एक लोमड़ी थी चालाक । उसको थी रोटी की ताक ।। उसने देखा आँख उठा कर। कौआ बैठा दिखा पेड़ पर ।। कौए के मुँह में थी रोटी । लोमड़ी की फड़की तब बोटी।। हँसी लोमड़ी , बोली यों । “कौआ भैया, चुप हो क्यों? कुछ तो बोलो, बात करो तुम। अपने दिल का हाल कहो तुम।।” कौए ने मुँह खोला ज्यों ही । रोटी गिर गई, नीचे त्यों ही।। उठा लोमड़ी भाग गई जब। कुछ भी कर न सका कौआ तब ।। मूर्ख बना कौआ तब रोया । बिन रोटी भूखा ही सोया ।। कभी न सुनना अनजानों की । बात सुनो तुम बस अपनों की ।। सीख यही देते हैं गुरुजन । सुनें न जो ,रोते हैं वे जन।। ******** – शकुन्तला बहादुर