तर्ज: कव्वाली
मु: ऐसी बंसी बजाई थी श्याम ने,
तीनो लोको में मधुरस बरसने लगा।
ब्रज मंडल में छाई वो मस्ती,
सबके मन (दिल) में आनंद घन उमडने लगा।।
ऐसी बंसी बजाई थी श्याम ने ----
अ १: ब्रह्ममा भी नाचें विष्णु भी नाचें ,
सभी देवी देव भी झूम झूम नाचें।
भोले बाबा का डमरू भी बजने लगा।
ऐसी बंसी बजाई थी श्याम ने ----
अ २: सारी गोपियों की सुध बुध बिसरा गयी,
दौड़ी दौड़ी वो बंसीवट आ गयी।
छेड़ा ऐसा तराना था घनश्याम ने,
सबका मिलन को मनवा तड़पने लगा।
ऐसी बंसी बजाई थी श्याम ने ----
अ ३: पशु पक्षी भी झूमे लत्तापत्ता भी झूमें
धरती भी झूमें गगन भी झूमे।
सारा ब्रह्माण्ड मधुमय होने लगा।
प्रेमरस ब्रज में बरसने लगा।
ऐसी बंसी बजाई थी श्याम ने ----
अ ४: राधा संग श्याम बिहारी रमणने लगे|
गोपियाँ भी मोहन संग लिपटने लगी |
काम देव भी मनमोहन से डरने लगा
अपने हाथों को खुद ही मलने लगा।
ऐसी बंसी बजाई थी श्याम ने ----
अ ५: राकेश सुनाये सीता राम जी बजाएं
बालक भी नाचें बूढें भी नाचें।
नन्दो मस्ती के भजन बनाने लगा
श्याम प्यारे का रस भी बरसने लगा
ऐसी बंसी बजाई थी श्याम ने ----