पवन शुक्ला
वो पल कुछ अलग था — हवा में उम्मीद थी और आसमान किसी नए इतिहास का साक्षी बन रहा था। हर चौके पर गूंजता उल्लास, हर विकेट पर उभरता गर्व — यह सिर्फ खेल नहीं, बदलाव की आहट थी।
भारत की बेटियाँ मैदान पर थीं और देश की आँखों में एक नया आत्मविश्वास चमक रहा था। मुंबई के DY Patil स्टेडियम में जब भारतीय महिला टीम ने विश्वकप ट्रॉफी उठाई, तो लगा — यह जीत सिर्फ मैदान की नहीं, उस सोच की थी जिसने बेटियों को सीमाओं से आगे उड़ना सिखाया।
ICC Women’s Cricket World Cup 2025 के फाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर इतिहास रचा। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स और ब्रॉडकास्ट रिपोर्ट्स के अनुसार, मैच के दौरान लाइव व्यूअरशिप 190 मिलियन से अधिक रही — जो अब तक किसी भी महिला वर्ल्डकप फाइनल की सबसे ऊँची संख्या है।
टूर्नामेंट के पहले 13 मैचों को 60 मिलियन से अधिक दर्शकों ने देखा — यह 2022 संस्करण से पाँच गुना वृद्धि थी। कुल 7 बिलियन मिनट्स का वॉच-टाइम दर्ज किया गया — जो पिछले रिकॉर्ड से 12 गुना अधिक था। विज्ञापन दरों में 40% की वृद्धि ने साबित कर दिया कि महिला क्रिकेट अब केवल प्रेरणा नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी मज़बूत क्षेत्र है। यह आँकड़े केवल सफलता के प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव के संकेत हैं। भारत में खेल, विशेषकर क्रिकेट, अब लड़कियों के लिए भी सुरक्षित और सम्मानजनक करियर विकल्प बन चुका है।
भारतीय महिला क्रिकेट की यह सफलता किसी एक मैच या एक पीढ़ी की नहीं, बल्कि तीन दशकों के संघर्ष और समर्पण की कहानी है। झूलन गोस्वामी की रफ़्तार, मिताली राज का संयम, स्मृति मंधाना का आत्मविश्वास और हरमनप्रीत कौर की कप्तानी — इन सबने मिलकर वह मंच तैयार किया जिस पर आज की टीम ने विजय पताका फहराई। मिताली राज ने कभी कहा था — ‘हम सिर्फ टीम नहीं, आने वाली पीढ़ी के लिए रास्ता बना रही हैं।’ यह वाक्य आज साकार हो चुका है।
हर महिला खिलाड़ी के पीछे एक परिवार की अनकही कहानी है। कहीं पिता ने ज़मीन गिरवी रखकर बैट खरीदा, कहीं माँ ने अपने गहने बेचकर बेटी को कोचिंग भेजा। किसी छोटे शहर की बेटी के लिए सुबह चार बजे उठकर मैदान पहुँचना आसान नहीं था, लेकिन परिवारों ने इस यात्रा को सम्भव बनाया। आज की भारतीय टीम में हर चेहरा केवल व्यक्तिगत प्रतिभा नहीं, पारिवारिक संघर्ष का प्रतीक है। हरमनप्रीत कौर की माँ ने कहा था — ‘जब वो खेलती है, हम सब जीतते हैं।’
यह वाक्य आज भारत के हर घर की भावना बन चुका है।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) की नीतियों ने इस परिवर्तन को ठोस रूप दिया।
2018 के बाद से महिला टीम को पुरुष टीम के समान सुविधाएँ, कोचिंग स्टाफ और फिटनेस प्रोटोकॉल मिले। 2022 में शुरू हुई महिला प्रीमियर लीग (WPL) ने न केवल नई प्रतिभाओं को अवसर दिया, बल्कि आर्थिक स्थिरता भी प्रदान की। BCCI ने महिला खिलाड़ियों के लिए समान मैच फीस नीति लागू कर खेल में समानता की मिसाल पेश की। महिला खिलाड़ियों के लिए अब अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और उच्च स्तरीय विश्लेषण जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं — जो पहले केवल पुरुष टीम तक सीमित थीं। यह बदलाव खेल को केवल प्रदर्शन का नहीं, पेशेवर पहचान का माध्यम बना रहा है।
भारतीय महिला क्रिकेट की यह जीत सिर्फ ट्रॉफी तक सीमित नहीं; यह समाज के दृष्टिकोण में परिवर्तन की कहानी है।
जहाँ कभी बेटियों से कहा जाता था ‘खेल शौक़ है, पेशा नहीं’, अब वही परिवार उन्हें मैदान तक पहुँचाने में सबसे आगे हैं।
हर शाट, हर विकेट अब यह घोषणा बन गया है कि प्रतिभा का कोई जेंडर नहीं होता — और संघर्ष करने वाली हर बेटी, भारत की नई पहचान है। अब खेल केवल मनोरंजन नहीं, आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और आत्मविश्वास का मंच बन चुका है।
हर गेंद के साथ यह युग यह कह रहा है — अब खेल सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं, यह सोच की उड़ान बन चुका है।
फाइनल में शैफाली वर्मा ने 87 रनों की आक्रामक पारी खेली और दो विकेट लेकर मैच पलट दिया। मैच के बाद उन्होंने कहा — ‘भगवान ने मुझे इसी पल के लिए भेजा था।’
उनकी आँखों में आत्मविश्वास नहीं, क्रांति थी। हरमनप्रीत कौर ने उनके बारे में कहा — ‘जब सब दबाव में थे, शैफाली ने खेल में यकीन दिखाया। वहीं से हम जीत गए।’
उन शब्दों में सिर्फ खेल की बात नहीं थी — उनमें वह जज़्बा था जिसने हर लड़की को यह विश्वास दिलाया कि मैदान पर कोई सीमा नहीं होती। हर शॉट, हर थ्रो, हर रन के साथ वे यह साबित कर रही थीं कि अब खेल उनके हाथों में ही नहीं, उनके सोच और साहस में भी बसता है। वो पल मानो यह कह रहा था — अब बेटियाँ सिर्फ खेल नहीं रही हैं, वे आने वाले युग की दिशा तय कर रही हैं।
आज भारत में क्रिकेट सिर्फ़ एक खेल नहीं, एक क्रांति बन चुका है। हर गली में बल्ला थामे कोई बेटी अब सपने नहीं देखती — उन्हें साकार करती है।
हर चौके के साथ उम्मीद उड़ती है, हर छक्के के साथ सोच की सीमाएँ टूटती हैं।
अब मैदान पर सिर्फ़ गेंद नहीं चलती — इतिहास लिखा जाता है।
और इन बेटियों के हर शॉट में गूंजता है एक संदेश — भारत अब बेटियों के साथ नहीं, बेटियों के बल पर जीत रहा है।