राजनीति

घर की लड़ाई से कमजोर होती भाजपा

 सिद्धार्थ शंकर गौतम

मुंबई में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के एन पहले नरेन्द्र मोदी तथा संजय जोशी के बीच ज़ारी अदावत ने जहां संजय जोशी को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर किया वहीं अब दोनों के समर्थकों के बीच ज़ारी पोस्टर विवाद से पार्टी की काफी छीछालेदर हो रही है| अहमदाबाद से लेकर दिल्ली और उत्तरप्रदेश तक में लगे मोदी विरोधी पोस्टर इस बात का सबूत हैं कि मोदी की राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता फिलहाल दूर की कौड़ी है| आखिर कौन है जो इन दोनों की अदावत के बीच राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की कोशिश कर रहा है? क्या संजय जोशी बदले की भावना से ग्रसित होकर मोदी विरोध का झंडा बुलंद कर चुके हैं? क्या मोदी या उनके गुट के नेता यह मानकर चल रहे हैं कि मीडिया में जितनी ज्यादा नकारात्मक छवि बनेगी, जनता के बीच उतनी ही भावुकता से जाया जाएगा; अतः यह सब मोदी गुट की सोची समझी साजिश है? क्या कहीं इन सब के पीछे रथी आडवाणी की भूमिका तो नहीं है? क्या दिल्ली चौकड़ी नरेन्द्र मोदी के समक्ष अपने अस्तित्व को खतरे में जान उनके विरोध में तो नहीं आ गई? ये कुछ चंद सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब मिल पाना फिलहाल दूर की कौड़ी नज़र आता है| चाल, चेहरा और चरित्र पर चलने का दावा करने वाली भाजपा में अंदरूनी गुटबाजी का यूँ सतह पर आना यह साबित करता है पार्टी अब संघ के दायरे से मुक्त होकर स्वयं का अस्तित्व बनाना चाहती है| संघ की खांटी राष्ट्रभक्ति, कट्टरता, अनुशासन इत्यादि से पार्टी सर्वहारा वर्ग की पसंद नहीं बन सकती|

 

२००२ में गुजरात में हुए दंगों के बाद जिस तरह से मोदी की छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खलनायक की बनी और मोदी ने उस छवि को तोड़ने की कोशिश के तहत राज्य भर में सद्भावना सम्मलेन किए उससे पार्टी को लगा कि मोदी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जो विकास, सुशासन तथा सर्वहारा वर्ग की पसंद के रूप में पार्टी को संजीवनी दे सकते हैं| हाँ, मोदी की कार्यशैली ज़रूर विवादित रही है और संघ में भी उनके प्रति एक राय नहीं है| यहाँ तक कि भाजपा के कई बड़े नेताओं की आँखों में मोदी सुई की तरह चुभते हैं किन्तु मीडिया द्वारा कहें या भाजपा द्वारा प्रचारित; मोदी को एकमत से पूरी कांग्रेस के समक्ष “वन मैन आर्मी” की भांति खड़ा कर दिया गया है| किन्तु यह सब करने के बाद पार्टी के घर में सिर-फुटव्वल शुरू हो गई| एक जमाने में मोदी और संजय जोशी की करीबी जगजाहिर थी| केशुभाई पटेल को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद मोदी की ताजपोशी तक संजय जोशी ने मोदी को संबल दिया| किन्तु कुछ गलतफैमियों की वजह से दोनों की राहें जुदा हो गईं| तभी संजय जोशी की कथित सेक्स सीडी ने राजनीतिक हलकों में धमाका कर दिया और उनके लिए पार्टी के दरवाजे बंद हो गए| हालांकि सेक्स सीडी जांच में नकली साबित हुई किन्तु इस पूरे षड़यंत्र से संजय जोशी के राजनीति जीवन को करार झटका लगा जिसका असर अभी भी दिख रहा है| संजय जोशी को फंसाए जाने का सारा शक गुजरात की ओर गया किन्तु यह साबित नहीं हो सका| खैर, संघ ने एक बार फिर अपने पुराने प्रचारक पर भरोसा जताया और उनकी भाजपा में वापसी करवाई| बस तभी से मोदी-संजय जोशी की अदावत ने पार्टी का नुकसान ही किया है|

 

यहाँ यह गौर करने की बात है कि जो संघ नरेन्द्र मोदी के प्रति एकमत नहीं है वही संजय जोशी के प्रति एकमत दिखता है| जोशी की संगठनात्मक सूझबूझ एवं क्षमताओं का ही परिणाम है कि भाजपा मध्यप्रदेश और गुजरात में आज तक मजबूती से खूंटा गाढ़े हुए है| तभी मोदी की नाराजगी के बाद भी गडकरी ने उन्हें उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया है| खैर, इन तमाम विवादों से मोदी को ज़रूर नुकसान होना तय है| मुंबई कार्यकारिणी में मोदी की जिद ने संजय जोशी से इस्तीफ़ा तो दिलवा दिया किन्तु सहानुभूति का लाभ संजय जोशी को मिल गया जिससे तमाम मोदी विरोधी एकजुट हो गए हैं| हाँ, इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि इसमें आडवाणी की कोई भूमिका नहीं है| चूँकि मोदी को आगे करने में आडवाणी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता लिहाजा मोदी-जोशी के बीच की अदावत का फायदा दिल्ली चौकड़ी उठाने की फिराक में है जो अपने समक्ष संघ को भी कुछ नहीं समझती| फिर एक और सवाल यह भी उठ रहा है कि जब अपने घर में ही मोदी को लेकर इतनी खींचतान है तो एनडीए के घटक दलों में उनके नाम को लेकर कितना और क्या बवाल होगा? क्या नीतीश कुमार मोदी के नाम को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकारेंगे? मोदी के लिए आगे की राह बड़ी कठिन है लेकिन फिलहाल तो मोदी-जोशी की लड़ाई कांग्रेस को ज़रूर खुश कर रही होगी कि इतनी अक्षमताओं एवं विवादों के बावजूद कांग्रेस और केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने वाला कोई नहीं है| संघ के होते हुए भाजपा की ऐसी दुर्दशा किसी ने नहीं सोची होगी| वर्तमान में इतने विवादों के बाद निश्चित रूप से भाजपा कांग्रेस की छाया बनकर रह गई है| मात्र सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ होने के कांग्रेसी फार्मूले को अपनाकर भाजपा ने सर्वाधिक नुकसान कर लिया है| गुटों में बंटी पार्टी को मोदी-जोशी विवाद ने और गहरे तोड़ दिया है जिसका दीर्घकालीन प्रभाव देखने को मिलेगा|