वास्तविक दुनिया से जुड़े और हरदम रहें खुश !

सुनील कुमार महला



युवाओं में आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स का बहुत ज्यादा क्रेज है। वर्चुअल वर्ल्ड में युवा पीढ़ी इतनी अधिक रम-बस चुकी है कि युवा पीढ़ी को आज वास्तविक दुनिया का बिल्कुल भी अहसास ही नहीं है। कुल मिलाकर यह बात कही जा सकती है कि युवा पीढ़ी आज सोशल मीडिया का संयमित उपयोग, प्रयोग नहीं कर रही है और इससे उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहें हैं। आज की जिंदगी में युवाओं को जिस चीज़ की सबसे अधिक आवश्यकता है वह है- स्वयं को डिजिटल डिटाक्स करना।

 डिजिटल डिटॉक्स का उद्देश्य खुद को बिना किसी व्यवधान के वास्तविक जीवन का अनुभव करने का समय देना है। यह स्क्रीन के माध्यम से लोगों से जुड़ने के बजाय व्यक्तिगत रूप से जुड़ने का एक तरीका है और तनाव को दूर करने और उस सभी जुड़ाव से दूर रहने का समय है। आज व्यक्ति भागम-भाग भरी जिंदगी जी रहा है। हर तरफ तकनीक और सूचना क्रांति का साया है। सुकून और चैन, शांति और संयम नाम की आज कोई चीज आदमी के पास बची नहीं है। आज आदमी डिजिटल डिटाक्स नहीं होने के कारण तनाव और अवसाद की जिंदगी जी रहा है। वर्चुअल वर्ल्ड हमेशा वर्चुअल ही रहता है और उसमें वास्तविक दुनिया जैसा चैन, सुकून, हंसी-खुशी कहां ? आज वर्चुअल वर्ल्ड हमारी युवा पीढ़ी को हार्ट डिज़ीज़ के जोख़िम में डाल रहा है। वर्चुअल वर्ल्ड का अधिक इस्तेमाल करने वालों को स्ट्रोक का खतरा अधिक रहता है। वे चैन और सुकून की नींद नहीं सो पाते हैं।

सोशल मीडिया का अधिक प्रयोग वृद्ध व्यक्तियों में डिमेंशिया का जोखिम बढ़ा रहा है। डिमेंशिया मतलब-‘जड़बुद्धिता।’ वास्तव में,डेमेंशिया याददाश्त, सोच, निर्णय और सीखने की क्षमता सहित मानसिक कार्यों में धीमी, प्रगतिशील गिरावट है। अत्यधिक डिजिटल उपस्थिति के हमारे ब्रेन पर काफी बुरे प्रभाव पड़ते हैं। इससे हमारे ध्यान केंद्रित करने और निर्णय लेने की क्षमताएं कम हो सकतीं हैं। स्क्रीन का नीला प्रकाश ‘मेलाटोनिन प्रोडक्शन’ में बाधा पैदा करता है और हमें ठीक से नींद नहीं आती है। आज स्क्रीन-टाइम की अधिकता हमारी क्षेत्रीय सांस्कृतिक गतिविधियों को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है, वहीं दूसरी ओर आज हम स्क्रीन टाइम पर लगातार व्यस्त रहकर हमारे समाज में होने वाली विभिन्न घटनाओं, परंपराओं, संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन, आपसी संवाद से नहीं जुड़ पाते हैं। अपने चारों ओर की दुनिया में क्या हो रहा होता है, हमें स्क्रीन टाइम के कारण इसका ठीक से भान तक नहीं होता है।

जीवन की असली खुशियां स्क्रीन टाइम में नहीं, अपितु स्क्रीन से हटने में हैं। जीवन हमेशा स्क्रीन से परे है, यह वास्तविक है, आभासी नहीं। आज हम इमोजी, लाइक्स, शेयर, कमेंट्स की दुनिया तक सीमित हो चलें हैं। हमें सिर्फ और सिर्फ कैमरे, एंड्रॉयड मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर, इंटरनेट से मतलब है, किसी और से नहीं, लेकिन याद रखिए कि जीवन कभी भी लाइक्स, कमेंट्स,शेयर या फालोवर्स की संख्या से नहीं चला करता है। जीवन को दोस्तों, परिवार, रिश्तेदारों का संग-साथ चाहिए होता है, जो कि वास्तविक होता है। वर्चुअल वर्ल्ड वास्तव में देखा जाए तो एक लत है, एक मायाजाल है। हमेशा गैजेट्स से घिरे लोग बेचैन रहते हैं, तनाव और अवसाद उनकी जिंदगी का हिस्सा हो जाता है। इसलिए डिजिटल डिटाक्स आज समाज की जरूरत है। फेसबुक पर लंबी फ्रेंडलिस्ट, ट्विटर पर फॉलोअर्स की अधिक तादाद सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं कहीं जा सकती है। याद रखिए कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए हम बहुत बार न चाहते हुए भी कई अनजान व अपरिचित लोगों से जुड़ जाते हैं। ऐसे में हम हमारी पर्सनल लाइफ में जो कुछ भी कर रहे होते हैं वो सबकुछ अनजान लोगों को भी मालूम रहता है। अतः आज व्यक्ति को यह चाहिए कि वह स्वयं को डिजिटल डिटाक्स करने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए।

डिजिटल डिटाक्स का लाभ यह होगा कि हम तनाव में कम रहेंगे, चीजों पर हमारा फोकस अच्छा हो सकेगा। हमारी मेंटल हेल्थ बूस्ट होगी क्यों कि डिजिटल डिटाक्स से हमारी नींद बेहतर होगी। हमारे रिश्ते भी बेहतर होंगे और सबसे बड़ी बात अपनी पसंद की चीजें करने के लिए हमारे पास समय भी अधिक होगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि डिजिटल डिटॉक्स से हमें अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का मौका मिलता है। इससे हमारे रिश्ते मजबूत होते हैं और हमें वास्तविक जीवन में खुशियों का अनुभव होता है, जो स्क्रीन के समय में संभव नहीं है।

याद रखिए कि एक पुरानी कहावत है कि ज़रूरत से ज़्यादा हर चीज़ ज़हर होती है और डिजिटल वर्ल्ड की सूचनाएं भी कुछ ऐसी ही हैं। यह ठीक है कि आज तकनीक और सूचना क्रांति का दौर है और सोशल मीडिया प्रेस की आजादी का मंच हो चला है लेकिन आज के समय में यह अनियंत्रित होता चला जा रहा है और इसमें ऐसे कंटेंट की बहार है जो देश के युवाओं, समाज और देश को मिस गाइड करता है। अश्लील सामग्री भी अपने परवान पर है। यह अच्छी बात है कि अब भारत भी आस्ट्रेलिया की भांति देश में बच्चों को सोशल मीडिया से बचाने के लिए जल्द ही सख्त और नवीन कानून लाने जा रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज अभिभावक सोशल मीडिया और ओटीटी मंचों पर उपलब्ध अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री को लेकर बहुत ही चिंतित हैं, क्यों कि आज बच्चे सोशल नेटवर्किंग साइट्स का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। यह बहुत ही संवेदनशील और गंभीर है कि सख़्त कानूनी प्रावधानों के अभाव में ऐसा कंटेंट (अश्लील और आपत्तिजनक) उपलब्ध कराने वाली कंपनियां आज भारत में चांदी कूट रही हैं, क्यों कि भारत उन्हें एक बड़ी मंडी के रूप में नजर आता है।

बहरहाल, बच्चों को ऐसी सामग्री से बचाने के लिए जागरुकता के साथ ही साथ डिजिटल डिटाक्स पर ध्यान देने की जरूरत है। ‌वास्तव में, डिजिटल डिटॉक्स करने के लिए सबसे पहले काम के बीच-बीच में हमें छोटे-छोटे ब्रेक लेने चाहिए और स्वयं को स्क्रीन से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए सोने से कम से कम एक घंटा पहले हम अपने सभी डिजिटल उपकरणों को बंद कर सकते हैं ताकि हमारी नींद बेहतर हो सके। हम दोस्तों संग कहीं बाहर घूमने जा सकते हैं, अथवा हल्की वॉक कर सकते हैं या फिर कोई आउटडोर गेम खेल सकते हैं। इससे हमारा शरीर और मन तरोताजा रहेगा। हम अच्छी किताबें पढ़ सकते हैं, पेंटिंग कर सकते हैं या कोई नया शौक अपना सकते हैं, जो स्क्रीन से दूर हो। इससे हमें मानसिक शांति और सुकून मिलेगा और हमारा तनाव भी कम होगा। अंत में यही कहूंगा कि डिजिटल दुनिया, वास्तविक दुनिया नहीं है। रिश्तों की डोर वास्तविक दुनिया से मजबूत होती है। यह काबिले-तारीफ है कि हाल फिलहाल भारत सरकार बच्चों को सोशल मीडिया से बचाने के लिए मौजूदा कानूनों को सख्त बनाने की दिशा में आम सहमति बनाने के प्रयासों में लगी है।

सुनील कुमार महला

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