कविता

बन्धन रक्षा का

एक अनूठा प्यार बहन का भाई पर विश्वास 

रक्षा का प्रण लेकर भाई इसे बनाता खास 

तिलक लगाकर माथे पर श्रृंगार में रोरी चंदन 

बहन बड़ी हो फिर भी करती है भाई का वंदन 

हर्षित और उल्लासित हो गए आया रक्षाबंधन ।। 

भाई बहन का प्यार अनोखा यह इतिहास बताता है 

बहन की रक्षा की खातिर भाई प्राण गवाता है 

बहना मां सा प्यार है देती दोस्त भी कितनी अच्छी है 

कोई कपट रखे ना मन में निर्मल पावन सच्ची है 

जब भी मिलते इक दूजे का प्यार से करते अभिनंदन 

हर्षित और उल्लासित हो गए आया रक्षाबंधन ।। 

कवच सुरक्षा का देता त्यौहार ये माना जाए 

प्रीति, प्रेम, विश्वास, समर्पण से ये जाना जाए 

सुख, समृद्धि रहे जीवन में चिंता से तुम दूर रहो 

इक भाई की यही कामना दुख संताप कभी न सहो

सुखमय जीवन हो बहना का कभी न हो कोई क्रंदन

हर्षित और उल्लासित हो गए आया रक्षाबंधन ।। 

आंच बहन पर जो आए तो तुम तलवार उठा लेना उसकी रक्षा की खातिर तुम अपने प्राण गंवा देना 

याद करेगी दुनिया भाई बहना के इस प्यार को 

उन बददिमाग लोगों पर किए तुम्हारे हर एक वार को 

रक्त बहा दो दुष्टों का और भाल लगे लाल चंदन 

हर्षित और उल्लासित हो गए आया रक्षाबंधन ।।

कुछ शोहदे जो बैठे रहते हैं बहनों की राहों में 

नहीं करें सम्मान चाहते हैं बस उनको बाहों में 

उनके घर में भी बहने हैं कभी सोच ना पाते वो 

बुरी निगाहें मन में छल लें उनके पास है जाते जो 

उनको सबक सिखाओ चाहे बनना पड़े क्रूर नंदन 

हर्षित और उल्लासित हो गए आया रक्षाबंधन ।।

जिस भाई को बहन नहीं उसको ये राखी रुलाती है 

पर्व ये जब भी आ जाता तो बहन की याद दिलाती है 

बाजारों की राखी सजकर बहन की छवि कर जाती है 

सोच बहन को अन्तर्मन में आंखें ये भर आती हैं निश्छल प्रेम कवच रक्षा का मर्यादा का बंधन 

हर्षित और उल्लासित हो गए आया रक्षाबंधन ।।

आज देख तू बहना मेरी सबकी खुशियां दूनी है 

क्यों न दिया ईश्वर तू बहना! मेरी कलाई सूनी है 

निश्छल प्रेम का बंधन है न समझो इसको धागा है 

प्यार मिला न बहना का वो भाई कितना अभागा है 

फिर भी है ‘एहसास’ बहन के प्रेम का है जो बंधन 

हर्षित और उल्लासित हो गए आया रक्षाबंधन ।।

– अजय एहसास