राजेश कुमार पासी
बिहार में करारी हार विपक्ष को हजम नहीं हो रही है। वो यह मानने को तैयार नहीं है कि 20 साल के शासन के बाद भी नीतीश कुमार
को जनता बदलने को तैयार नहीं है। वास्तव में जनता को कोई भी खुश नहीं कर सकता और ये बात जनता भी जानती है कि कोई भी राजनीतिक दल या नेता उसकी उम्मीदों पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर सकता। भारत की जनता अब इतनी समझदार हो चुकी है कि वो सिर्फ बदलाव लाने के लिए ही वोट नहीं देती है। वो बदलाव लाने से पहले यह देखती है कि उसके सामने जो विकल्प है, क्या वो वर्तमान नेता या राजनीतिक दल से बेहतर है। नीतीश कुमार के विरोधी यह तो जानते हैं कि उनके प्रति जनता में नाराजगी है लेकिन वो यह नहीं देख पाते कि उनका विकल्प आज भी बिहार की जनता को दिखाई नहीं दे रहा है। भाजपा में ऐसा नेता बन नहीं पाया है, इसलिए भाजपा भी नीतीश कुमार के नेतृत्व को बदलने के लिए उचित समय का इंतजार कर रही है।
भाजपा नेतृत्व हमेशा जमीन से जुड़ा रहता है, इसलिए उससे बहुत कम गलतियां होती हैं । विपक्ष जनता से कट चुका है,इसलिए वो जमीनी हकीकत से दूर रहता है। वो अपनी रैलियों और रोड शो में आई भीड़ से ही अपनी जीत का अंदाजा लगा लेता है। भारत का विपक्ष इतना ज्यादा आलसी हो गया है कि वो इसी उम्मीद के साथ चुनाव में उतरता है कि जनता वर्तमान सत्ता से नाराज है, इसलिए बिना कुछ करे ही उसकी जीत होने वाली है। विपक्ष भी पूरी तरह से गलत नहीं है क्योंकि पहले राजनीति में यह रिवायत बन चुकी थी कि जनता बेशक सत्ता से खुश हो, इसके बावजूद वो सत्ता परिवर्तन कर देती थी। जनता दो प्रमुख दलों में सत्ता की अदलाबदली करती रहती थी । अब ये रिवायत खत्म हो चुकी है, अब जनता तब तक सत्ता परिवर्तन नहीं करती जब तक कि वो वर्तमान सत्ता से ज्यादा नाराज न हो । कांग्रेस ने केंद्र में दस साल तक लगातार शासन किया और अब भाजपा सरकार का तीसरा कार्यकाल चल रहा है। ऐसे ही गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, केरल और कई राज्यों में लगातार एक ही पार्टी की सरकार चल रही है।
भारतीय राजनीति पिछले 15-20 सालों में बहुत बदल चुकी है। आम आदमी पार्टी ने लोकलुभावन वादे करके पहले दिल्ली और फिर पंजाब में सत्ता हासिल कर ली । ऐसा लगा कि लोकलुभावन वादे सत्ता हासिल करने का बहुत आसान रास्ता है । आम आदमी पार्टी ने इस रास्ते पर चलकर अन्य कई राज्यों में चुनाव लड़ा, लेकिन उसे सफलता हासिल नहीं हुई। इसकी वजह यह है कि सिर्फ लोकलुभावन वादे करके सत्ता हासिल करना संभव नहीं है, इसके लिए राजनीतिक दल की विश्वसनीयता और अनुकूल राजनीतिक परिस्थितियां भी होनी चाहिए। बिहार में महागठबंधन ने एनडीए से कहीं ज्यादा लोकलुभावन वादे किये थे, लेकिन उसे शर्मनाक हार मिली । विपक्ष की विश्वसनीयता जनता में लगभग खत्म हो चुकी है क्योंकि वो सिर्फ भाजपा और उसके सहयोगी दलों की बुराइयों का ढिंढोरा पीटकर वोट पाने की उम्मीद में रहता है। देश की गरीबी, बेरोजगारी और अन्य मुद्दों की बात करता है लेकिन देश की समस्याओं का उसके पास क्या समाधान है, ये नहीं बताता है।
बिहार के चुनाव में तेजस्वी यादव ने वादा किया कि वो हर घर से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देंगे, लेकिन कैसे देंगे, ये उन्हें पता नहीं था। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया कि हर महिला को एक लाख रुपए हर साल दिए जाएंगे, लेकिन कैसे दिए जाएंगे, ये कांग्रेस बता नहीं सकी । देखा जाए तो दोनों ही वादे इतने आकर्षक हैं कि विपक्ष को तीन चौथाई से भी बड़ा बहुमत दिला सकते थे लेकिन इतने बड़े वादे करने के बाद बिहार में महागठबंधन धराशायी हो गया। लोकसभा में कांग्रेस को जरूर उसके वादे का कुछ राज्यों में फायदा हुआ लेकिन उसकी कुछ दूसरी वजह भी थी । नीतीश सरकार पर आरोप लगाया गया कि उसने एक करोड़ महिलाओं को दस हजार की रिश्वत देकर चुनाव जीत लिया लेकिन तेजस्वी यादव ने तो सरकार बनते ही तीस हजार देने की बात कही, क्या वो रिश्वत नहीं थी । नीतीश कुमार तो दस हजार दे चुके थे, लेकिन तेजस्वी यादव तो देने वाले थे. इस तरह देखा जाए तो महिलाओं को ज्यादा फायदा तो तेजस्वी यादव को वोट देने से मिलने वाला था । बच्चों को सरकारी नौकरी मिलना तो बिहार की महिलाओं के लिए सबसे सुनहरा सपना है लेकिन महिलाओं ने उस सपने के पीछे जाना पसंद नहीं किया। सवाल यह है कि क्या महिलाएं नहीं चाहती हैं कि उनके बच्चों को सरकारी नौकरी मिले । सच तो यह है कि बिहार में हर महिला का ये सपना हो सकता है लेकिन उसे भरोसा नहीं है कि ये सपना तेजस्वी यादव पूरा कर सकते हैं।
मोदी के कट्टर आलोचक और भाजपा के कट्टर विरोधी योगेंद्र यादव कहते हैं कि विपक्ष हमेशा नकारात्मक बातें करता है जबकि मोदी की बातों में 80% बातें सकारात्मक होती हैं। वो हैरानी जताते हुए कहते हैं कि विपक्ष को देश में कुछ भी अच्छा होता हुआ नहीं दिखता है। वैसे देखा जाए तो योगेंद्र यादव के बारे में भी यही कहा जा सकता है कि उन्हें भाजपा और मोदी में कुछ भी अच्छा नहीं दिखता है। बिहार में उनके सारे आंकलन धरे रह गए तो उनके मुंह से कुछ सच बाहर निकल आया । वास्तव में योगेंद्र यादव जैसे लोग भी विपक्ष की बड़ी कमजोरी हैं, जो विपक्ष के नकारात्मक एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं। आज योगेंद्र यादव कह रहे हैं कि एसआईआर कोई चुनावी मुद्दा ही नहीं था, उस पर विपक्ष को मेहनत नहीं करनी चाहिए थी लेकिन चुनाव से पहले उन्हें यह बहुत बड़ा मुद्दा दिखाई दे रहा था ।
कांग्रेस को खुद से ही एक बात सीखने की जरूरत है कि वो क्यों गांधी परिवार की गुलाम बन कर रह गई है। क्यों राहुल गांधी के बार-बार असफल होने के बावजूद वो उनके पीछे चल रही है। कांग्रेस जानती है कि गांधी परिवार उसकी मजबूरी है, अगर गांधी परिवार कांग्रेस से अलग हो गया तो कांग्रेस खत्म हो जाएगी । राहुल गांधी के सिर पर कितनी भी असफलताएं डाली जाएं लेकिन सच यही है कि वो ही कांग्रेस की आखिरी उम्मीद हैं । ऐसे ही मोदी इस समय देश की मजबूरी बन चुके हैं, क्योंकि उनसे बेहतर नेता इस समय देश में मौजूद नहीं है। भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो देश को एक स्थायी सरकार दे सकती है। जो लोग भाजपा या विपक्ष के कट्टर समर्थक हैं, वो क्या सोचते हैं, ये महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि जो लोग गुण-दोष के आधार पर अपना वोट डालते हैं, उनके सामने मोदी और भाजपा के अलावा क्या विकल्प है । राहुल गांधी कांग्रेस की मजबूरी हैं लेकिन देश की मजबूरी नहीं हैं। देश की मजबूरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बन चुके हैं. उनसे ज्यादा विश्वसनीय और लोकप्रिय चेहरा इस समय भारतीय राजनीति में कोई नहीं है। कांग्रेस की समस्या यह है कि उसके पास राहुल गांधी से ज्यादा विश्वसनीय और लोकप्रिय चेहरा नहीं है जिसे सामने रखकर वो पूरे देश में जनता से वोट मांग सकती है। समस्या यह है कि जनता राहुल गांधी के चेहरे पर वोट देने को तैयार नहीं है। भाजपा को ऐसी कोई समस्या नहीं है. जब भी मोदी राजनीति को अलविदा कहेंगे, तब भाजपा जिस भी चेहरे को आगे करेगी, उसे जनता का विश्वास मिल जाएगा । विपक्ष के लिए बड़ी समस्या यह है कि मोदी देश को अपना विकल्प देकर जाएंगे. वो इसके लिए नेताओं को तैयार कर रहे हैं।
राहुल गांधी सिर्फ कांग्रेस की समस्या नहीं हैं बल्कि वो पूरे विपक्ष की समस्या हैं क्योंकि उनके अलावा विपक्ष के पास प्रधानमंत्री का कोई और चेहरा नहीं है। वैसे तो विपक्ष किसी को भी प्रधानमंत्री का चेहरा बना सकता है. इसके लिए उसके पास कई अच्छे नेता हैं । समस्या यह है कि विपक्ष के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके नाम पर पूरे देश की जनता उसे वोट दे । इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के अलावा अन्य सभी विपक्षी दल सिर्फ एक राज्य तक सीमित हैं। बसपा, आम आदमी पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टियां एक से ज्यादा राज्यों में मौजूद हैं लेकिन ये दल इतने कमजोर हो चुके हैं कि विपक्ष का नेतृत्व नहीं कर सकते । एक तरह से ये दल तो अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं। विपक्ष कांग्रेस की कितनी भी आलोचना करे, लेकिन सच यह है कि कांग्रेस उसकी मजबूरी है और कांग्रेस की मजबूरी राहुल गांधी हैं । विपक्ष के अन्य दल राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं इसलिए उनमें नेतृत्व की जंग जारी है। विपक्ष के बड़े नेताओं में ममता बनर्जी, स्टालिन और अखिलेश यादव का नाम लिया जा सकता है लेकिन सवाल यह है कि क्या उनके नाम पर पूरे देश में विपक्ष वोट मांग सकता है। ये नेता अपने राज्यों में तो एक विश्वसनीय और लोकप्रिय चेहरा हैं लेकिन राज्य से बाहर निकलते ही इनका प्रभाव खत्म हो जाता है। विपक्ष के नेताओं में आपसी संघर्ष भी इतना ज्यादा है कि कोई किसी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं है।
सवाल यह है कि इस विपक्ष पर देश की जनता कैसे भरोसा कर सकती है। अगर ये दल गठबंधन बनाकर कोई वादा करते हैं तो उसकी जवाबदेही किसकी होगी, यह तय नहीं है। भारत की जनता में राजनीतिक जागरूकता और समझदारी इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है कि उसे बरगलाया नहीं जा सकता । 2024 का चुनाव लड़ने से पहले विपक्ष ने जो गठबंधन बनाया था, आज वो कहां है । चुनाव के बाद इस गठबंधन की किसी बैठक की जानकारी नहीं है। इसके पदाधिकारी कौन है, इसका कार्यालय कहां है, कोई नहीं जानता । दूसरी तरफ एनडीए लगातार मजबूत होता जा रहा है, भाजपा और इसके घटक दलों में गजब का तालमेल दिखाई दे रहा है। विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या विश्वसनीयता बन चुकी है और इससे छुटकारा पाना आसान होने वाला नहीं है।
राजेश कुमार पासी