कविता साहित्‍य

 चलो, दिवाली आज मनायें 

diwali                 हर  आँगन में उजियारा हो, तिमिर मिटे संसार का।

चलो, दिवाली आज मनायें, दीया जलाकर प्यार का।

 

सपने हो मन में  अनंत के, हो अनंत की अभिलाषा।

मन अनंत का ही भूखा हो, मन अनंत का हो प्यासा।

कोई भी उपयोग नहीं, सूने वीणा के तार का ।

चलो, दिवाली आज मनायें, दीया जलाकर प्यार का।

 

इन दीयों से  दूर न होगा, अन्तर्मन का अंधियारा।

इनसे  प्रकट न हो पायेगी, मन में ज्योतिर्मय धारा।

प्रादुर्भूत न हो पायेगा, शाश्वत स्वर ओमकार का।

चलो, दिवाली आज मनायें, दीया जलाकर प्यार का।

 

अपने लिए जीयें लेकिन औरों का भी कुछ ध्यान धरें।

दीन-हीन, असहाय, उपेक्षित, लोगों की कुछ मदद करें।

यदि मन से मन मिला  नहीं, फिर क्या मतलब त्योहार का ?

चलो, दिवाली आज मनायें, दीया जलाकर प्यार का।