कैसा हो लोकपाल कानून : डॉ. मीणा

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस देश की रग-रग में भ्रष्टाचार समाया हुआ है और भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिये अन्य अनेक बातों के साथ-साथ सख्त कानून की दरकार है, जिसके लिये प्रस्तावित लोकपाल कानून को जरूरी बताया जा रहा है| अब तक की सभी केन्द्र सरकारों द्वारा किसी न किसी बहाने लोकपाल कानून को लटकाकर रखा है, जिसमें कॉंग्रेस भी शामिल है| चूँकि कॉंग्रेस ने सर्वाधिक समय तक देश पर शासन किया है, इस कारण कॉंग्रेस भ्रष्टाचार को पनपाने, रोकथाम नहीं कर पाने और भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों का क्रियान्वयन नहीं करवा पाने और, या लोकपाल कानून को नहीं बनवा पाने के लिये सर्वाधिक जिम्मेदार है| जिससे वह बच नहीं सकती है| यह अलग बात है कि केन्द्र की वर्तमान यूपीए सरकार लोकपाल कानून के बारे में बुरी तरह से फंस चुकी है| जानकारों का मानना है कि केन्द्र सरकार इस बारे में अन्ना हजारे और अन्ना हजारे के पीछे खड़े राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) को इस बात का श्रेय नहीं लेने देना चाहती कि उनके दबाव में लोकपाल कानून बनाया गया है| क्योंकि राजनीति में इस प्रकार के निर्णयों का चुनावों में असर होता है| लेकिन आम जनता को इस बात से क्या लेना देना है? कॉंग्रेस या यूपीए ने ऐसी स्थिति क्यों निर्मित होने दी कि अन्ना, आरएसएस या भाजपा या एनडीए या अन्य विपक्षी दलों को लोकपाल कानून बनवाने का श्रेय मिलने की स्थिति बनी! निश्‍चय ही यह वर्तमान यूपीए और कॉंग्रेस नेतृत्व की राजनैतिक असफलता है| जिसका फायदा दूसरे राजनैतिक उठाना चाहते हैं, तो उनका राजनैतिक अधिकार है| इसमें गलत भी क्या है? अब भी यदि कॉंग्रेस दुविधा से बाहर नहीं निकल पायी तो फिर उसे और यूपीए को होने वाले नुकसान की लम्बे समय तक भरपाई कर पाना सम्भव नहीं होगा| अत: बेहतर यही होगा कि केन्द्र सरकार न मात्र लोकपाल कानून को लाये ही, बल्कि सच्चे अर्थों में लोकपाल कानून बनाकर संसद में पेश करे| जिससे देश और देश की जनता को भ्रष्टाचार, अनाचार और गैर-कानूनी कुकृत्यों से मुक्ति मिल सके|

वर्तमान में इस बात की बहस भी चल रही है कि लोकपाल के दायरे में कौन हो और कौन नहीं हो| निश्‍चय ही यह महत्वपूर्ण और विचारणीय मुद्दा है| जिस पर राष्ट्रीय सोच और राष्ट्रहित के साथ-साथ देश के सभी वर्गों का विशेषकर कमजोर वर्गों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है| अत: प्रस्तावित लोकपाल कानून बनाते समय ध्यान रखा जावे कि-

1. बिना किसी किन्तु-परन्तु के देश का प्रत्येक लोक सेवक लोकपाल के दायरे में आना चाहिये| लोक सेवक के दायरे में छोटे से छोटे जनप्रतिनिधि से लेकर प्रधानमन्त्री और राष्ट्रपति तक हर एक उस व्यक्ति को आना चाहिये जो जनता से संग्रहित धन से वेतन लेता हो या जनता से संग्रहित धन को खर्चे करने के बारे में निर्णय लेने का कानूनी या संवैधानिक अधिकार रखता हो| जिसमें न्यायपालिका और सेना भी शामिल हों|

2. सभी औद्योगिक घराने, गैर-सरकारी संगठन (चाहे सरकारी अनुदान लेते हों या नहीं), सभी गैर-सरकारी शिक्षण या अन्य संस्थान, खेल संघ और ऐसा प्रत्येक सरकारी या गैर सरकारी या निजी निकाय या उपक्रम जिसके पास जनता से किसी भी कारण से किसी भी रूप में धन संग्रहित करने और उसे खर्च करने का हक हो उसे बिना किसी भी किन्तु-परन्तु के प्रस्तावित लोकपाल कानून के दायरे में होना ही चाहिये|

3. सभी प्रकार की ऐसी जॉंच ऐजेंसियॉं, जिन्हें किसी भी प्रकार के मामले की जॉंच करने का हक हो उन्हें भी प्रस्तावित लोकपाल कानून के दायरे में होना चाहिये| जिनमें नीचे से ऊपर तक सभी लोक सेवकों की नियुक्ति, पदोन्नति और बर्खास्तगी का अधिकार केवल लोकपाल के पास ही होना चाहिये|

4. प्रस्तावित लोकपाल कानून में भ्रष्टाचार की परिभाषा को विस्तिृत और सुस्पष्ट करने की जरूरत है| जिसमें प्रत्येक ऐसे गैर-कानूनी कृत्य को जिसमें धन, बजट, अनुदान, शुल्क बजट,विज्ञापन, कर आदि को किसी भी प्रकार से धन समावेश हो वह मामला भ्रष्टाचार से सम्बन्धित होने के कारण प्रस्तावित लोकपाल कानून के दायरे में आना चाहिये| इसके अन्तर्गत समस्त प्रकार का मीडिया, बजट का मनमाना और गैर-कानूनी उपयोग करने वाले लोक सेवकों को शामिल किया जाना बेहद जरूरी है| इससे मीडिया की मनमानी और ब्यूराक्रेसी की भेदभावपूर्ण कुनीतियों पर भी अंकुश लग सकेगा|

5. प्रस्तावित लोकपाल कानून में यह स्पष्ट रूप से व्यवस्था होनी चाहिये कि इसमें देश के सभी सम्प्रदायों और वर्गों को बारी-बारी से अवसर मिलेंगे| इसमें कम से कम 50 फीसदी स्त्रियों सहित, अल्पसंख्यकों, पिछड़ा वर्ग और दलित-आदिवासी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सशक्त हिस्सेदारी देने की सुनिश्‍चित व्यवस्था भी होनी चाहिये|

6. लोकपाल की औपचारिक नियुक्ति बेशक राष्ट्रपति द्वारा की जावे, लेकिन लोकपाल के चयन का अधिकार किसी भी राजनेता और पूर्व ब्यूरोक्रेट के पास नहीं होना चाहिये| बल्कि लोकपाल का चयन करने के लिये देश के निष्पक्ष कानूनविदों, न्यायविदों और सामाज के निष्पक्ष लोगों के संवैधानिक चयन मण्डल द्वारा होना चाहिये| बाद के चयनों में सेवा निवृत लोकपालों को भी शामिल किया जा सकता है|

7. लोकपाल को हटाने के लिये एक संवैधानिक निकाय होना चाहिये, जिसमें एक भी ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं हो, जो लोकपाल के चयन मण्डल में भागीदार रहा हो| लोकपाल के अधीन सभी लोक सेवकों के विरुद्ध देश के हर एक व्यक्ति को कानूनी कार्यवाही प्रारम्भ कराने के लिये न्यायपालिका के समक्ष अर्जी देने का पूर्ण हक दिया जावे|

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

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