कविता

भारती का भाल

KASHMIRभारती के भाल को लज्‍जा रहा है देश क्‍यों ?
बेटों के शिश मुण्‍ड को देख कर भी चुप है क्‍यों ?
क्‍यों मुख अब रक्‍तलाल नहीं, क्‍या वीरों के रक्‍त में उबाल नहीं ?
क्‍यों बार-बार विवश है हम, क्‍या हम में स्‍वाभिमान नहीं ?

अब छोड दो खुला इन रणबाकुरों कों,
इन्‍हे मदमस्‍त हाथी की तरह रण में विचरने दो !
एक दिन ही इनके लिए काफी है,
इन्‍हे काश्‍मीर से चलने दो……
देखो फिर इनके हौंसले काश्‍मीर तो है ही क्‍या
नाप देगें लाहौर, रावलपिण्‍डी, कराची तक के फासलें!!

ये वीर है, जवान है
देश की आन,बान,शान है !
ये प्रचण्‍ड है, तूफान है
सीनों में इनके हिन्‍दुस्‍तान है !!

इनके हौसलें है अडिग हिमालय से ,
इनमें वीरता है समुद्र सी ….
ये शांत है थार से ,
इनमें तेजी है गंगा की धार सी

भारती के भाल को लज्‍जा रहा है देश क्‍यों
छोड दो इसके बेटों को…. चलने दो काश्‍मीर से …..

अनिल सैनी (अनि)