऑफ साइंस) जैसी डिग्रियों की होती है, तो अक्सर BE को एक “सम्मानजनक” या “बड़ी” डिग्री समझा जाता है, जबकि MSc को एक गौण या द्वितीय स्तर की योग्यता माना जाता है। यह धारणा न केवल भ्रामक है, बल्कि उच्च शिक्षा की बुनियादी समझ को भी चुनौती देती है। BE एक स्नातक स्तर की तकनीकी डिग्री है, जिसमें विद्यार्थी को चार वर्षों तक इंजीनियरिंग, गणित और विज्ञान के मूल सिद्धांतों में प्रशिक्षित किया जाता है। यह डिग्री तकनीकी करियर की नींव रखती है। दूसरी ओर, MSc एक स्नातकोत्तर डिग्री है जो गहराई, विश्लेषण और अनुसंधान कौशल को विकसित करने पर केंद्रित होती है। यह शिक्षा की अगली सीढ़ी है, जहाँ विद्यार्थी अपने विषय में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। समस्या तब उत्पन्न होती है जब समाज इन दोनों को तुलना के तराजू पर रखकर एक को दूसरे से ‘बड़ा’ या ‘छोटा’ करार देता है। वास्तविकता यह है कि दोनों डिग्रियाँ अलग-अलग शैक्षणिक स्तर को दर्शाती हैं — एक प्रारंभिक ज्ञान की नींव है, तो दूसरी उसमें गहराई का विस्तार। यह दृष्टिकोण न केवल छात्रों के आत्मविश्वास को प्रभावित करता है, बल्कि उच्च शिक्षा को केवल डिग्री के नाम और समाज में उसकी “प्रतिष्ठा” के आधार पर देखने की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा देता है। ऐसे में MSc जैसे कोर्स की वैज्ञानिकता, अनुसंधान क्षमता और विशेषज्ञता को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि यही वे मूल्य हैं जो राष्ट्र निर्माण और नवाचार की नींव रखते हैं। हमें यह समझना होगा कि BE और MSc दो अलग पथ हैं, जो एक ही शिक्षा-यात्रा का हिस्सा हैं। एक बिना दूसरे के अधूरा है। MSc करने वाले विद्यार्थी वही होते हैं जो BE या BSc के बाद ज्ञान की गहराई में उतरना चाहते हैं, वे केवल नौकरी नहीं बल्कि ज्ञान-साधना और नवाचार के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज MSc जैसी डिग्रियों को कमतर आँका जाता है, जबकि वास्तविकता यह है कि PG स्तर की शिक्षा में परिश्रम, गहराई, और विषयानुराग का उच्चतम स्तर होता है। हमें डिग्री के नाम पर नहीं, उसके स्तर और गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। जब हम किसी से कहते हैं, “मैंने MSc किया है,” तो अक्सर चुप्पी या हल्का संदेह मिलता है; लेकिन “मैंने BE किया है,” कहने पर त्वरित सम्मान। यह केवल समाज की सोच नहीं, बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था और सांस्कृतिक मूल्यों की भी एक परीक्षा है। हमें युवाओं को यह सिखाना होगा कि शिक्षा की कोई ‘छोटी’ या ‘बड़ी’ डिग्री नहीं होती — होती है तो केवल ज्ञान की सच्ची प्यास और अभ्यास की ईमानदारी। MSc और BE को एक दूसरे का प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि एक-दूसरे का पूरक समझना होगा। यह समय है जब हम शिक्षा को केवल करियर की सीढ़ी न मानकर, उसे जीवन के गहरे अर्थ की खोज के रूप में देखें। जब हम समाज में सभी शैक्षणिक स्तरों को समान सम्मान देना शुरू करेंगे, तभी ज्ञान का वास्तविक सम्मान संभव होगा।

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महिमा सावंत
महिमा सामंत एक इंजीनियरिंग कॉलेज में रसायन शास्त्र की प्राध्यापिका हैं, जिनकी गहरी रुचि मूल्य-आधारित शिक्षा, छात्र व्यक्तित्व निर्माण और समाजोन्मुखी शोध में है। शिक्षण कार्य के साथ-साथ वे साहित्य, लेखन और अनुसंधान में भी समान रूप से सक्रिय हैं। अब तक उन्होंने कई समीक्षात्मक शोध-पत्र प्रकाशित किए हैं और Springer तथा American Chemical Society के अंतर्गत आने वाली प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं की समीक्षक के रूप में कार्य कर रही हैं। उनके लेखन में शिक्षा के अदृश्य भावनात्मक एवं नैतिक पहलुओं की गहरी समझ, संवेदनशील दृष्टिकोण और अनुभवजन्य दृष्टि स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। वे मानती हैं कि शिक्षा केवल ज्ञान का हस्तांतरण नहीं, बल्कि मूल्य, प्रेरणा और जीवन-दृष्टि देने की प्रक्रिया है। उनकी रचनाएँ—"एक मौन मार्गदर्शक" साहित्य कुंज में, "पहला क़दम भी न मिले तो अनुभव की राह कैसे चले" हिन्दी कुंज में, “रिश्तों में फूल खिले जब सास-बहू बने माँ-बेटी” परिकल्‍पना समय में प्रकाशित हुई हैं; "चेहरे से स्क्रीन तक: रिश्तों की बदलती तस्वीर" नयी गूंज में स्वीकार की गई है; और अंग्रेज़ी लेख "They Remember You, Not the Syllabus" Teachers Plus में स्वीकार किया गया है।

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