कनाडा की स्वीकारोक्ति और खालिस्तानी चुनौती

 भारत वर्षों से यह कहता रहा है कि कनाडा की धरती पर खालिस्तान समर्थक तत्व सक्रिय हैं और उन्हें वहां की सरकार से प्रत्यक्ष या परोक्ष संरक्षण मिलता है। हाल ही में कनाडा सरकार के वित्त विभाग की रिपोर्ट ने इस सच्चाई पर आधिकारिक मुहर लगा दी हैं ।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

खालिस्तान आंदोलन की जड़ें 1980 के दशक में पंजाब की अशांत परिस्थितियों से जुड़ी हैं। इस आंदोलन ने न केवल भारत की आंतरिक सुरक्षा को गहरा आघात पहुँचाया बल्कि हजारों निर्दोष लोगों की जानें भी लीं। 1985 में एयर इंडिया का “कनिष्क” विमान बम धमाके में उड़ा दिया गया था, जिसमें 329  लोगों की मृत्यु हुई थी। यह घटना खालिस्तानी आतंकवाद की वैश्विक पहुँच का भयावह उदाहरण थी और इसकी साजिश कनाडा की जमीन से रची गई थी। इस पृष्ठभूमि के बावजूद कनाडा सरकारों का रवैया ढुलमुल रहा, जिससे आतंकियों को पनपने का अवसर मिला।

ट्रूडो सरकार की भूल

पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के शासनकाल में यह प्रवृत्ति और बढ़ी। सत्ता में बने रहने की राजनीति में उन्होंने खालिस्तान समर्थक समूहों को खुली छूट दी। इन समूहों को आर्थिक फंडिंग, सभाएँ आयोजित करने और भारत विरोधी प्रचार चलाने की खुली अनुमति दी गई। ट्रूडो यह भूल कर बैठे कि कनाडा में बसे सभी सिख खालिस्तानी विचारधारा से सहमत नहीं हैं। अधिकांश सिख कनाडा की अर्थव्यवस्था और समाज में सकारात्मक योगदान देने वाले शांतिप्रिय नागरिक हैं। किंतु सभी को एक ही नजर से देखकर और खालिस्तानी तत्वों को तुष्ट करने की नीति ने समाज को विभाजित किया और अंततः ट्रूडो को सत्ता से बाहर होना पड़ा।

वर्तमान स्वीकारोक्ति

अब जबकि कनाडा सरकार ने यह स्वीकार किया है कि खालिस्तानी संगठन वहां सक्रिय हैं और वे न केवल भारत बल्कि कनाडा की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा हैं, तो यह सही समय है कि महज बयानबाजी से आगे बढ़ा जाए। यदि यह स्वीकारोक्ति ठोस कार्यवाही में नहीं बदली, तो इसका कोई अर्थ नहीं रहेगा। इन संगठनों की फंडिंग पर रोक, प्रचार तंत्र पर नियंत्रण और हिंसक गतिविधियों में लिप्त लोगों पर सख्त कानूनी कार्रवाई आवश्यक है।

भारत का दृष्टिकोण

भारत लगातार यह स्पष्ट करता आया है कि आतंकवाद किसी देश या धर्म की समस्या नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए चुनौती है। भारत ने खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ भारी कीमत चुकाई है और आज भी विदेशों में सक्रिय खालिस्तानी संगठनों की गतिविधियों से प्रभावित होता है। कनाडा की यह स्वीकारोक्ति भारत की चिंताओं को सही ठहराती है। अब दोनों देशों को साझा खुफिया जानकारी और संयुक्त कार्रवाई के माध्यम से इस चुनौती का सामना करना चाहिए।

आतंकवादी किसी के सगे नहीं

सबसे अहम बात यह समझनी होगी कि आतंकवादी किसी जाति, धर्म या समुदाय के सगे नहीं होते। उनका उद्देश्य केवल हिंसा और विनाश है। यदि कनाडा सरकार अब भी ढुलमुल रवैया अपनाती है तो न केवल भारत बल्कि स्वयं कनाडा की आंतरिक शांति भी खतरे में पड़ सकती है।

भविष्य की दिशा

कनाडा की स्वीकारोक्ति को केवल औपचारिक बयान न मानकर इसे ठोस कदमों में बदलना समय की आवश्यकता है। यह कदम भारत और कनाडा के रिश्तों को नया आयाम देगा और आतंकवाद विरोधी वैश्विक अभियान को भी मजबूती प्रदान करेगा। साथ ही, इससे यह संदेश जाएगा कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता की आड़ लेकर हिंसा और कट्टरता को बढ़ावा देने वालों के लिए दुनिया में कोई जगह नहीं है।

अंततः, यदि कनाडा अपनी स्वीकारोक्ति को वास्तविक कार्रवाई में बदल पाता है तो यह न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए राहत की खबर होगी।

– सुरेश गोयल धूप वाला 

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