बंगाल को ‘पोरिवर्तन’ की आस

बंगाल की जिस धरा ने देश को क्रांतिकारियों से रूबरू करवाया, आज वही धरा आतंकियों के नापाक मंसूबे से लाल होई जा रही है| ३४ वर्षों तक जिस लाल सलाम के झंडे को रौंदकर ममता बैनर्जी ने राज्य की सत्ता संभाली थी, वे ही अब संदेह और सवालों के घेरे में हैं| बर्धमान बम विस्फोट की जांच से जो तथ्य छन-छनकर सामने आ रहे हैं उनसे तो यही जान पड़ता है| हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि आतंकवाद से मुकाबले में देश की सबसे कमजोर कड़ी पश्चिम बंगाल ही दिखाई देता है| सत्ता की हनक कहें या नामलेवा न बचने की आशंका, ममता की राजनीति दिग्भ्रमित हो चुकी है| बर्धमान बम विस्फोट में तृणमूल कार्यकर्ताओं की संलिप्तता ने ममता की पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया है| ममता के लिए यह समय निश्चित रूप से कठिन है| एक तो सारधा चिटफंड घोटाले में उनका नाम उछाला जा रहा है वहीं उनपर परोक्ष रूप से आतंकियों को पनाह देने का आरोप भी लग रहा है| तृणमूल सरकार के तीन वर्ष के शासनकाल में राज्य में जितने भी सांप्रदायिक दंगे हुए हैं, कमोबेश सभी में हिन्दुओं के खिलाफ पुलिस और स्थानीय प्रशासन तृणमूल कार्यकर्ताओं की मदद करता नज़र आया है| यह सरासर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति ही है जिसपर चलकर ममता और उनकी पार्टी राज्य के भगवाकरण को रोकना चाहती है| बर्धमान में हुए बम विस्फोट की घटना को भी इन्हीं हालातों की कड़ी में देखा जाना चाहिए|  राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने इसकी जांच की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं| दरअसल एनआईए के अधिकारियों के अनुसार इस धमाके में सामान्य अपराधी लिप्त नहीं थे| घटनास्थल के साक्ष्य साफ़ इशारा कर रहे हैं कि अलकायदा प्रमुख अल जवाहिरी ने जिस अल-जिहाद नामक नए अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन की स्थापना करते हुए भारत को निशाना बनाने की बात कही थी, उसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल से हो चुकी है जहां की कानून व्यवस्था रोज़ दम तोड़ती नज़र आ रही है| बम विस्फोट से तहस-नहस हो चुके घर से एनआईए को जो साक्ष्य प्राप्त हुए हैं उनमें कुछ जले हुए कागज और दस्तावेज सहित कुछ वीडियो-ऑडियो टेप्स तथा तीन मोबाइल फोन सहित बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री भी मिली है| जो अधजले दस्तावेज बरामद हुए हैं उनपर बांग्ला और अरबी भाषाओं में नौजवानों से अल-जिहाद के नाम पर हथियार उठाने का आह्वान किया गया है| वीडियो में भी युवा जिहादियों को कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते देखा जा सकता है| ताज्जुब की बात है कि इसमें महिलाओं की भागीदारी भी कम नहीं है| ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल किस तरह के आतंक की नर्सरी बनता जा रहा है|
फिर पश्चिम बंगाल में ये स्थितियां एकदम से उभरी हों ऐसा भी नहीं है| दरअसल सीमा पार बांग्लादेश से आने वालों पर पश्चिम बंगाल सरकार इस कदर मेहरबान है कि महज ५०-६० हजार रुपए में इन्हें भारतीय नागरिकता मिल रही है| आलम यह है कि सीमा पर विशेष निगरानी के बाद भी लोगों के पास राशन कार्ड, मतदाता पहचान-पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस सहित अन्य पहचान पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं| सूत्रों के अनुसार  सीमा पार से आए लोगों के राष्ट्रीयकृत बैंकों में खाते तक आसानी से खुलवाए जा रहे हैं| सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के खुफिया विभाग के अनुसार हाल के दिनों में बांग्लादेशी नागरिकों का अवैध रूप से प्रवेश बढ़ा है| २००१ की जनगणना के अनुसार देश में ४ करोड़ बांग्लादेशी मौजूद थे| आई बी की ख़ुफ़िया रिपोर्ट के मुताबिक़ अभी भी भारत में करीब डेढ़ करोड़ से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं जिसमे से ८० लाख पश्चिम बंगाल में और ५० लाख के लगभग असम में मौजूद हैं| वहीं बिहार के किसनगंज, साहेबगंज, कटियार और पूर्णिया जिलों में भी लगभग ४.५ लाख बांग्लादेशी रह रहे हैं| राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में १३ लाख बांग्लादेशी शरण लिए हुए हैं तो ३.७५ लाख बांग्लादेशी त्रिपुरा में डेरा डाले हैं| नगालैंड और मिजोरम भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के किए शरणस्थली बने हुए हैं| १९९१ में नागालैंड में अवैध घुसपैठियों की संख्या जहां २० हज़ार थी वहीं अब यह बढ़कर ८० हज़ार से अधिक हो गई है| असम के २७ जिलों में से ८ में बांग्लादेशी मुसलमान बहुसंख्यक बन चुके हैं| १९०१ से २००१ के बीच असम में मुसलामानों का अनुपात १५.०३ प्रतिशत से बढ़कर ३०.९२ प्रतिशत हो गया है| जाहिर है इन अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों का राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक ढांचा प्रभावित हो रहा है| हालात यहां तक बेकाबू हो चुके हैं कि ये अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत का राशन कार्ड इस्तेमाल कर रहे हैं, चुनावों में वोट देने के अधिकार का उपयोग कर रहे हैं व सरकारी सुविधाओं का जी भर कर उपभोग कर रहे हैं और देश की राजनीतिक व्यवस्था में आई नैतिक गिरावट का जमकर फायदा उठा रहे हैं| दुनिया में भारत ही एकलौता देश है जहां अवैध नागरिकों को आसानी से वे समस्त अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाते हैं जिनके लिए देशवासियों को कार्यालयों के चक्कर लगाना पड़ते हैं| यह स्वार्थी राजनीति का नमूना नहीं तो और क्या है? यह तथ्य दीगर है कि इन घुसपैठियों की वजह से पूर्व में कई बार सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ा है|
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि पश्चिम बंगाल ही आतंकी गतिविधियों का केंद्र क्यों बनता जा रहा है? क्या तृणमूल कांग्रेस ने घटनाओं को परोक्ष रूप से मदद करने का मन बना लिया है या पार्टी देश-विरोधी गतिविधियों को अपने राजनीतिक मकसद के तहत उपयोग कर रही है? बांग्लादेश की सरकार तृणमूल कांग्रेस सरकार पर पहले से ही यह आरोप लगा रही है कि वह जमाते-इस्लामी और अन्य मुस्लिम चरमपंथी समूहों की मदद कर रही है| हाल ही में जब अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की मुलाकात भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई थी तो उन्होंने तृणमूल के एक राज्यसभा सांसद के तार सिमी और जमाते-इस्लामी से जुड़े होने की शिकायत की थी| ये सांसद महोदय शारदा चिडफंड घोटाले में भी लिप्त रहे हैं और फिलवक्त सीबीआई जांच के दायरे में है| देखा जाए तो बांग्लादेश की शिकायतें बेबुनियाद नहीं हैं| ममता बनर्जी ने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच संधि को विफल करवा दिया था जिसका सीधा लाभ बांग्लादेश के इस्लामिक चरमपंथियों को मिला| इससे चुनावों के दौरान उन्होंने हसीना के खिलाफ प्रचार के लिए इसका इस्तेमाल किया| यहां तक कि बांग्लादेश की सेकुलर ताकतों ने ढाका के शाहबाग चौक पर जमात व इस्लामिक चरमपंथियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा तो कोलकाता में जमात-समर्थकों ने रैली की और बांग्लादेश के सेकुलरों को इस्लाम-विरोधी बताते हुए उनकी निंदा की और राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही| गौरतलब है कि पूरी दुनिया में जहां शाहबाग आंदोलन के प्रति सहानुभूति थी, वहीं अकेला कोलकाता ही था जहां उसके विरोध में रैली आयोजित की जा रही थी| उस रैली में तृणमूल समर्थकों की बड़ी संख्या में मौजूदगी यह साबित करने को काफी थी कि बांग्लादेश के पश्चिम बंगाल पर आरोप राजनीतिक नहीं वरन सत्यता के करीब थे| कुल मिलाकर तृणमूल कांग्रेस न केवल भारत बल्कि पड़ोसी देश बांग्लादेश को भी अस्थिर करने का प्रयास कर रही है| ममता की पश्चिम बंगाल में जिस प्रचंड जीत की खुशियां मनाई गई थीं, अब वही मातम में बदलती नज़र आ रही हैं| आतंकियों-अवैध बांग्लादेशियों की पनाहगाह बनते बंगाल को सच में ‘पोरिवर्तन’ की आस है|
 
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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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