कुलदीप विद्यार्थी
झाड़ियों पर वस्त्र, लोहित देह से हेरान हूँ,
कल मैं कब्रिस्तान था औ’ आज मैं शमशान हूँ।
कौनसी वहसत भरी हैं आपके मस्तिष्क में,
पाँव पर कल ही चली मैं, एक नन्हीं जान हूँ।

नोच लूँगा मैं हवस में बाग की कलियाँ सभी,
मत कहो इंसान मुझको, मैं तो बस शैतान हूँ।
हैं भले जन-गण मगर मन से मिला जन-गण नहीं,
मैं उसी कुंठित व लुंठित राष्ट्र का एक गान हूँ।
साहिबे आला ने गिरवी साख भी रख दी मेरी,
भूख से रोता हुआ मैं, मुल्क हिंदुस्तान हूँ।
जान की कीमत यहाँ मुझ मोम से तोली गई,
आज के हालात की सबसे बड़ी पहचान हूँ।
बस विरोधी ही रहूँगा, हर किसी हालात में,
लोग वरना क्यों कहेंगे ये कि, मैं विद्वान हूँ।
आपकी फाइल यहाँ कागज़ के पैरों से चली,
आज कल बाजार में बिकता हुआ ईमान हूँ।