राजनीति

चुनावी मौसम में निखरता कांग्रेसी त्रियाचरित्तर

डा. आशीष वशिष्ठ

ऐसा लगता है कांग्रेस नेता और मंत्री जान-बूझकर बाटला हाउस विवाद को थमने नहीं देना चाहते। गाहे-बगाहे उसके जख्म को कुरेदते रहते हैं। ताजा मामला केन्द्रिय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद से जुड़ा है।अल्पसंख्यकों के वोट और समर्थन के लालच में केन्द्रिय कानून मंत्री एवं कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने बयान दिया कि बाटला हाउस मुठभेड़ की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी रो पड़ी थीं। असल में सोनिया रोयी थी या नहीं ये तो सोनिया जाने, लेकिन आंतकवाद जैसे संवेदनशील और आम आदमी की सुरक्षा से जुड़े मसले पर चंद वोटों की खातिर की गयी बयानबाजी से कांग्रेसी नेता क्या साबित करना चाहते हैं कि वो मुसलमानों के सबसे बड़े हितेषी और हमदर्द हैं। उन्हें किसी मुस्लिम आंतकवादी की मौत पर बड़ा दुख पहुंचता है, आंखों से आंसू निकल आते हैं। या फिर कांग्रेसी नेता यह बताना चाहते हैं कि उनके राज में ही मुस्लिम सुरक्षित और खुशहाल जीवन बसर कर सकते हैं।

उत्तर प्रदेश में खुर्शीद ने एक चुनावी सभा में कहा, ‘जिस वर्ष बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ था उस समय मैं हुकुमत में नहीं था, बावजूद एक वकील की हैसियत से मैं कपिल सिब्बल और दिगिवजय सिंह के साथ सोनिया जी के पास गया और उन्हें मुठभेड़ की तस्वीरें दिखार्इं तो वह रोने लगीं और प्रधानमंत्री के पास जाने को कहा था। खुर्शीद के इस नाटकीय बयान पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने पूछा कि ‘क्या बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा और संसद हमले में मारे गए सुरक्षाकर्मियों के लिए भी सोनिया के आंसू फूट पड़े थे।

दरअसल कांग्रेस बाटला हाउस के जख्मों को जान बूझकर छेड़ती रहती है और इस मूढ़भेद से उपजी सहानुभूति को वोटों में बदलने की फिराक में रहती है। पार्टी आला कमान की शह पर ही पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान आजमगढ़ के संजरपुर जाकर सरकार की परेशानियां बढ़ा दी थीं। बाटला हाउस पर एक के बाद एक नाटकीय बयान देने वाले कांग्रेस नेता भूल जाते हैं कि खुद कांग्रेसी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री इसे जायज ठहरा चुके हैं। तो सवाल है कि सनसनी खेज बयानबाजियों के बहकावे में यूपी का मुसलमान आता दिख रहा है ?

 

आजादी से लेकर आजतक देश पर सबसे अधिक राज कांग्रेस पार्टी ने ही किया है, और बरसों-बरस तक अधिकतर राज्यों में कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री रहे हैं। ऐसे में यह सवाल अहम है कि कांग्रेस ने मुसलमानों की भलार्इ और कल्याण के लिए क्या किया? मुसलमानों के कल्याण और विकास के लिए कौन सी दूरदर्शी सोच रखी? मुस्लिम वोटों के चंद दलाल के जरिये धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े कांग्रेस आखिर उत्तर प्रदेश में किस मुगालते में है। आजादी के 64 साल बाद भी कांग्रेस के कारण ही मुस्लिम की बजाय वोट बने हुए हैं। असल में कांग्रेस या किसी भी दूसरे दल की नजर में देश के मुसलमानों की हैसियत वोट के अलावा कुछ नहीं है। स्वार्थ सिद्धि के लिए मुस्लिम वोटों के सौदागार और पैरोकार नेता देश के आम मुसलमान की नजर में खुद को उनका सबसे बड़ा हमदर्द और उनके सुख-दुख में शरीक होने वाला साबित करने की गरज से चुनाव में जानबूझकर मुस्लिमों से जुड़े विभिन्न संवेदनशील मुददों को उठाते है। इस दौड़ में सबसे आगे कांग्रेसी नेता रहते हैं, काग्रेसी नेता मौके-बेमौके यह सिद्ध करने की कोशिश में दिखार्इ देते हैं कि देश में मुसलमानों के हितेषी कांग्रेस पार्टी हैं, अन्य कोर्इ दूसरा दल नहीं।

 

मुस्लिम वोटों के लालच में चुनाव की घोषणा से पूर्व यूपीए सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों को साढ़े चार फीसद आरक्षण और बुनकरों की कर्ज माफी का चारा फेंका था। राहुल का मुस्लिम उलेमाओं और धर्म गुरूओं के चरणों में लोटना और धूल चाटना असरकारी न होते देखकर मुसलमानों को जज्बातों को जगाने के लिए आलाकमान की शह पर पार्टी के बातूनी और विवादित बयानों के लिए मशहूर दिगिवजय सिंह ने बाटला हाउस के गड़े मुर्दे को उखाड़ा। दिगिवजय के बयान का सीधा खामियाजा राहुल को आजमगढ़ के शिबली कालेज में छात्रों के विरोध के रूप में झेलना पड़ा। मौके की नजाकत को भांपकर राहुल ने दिगिवजय से किनारा कर लिया। लेकिन बाटला हाउस का मुददा भुनाने की फिराक में पड़ी कांग्रेस ने इस बार देश के कानून मंत्री सलमान खुर्षीद को आगे किया। सलमान ने घटना को जायज और नाजायज ठहराने की बजाय कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी के दुख-दर्दे और आंसुओं का घोल बनाकर मुस्लिम वोटरों की गोलबंदी की पुख्ता योजना बनार्इ। लेकिन विरोधियों की तीखी आलोचना और पार्टी को नए संकट में घिरते देख कांग्रेस महासचिव दिगिवजय सिंह ने यह कहकर की यह सलमान की निजी राय है पार्टी की नहीं, मामला शांत कराने की कोशिश की। मामला और बयानबाजी तो फिलहाल बंद हो गयी है लेकिन कांग्रेस का असली चरित्र और चेहरा एक बार फिर बेनकाब हो गया है कि वोटों के लालच में कांग्रेस जानबूझकर मुस्लिम समुदाय से जुड़ी घटनाओं और मुददों को हरा रखना चाहती है, असल में उसे किसी की फिक्र या चिंता नहीं है।

कांग्रेस को मुस्लिम युवाओं की इतनी फिक्र है तो उसके हाथ किसी राजनीतिक दल या जनता ने बांधे नहीं है। पिछले 64 सालों में कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए क्या किया है यह देश के मुसलमानों से बेहतर कोर्इ दूसरा नहीं जानता। सोची समझी रणनीति और साजिश के तहत ही देश पर सबसे लंबे समय तक एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने कभी मुसलमानों को उचित मान-सम्मान और हिस्सा नहीं दिया जिसके वो हकदार थे। कांग्रेस ने ही देश में मुसलमानों को वोट बैंक में तब्दील किया है, ये कड़वी हकीकत है। कांग्रेस को दुख इस बात का नहीं है कि देश के मुसलमान बदहाली की जिंदगी बसर कर रहे हैं या फिर वो शिक्षा, रोजगार में पिछड़े हैं। कांग्रेस का असल दुख यह है कि जात-पात की राजनीति के जो बीज उसने बोए थे आज उसकी फसल दूसरे दल काट रहे हैं, कांग्रेस की असली चिंता यह है कि उससे नाराज, रूठे और मुंह मोड़ चुके मुस्लिम वोट वापिस उसके खेमे में आ जाए। इसलिए कांग्रेस को मुसलमानों की याद चुनावों के वक्त सबसे अधिक आती है। सलमान और दिगिवजय जैसे नेताओं की असलियत जनता भी समझती है। बाटला हाउस पर कांग्रेसी नेताओं के मगरमच्छी आंसू चुनावी सैलाब में पार्टी की नैया पार लगाएंगे या डुबोयेंगे ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन अहम सवाल यह है कि कांग्रेस को चुनावों के वक्त ही मुसलमानों और उनकी दुख तकलीफ की याद क्यों आती है।