बुखार में सावधानी है जरूरी


डॉक्टर रुप कुमार बनर्जी
होम्योपैथिक चिकित्सक


बुखार होने की कोई न कोई वजह अवश्य होती है। बिना वजह बुखार नहीं हो सकता। वजह जितनी बड़ी होगी यानी बीमारी जितनी बड़ी होगी, बुखार की तीव्रता भी वैसी ही होगी। किसी को अगर सामान्य-सा फ्लू है तो फ्लू या इन्फ्लूएंजा वायरस का असर आमतौर पर 7- 10 दिनों तक होता है। इसके बाद वह खत्म होने लगता है। बरसात के मौसम में मौसमी बुखार भी खूब होता है। यह मौसमी बुखार पहले भी होता था लेकिन अब बुखार के मायने बदल गए हैं। शरीर गर्म होते ही डर सताने लगता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर बुखार हो जाए तो क्या करना चाहिए ? 

 एक बात ध्यान देने वाली है कि बुखार कोई बीमारी नहीं, लेकिन यह कई बीमारियों का शुरुआती लक्षण जरूर है। बुखार यह बताता है कि शरीर को कोई परेशानी है जिसका हल खोजना जरूरी है। कई बार परेशानी जब बड़ी होती है तो बुखार भी बढ़ने लगता है। ज्यादा तेज बुखार होने पर हमारे शरीर में मौजूद हॉर्मोन्स और एंजाइम सही तरीके से काम नहीं कर पाते। दिमाग भी ठीक से काम नहीं करता। इसलिए बुखार को कम करना सबसे पहले बहुत जरूरी है। इसके बाद इंफेक्शन का पता लगाकर लक्षणों के अनुसार दवा दी जाती है।

बुखार में तापमान

जब शरीर का तापमान 99.5 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा होगा तो इसे बुखार कहेंगे। वैसे यह हर शख्स के लिए अलग-अलग हो सकता है। किसी-किसी को 99 पर भी बुखार महसूस हो सकता है।कुछ लोगों को 99 डिग्री फारेनहाइट पर भी फीवर जैसा महसूस हो सकता है, जिसे हरारत (थकान) यानी फीवर नहीं, लेकिन फीवर जैसा कह सकते हैं। यह हरारत थकावट होने पर भी होती है और बारिश में भीगने पर भी। आराम करने से थकावट दूर हो जाती है।

बुखार की कई वजह हो सकती हैं

बुखार होने की कई वजह हो सकती है जैसे वायरल इंफेक्शन, बैक्टीरियल (टाइफाइड) इंफेक्शन, प्रोटोजोअल (मलेरिया) इंफेक्शन, फंगल आदि।

जब हो जाए बच्चे को बुखार

बच्चों के बुखार और बड़ों के बुखार में ज्यादा फर्क नहीं होता। इतना फर्क जरूर होता है कि बच्चों की इम्यूनिटी बड़ों जितनी विकसित नहीं होती। इसलिए उन्हें इंफेक्शन भी ज्यादा होता है और नतीजतन बुखार भी ज्यादा। चूंकि बच्चे अपनी परेशानी को सही तरह से और पूरी तरह से बता पाने में सक्षम नहीं होते, इसलिए बुखार होने पर माता पिता की भूमिका अहम हो जाती है। बच्चों का बुखार यदि नहीं उतरता है तो चिकित्सकीय परामर्श अति आवश्यक है।

बुखार में पट्टी की जरूरत कब होती है और किस तरह करनी चाहिए ?

अगर बुखार 102 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर जा रहा है तो सिर पर गीली पट्टी और अगर फीवर 104 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर जा रहा है तो पूरे शरीर पर गीली पट्टी बदल-बदलकर कर सकते हैं। दरअसल, अगर बुखार कम करने के लिए मरीज को दवा दी है तो दवा का असर होने में 1 घंटा तक लग सकता है। साथ ही इस तापमान या इससे ऊपर तापमान जाने के बाद सिर काफी गर्म हो जाता है। शरीर में मौजूद हॉर्मोंस भी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते। ऐसे में बुखार दिमाग को नुकसान न पहुंचाए, इसके लिए ही पूरे शरीर में गीली पट्टी करना बहुत जरूरी हो जाता है।

बुखार में खानपान कैसा हो ?

बुखार में बहुत ही हल्का खाना खाएं। इन दिनों शरीर को ऊर्जा की ज्यादा जरूरत होती है। इसलिए इसकी कमी न हो, नहीं तो कमजोरी बढ़ जाएगी। पानी की कमी न हो। सामान्य या गुनगुना पानी पीना अच्छा है। दिनभर में 7 से 8 गिलास पानी जरूर पिएं। खाना आसानी से पचने वाला हो, कम तेल और मसाले वाला हो। जैसे खिचड़ी, चावल और मूंग या मसूर की दाल का पानी। खिचड़ी या दाल बनाते समय अगर चाहें तो उसमें मौसमी सब्जियां या साग अच्छी तरह धोकर डाल सकते हैं।  बुखार के साथ सर्दी और खांसी हो तो ठंडी चीजों जैसे आइसक्रीम, फ्रिज का पानी न लें। इसके साथ ही 2-3 मौसमी फल का सेवन भी जरूर करना चाहिए, जैसे संतरा, मौसमी,पपीता आदि।

बुखार होने पर नहाएं या नहीं ?

बुखार में नहाने से मना नहीं किया गया है लेकिन अगर किसी को कंपकपी और ठंड के साथ बुखार आ रहा है तो नहाना बहुत मुश्किल होता है। हां, जब बुखार उतर रहा हो तो शरीर से बहुत सारा पसीना निकलता है। ऐसे में बुखार कम होने या पूरी तरह उतरने के बाद किसी तौलिये को गुनगुने या सामान्य पानी से भिगोकर उससे शरीर को अच्छी तरह पोंछ लें। इसके बाद किसी सूखे तौलिये से भी पोंछना न भूलें। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो शरीर में खुजली शुरू हो जाएगी।

होम्योपैथिक चिकित्सा

होम्योपैथी मैं लक्षणों के आधार पर बुखार एवं इसके साथ की अनुषांगिक बीमारियों के लिए बहुत ही अच्छी चिकित्सा व्यवस्था है। बुखार चाहे किसी भी प्रकार का हो लक्षणों के आधार पर यदि होम्योपैथिक दवाइयां दी जाए तो बुखार समूल रूप से ठीक हो सकता है। 

डॉक्टर रुप कुमार बनर्जी
होम्योपैथिक चिकित्सक

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