लेख

कश्मीर हो या गौहाटी, अपना देश अपनी माटी

पवन शुक्ला
अधिवक्ता

​भारत केवल एक भौगोलिक भूभाग नहीं है,बल्कि यह भावनाओं,संस्कृतियों और सदियों के इतिहास का एक जीवित महासागर है। इसकी पहचान सिर्फ मानचित्र पर खींची गई रेखाओं से नहीं, बल्कि करोड़ों दिलों में धड़कते ‘अपनापन’ के अटूट भाव से है। यह देश उत्तर में हिमालय की बर्फीली, शांत चोटियों से लेकर पूर्व के हरे-भरे, जीवंत मैदानों तक एक ही पवित्र धागे में पिरोया हुआ है—वह धागा है हमारी ‘अपनी माटी’ का, जिसके हर कण में इतिहास और प्रेम बसा है।
​जब हम उत्तर की ओर देखते हैं, तो कश्मीर स्वर्ग की तरह सामने आता है। वहाँ की चिनार की सुनहरी छाँव, डल झील का शांत, दर्पण-सा जल और बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएँ केवल मनमोहक दृश्य नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक हैं। कश्मीर का हर परिदृश्य, हर कहवा का स्वाद, इस देश की आत्मा में समाया हुआ है। वह सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि हमारी अखंडता का मस्तक है। कश्मीर की धरती पर खिलता हर फूल हमें याद दिलाता है कि यह हमारी साझी धरोहर है, जिस पर हर भारतीय का समान और अटूट अधिकार है।
​इसके विपरीत, पूर्व में गौहाटी (गुवाहाटी) सिर्फ एक शहर नहीं, यह सात बहनों (पूर्वोत्तर राज्यों) का ऊर्जावान प्रवेश द्वार है। यहाँ ब्रह्मपुत्र की विशाल, जीवनदायिनी धाराएँ बहती हैं, कामाख्या देवी का प्राचीन आशीर्वाद प्राप्त है, और मेघों से लिपटी पहाड़ियाँ यहाँ की पहचान हैं। यहाँ की लोक-संस्कृति, बांसुरी की मधुर धुनें, और बिहू नृत्य की थिरकन इंद्रधनुषी रंगों की तरह भारतीयता को सजाते हैं। गौहाटी की मिट्टी में बसी सादगी और शक्ति, हमें बताती है कि भारत की सुंदरता केवल भव्य इमारतों में नहीं, बल्कि यहाँ के प्राकृतिक वैभव और अद्भुत जन-जीवन में है।
​भौगोलिक दूरियाँ चाहे जितनी भी लंबी हों, राष्ट्रीय प्रेम की डोर इन दूरियों को तुरंत मिटा देती है। कश्मीर का केसर हो या असम की सुगंधित चाय, तमिलनाडु के मंदिर हों या गुजरात के गरबा, हर स्वाद, हर रंग मिलकर हमारी राष्ट्रीय पहचान को पूर्णता प्रदान करता है। हमारी भाषाएँ अलग हो सकती हैं, पहनावे भिन्न हो सकते हैं, पर जब कोई चुनौती सामने आती है, तो ‘जय हिन्द’ का नारा एक ही स्वर में गूँजता है। यह भावना हमें सिखाती है कि हम सब एक विशाल परिवार के सदस्य हैं, और यह भूमि—हमारी ‘माटी’—हमारी माता है।
​इसलिए, चाहे बात सर्द कश्मीर की हो या उष्ण गौहाटी की, हर जगह ‘अपना देश’ का भाव प्रबल है। यही राष्ट्रीय प्रेम हमारी विविधता को हमारी सबसे बड़ी शक्ति और पहचान बनाता है।