गजल

बाहर तकरार देखिये

बाहर तकरार देखिये

कैसा अजीब रिश्ता, व्यवहार देखिये

लड़ते हैं, झगड़ते हैं मगर प्यार देखिये

 

रहते नहीं जुदा ये कभी बात मजे की

दिल में है प्यार, बाहर तकरार देखिये

 

बाहर में कहते शौहर इक शेर है वही

जाते ही घर में बनते हैं सियार देखिये

 

समझौता हुआ ऐसा बेगम से काम का

बर्तन भी साफ करते हैं लाचार देखिये

 

तफरीह नहीं होतीं भारत में शादियाँ

इक दूजे पे है प्यार का अधिकार देखिये

 

बनते हैं पुल बच्चे मिल जाते किनारे

जीने के सिलसिले का संसार देखिये

 

मिलती है नयी ताजगी काँटों की सेज पर

हर हाल में सुमन है स्वीकार देखिये

 

जगत है शब्दों का ही खेल

शब्द ब्रह्म कहलाते क्योंकि, यह अक्षर का मेल।

जगत है शब्दों का ही खेल।।

 

आपस में परिचय शब्दों से, शब्द प्रीत का कारण।

होते हैं शब्दों से झगड़े, शब्द ही करे निवारण।

कोई है स्वछन्द शब्द से, कसता शब्द नकेल।

जगत है शब्दों का ही खेल।।

 

शब्दों से मिलती ऊँचाई, शब्द गिराता नीचे।

गिरते को भी शब्द सम्भाले, या फिर टाँगें खींचे।

शासन का आसन शब्दों से, देता शब्द धकेल।

जगत है शब्दों का ही खेल।।

 

जीवन की हर दिशा-दशा में, शब्दों का ही मोल।

शब्द आईना अन्तर्मन का, सब कुछ देता बोल।

कैसे निकलें शब्द-जाल से, सोचे सुमन बलेल।

जगत है शब्दों का ही खेल।।

 

आँसू को शबनम लिखते हैं

जिसकी खातिर हम लिखते हैं

वे कहते कि गम लिखते हैं

 

आस पास का हाल देखकर

आँखें होतीं नम, लिखते हैं

 

उदर की ज्वाला शांत हुई तो

आँसू को शबनम लिखते हैं

 

फूट गए गलती से पटाखे

पर थाने में बम लिखते हैं

 

प्रायोजित रचना को कितने

हो करके बेदम लिखते हैं

 

चकाचौंध में रहकर भी कुछ

अपने भीतर तम लिखते हैं

 

कागज सुमन करे नित काला

काम की बातें कम लिखते हैं।

श्यामल सुमन