समाज

ईश्वर के अस्तित्व पर बहस निरर्थक है

राजेश कुमार पासी

प्रसिद्ध यूट्यूब चैनल लल्लनटॉप ने ‘डज़ गॉड एग्जिस्ट’ के शीर्षक के साथ एक बहस का आयोजन किया जिसकी वीडियो क्लिपिंग सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके से वायरल हो रही हैं। इसके अलावा इस बहस पर सोशल मीडिया में चर्चा गर्म है। ये बहस इस्लामिक विद्वान मुफ़्ती शमाइल नदवी और मशहूर लेखक और शायर जावेद अख्तर के बीच रखी गई थी। नदवी ईश्वर के अस्तित्व के पक्ष में और जावेद अख्तर इसके विरोध में बहस कर रहे थे। ईश्वर के होने या न होने पर बहस का कोई परिणाम नहीं निकल सकता, इसलिए इस बहस में न कोई जीता और न ही हारा। नास्तिकता अपने आप में एक विवादित विचारधारा है क्योंकि एक तरह से हम सब नास्तिक हैं । एक अनुमान के अनुसार दुनिया में नास्तिकों की संख्या 100 करोड़ के करीब पहुंच चुकी है और दुनिया बड़ी तेजी से नास्तिकता की ओर बढ़ रही है। जो खुद को आस्तिक कहते हैं, उनका भी एक अपना भगवान है, इसलिए उनके लिए वो सभी नास्तिक हैं, जो उनके ईश्वर को नहीं मानते ।

सब धर्मों में अपने-अपने भगवान हैं और सब अपने भगवान को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। इस्लाम में तो अल्लाह के सिवाए कोई और ईश्वर न होने की बात कही गई है। हिन्दू धर्म में तो कई भगवान हैं लेकिन इसके लिए कोई झगड़ा नहीं है। ईसाई और मुस्लिम दोनों ही एकेश्वरवाद में विश्वास करते हैं लेकिन दोनों के ईश्वर अलग-अलग हैं जबकि दोनों ही अब्राहमिक धर्म हैं । देखा जाए तो ईश्वर को लेकर सभी धर्मों में एक राय नहीं है । इस्लामिक विद्वान नदवी और जावेद अख्तर के बीच लगभग दो घंटे बहस चली, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला । अगर ये बहस दो साल या दो सौ साल भी चलती है तो कोई परिणाम नहीं निकलेगा। वास्तव में सच तो यह है कि कोई भी ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध नहीं कर सकता, तो दूसरी तरफ कोई भी ईश्वर का अस्तित्व न होने को भी सिद्ध नहीं कर सकता ।

जावेद अख्तर ने तर्क दिया है कि जो ईश्वर के होने का दावा करते हैं, उन्हें ही सबूत देना होगा कि ईश्वर है । जो ईश्वर को नहीं मानता, उस पर ईश्वर के न होने को साबित करने की जिम्मेदारी नहीं है। इस बहस को इस्लाम पर केंद्रित होने से बचाया गया. इसे सिर्फ आस्तिकता और नास्तिकता के ऊपर केंद्रित रखा गया। चैनल इस मुद्दे की गंभीरता को समझ रहा था। जावेद अख्तर ने इंसानी दुख-दर्द और ईश्वर की अवधारणा में मौजूद नैतिक विरोधाभासों पर अपनी जोरदार दलील दी जिनको काटना नदवी के लिए संभव नहीं था ।

नास्तिकता के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क यह है कि ये ब्रह्मांड जितने सुव्यवस्थित तरीके से चल रहा है, उससे ही साबित होता है, कि कोई इसे चलाने वाला जरूर है। । इस ब्रह्मांड में एक ट्रिलियन से ज्यादा आकाशगंगाओं के होने का अनुमान है और एक आकाशगंगा में 400 बिलियन से ज्यादा तारों के होने का अनुमान है। आज विज्ञान यह भी कहने लगा है कि ब्रह्मांड भी एक से ज्यादा हैं । इस तरह से देखा जाए तो हमारे सौरमंडल जैसे कई ट्रिलियन सौरमंडल हो सकते हैं । इसकी संभावना भी है कि हमारी धरती की तरह जीवन के अनुकूलता वाले ग्रह भी कई बिलियन हो सकते हैं। मेरा मानना है कि ब्रह्मांड की विशालता को देखते हुए हमारी धरती की हैसियत सहारा रेगिस्तान में रेत के कण के बराबर है । सवाल यह है कि इतनी बड़ी कायनात को चलाने वाला क्या हमारी पहुँच में आ भी सकता है। अगर आस्तिकों की इस बात को मान भी लिया जाए कि इस ब्रह्मांड को चलाने वाला जरूर है तो उन्हें बताना चाहिए कि क्या हमारी हैसियत इतनी है कि वो हम पर नजर रखे हुए है । क्या हमारी इतनी हैसियत है कि वो एक दिन हमारा हिसाब-किताब करेगा ।

दूसरा सवाल यह है कि अगर ईश्वर ने इस दुनिया को बनाया है तो उसे किसने बनाया है। क्या दुनिया के बनने के बाद ईश्वर बना है । ऐसा तो नहीं है कि ईश्वर ने ब्रह्मांड के निर्माण के बाद कुछ नियम-कायदे बनाकर इससे दूरी बना ली है। ये सोचने की वजह यह है कि कहीं से भी ऐसा नहीं लगता है कि ईश्वर इस दुनिया में दखल दे रहा है। जैसे हमारी एक उम्र तय है, वैसे ही हर तारे और ग्रह की एक उम्र तय है। जैसे हम पैदा हुए और एक दिन मर जायेंगे, ऐसे ही हर तारा और ग्रह एक दिन खत्म होJ जाएगा। क्या यह सच नहीं है कि ईश्वर की बनाई गई व्यवस्था ने इस धरती को बनाया है और यही व्यवस्था एक दिन उसे खत्म कर देगी । ये जरूरी तो नहीं है कि ईश्वर सब कुछ बना रहा है और फिर उसे खत्म कर रहा है।

यह तो विज्ञान हमें बता चुका है कि नए तारे और ग्रह बन रहे हैं और पुराने खत्म हो रहे हैं । इसका मतलब यह है कि सब कुछ एक साथ नहीं बना है और न ही सब कुछ एक साथ खत्म हो रहा है। एक व्यवस्था के तहत नया बन रहा है और पुराना खत्म हो रहा है। ब्रह्मांड को बने कई बिलियन वर्ष हो चुके हैं जबकि हमारी धरती बहुत बाद में बनी है और मनुष्य तो कुछ हजार साल पहले ही आये हैं। अगर ईश्वर को मनुष्य का निर्माण करना था तो उसने इतनी देर से ऐसा क्यों किया। क्या विज्ञान की बात सही है कि धरती पर जीवन धीरे-धीरे विकसित हुआ है। इसका मतलब है कि हमें ईश्वर ने नहीं बनाया है बल्कि हम धरती पर जीवन के विकासक्रम में पैदा हो गए हैं और एक दिन खत्म हो जाएंगे । विज्ञान कहता है कि कई वजहों से धरती पर जीवन कभी भी खत्म हो सकता है। इसका मतलब है कि ईश्वर हमारे आने से पहले भी था और हमारे जाने के बाद भी रहेगा। क्या कारण है कि ईश्वर ने हमें बहुत थोड़े समय के लिए बनाया है। अगर हम ईश्वर के लिए महत्वपूर्ण हैं तो उसने इतनी देर से हमें क्यों पैदा किया और पैदा होने से पहले ही खत्म होने का इंतजाम भी कर दिया।

इससे तो मुझे लगता है कि हम अपने आपको कुछ ज्यादा ही महत्व दे रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि ईश्वर की नजर में हमारी कोई हैसियत ही नहीं है। इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस समय कई ऐसी धरती होंगी, जहां जीवन चल रहा होगा। धरती पर मानव जाति के पैदा होने से पहले कई ग्रहों पर जीवन पैदा हुआ होगा और खत्म हो चुका होगा । कई ऐसे ग्रह होंगे, जहां हमारी धरती के बाद जीवन पैदा होगा और यह सिलसिला चलता रहेगा। इस तरह से देखा जाए तो ईश्वर के होने या न होने से हम पर कोई असर नहीं पड़ता । संयोग से पृथ्वी पर मानव जाति का जन्म हो गया हो गया है और एक दिन खत्म अंत हो जाएगा।

आज बिगड़ते पर्यावरण के कारण हम धरती पर जीवन खत्म होने का अंदेशा जता रहे हैं। इस पर्यावरण को हमने ही खराब किया है लेकिन कोई हमें रोकने नहीं आया। अगर हमारी हरकतों से धरती पर जीवन खत्म हो जाता है तो इसके लिए हम खुद जिम्मेदार होंगे। एक तरह से ये हमारे कर्मो की सजा होगी । सवाल यह है कि मानव के अतिरिक्त जो प्रजातियां धरती पर रहती हैं, उनके खत्म होने के लिए कौन जिम्मेदार होगा। सच तो यह है कि हमारे कारण पहले ही इस धरती से कई प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं। आस्तिक कहते हैं कि ईश्वर की मर्जी के बिना यहां पत्ता भी नहीं हिलता। क्या यह माना जाए कि ईश्वर ने मानव जाति का निर्माण इस धरती पर जीवन समाप्ति के लिए किया है। जावेद अख्तर ने गाजा का जिक्र करते हुए कहा कि वहां 45000 बच्चे मारे गए हैं, उन्हें ईश्वर ने क्यों नहीं बचाया। नदवी इसे इंसान के फ्रीवील का नतीजा बताते हैं । वो गाजा जैसी घटनाओं को ईश्वर द्वारा इंसान को टेस्ट करने का तरीका है। सच तो यह है कि ये हमारी व्यवस्था का नतीजा है। ईश्वर मासूम बच्चों को दर्दनाक मौत देकर हमारा टेस्ट क्यों लेगा । उनका कहना है कि ईश्वर इसके बदले हमें ऐसी सजा देगा जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।

दूसरी तरफ हिन्दू धर्म है, जो कहता है कि इंसान अपने कर्मो की सजा भुगतता है । मेरा मानना है कि इंसान सिर्फ अपने कर्मो की सजा नहीं भुगतता है बल्कि दूसरों के कर्मो की सजा भी भुगतता है । आज जो दुनिया हम देख रहे हैं, उसके इस स्वरूप के लिए वो लोग जिम्मेदार हैं, जो कब के इस दुनिया से जा चुके हैं। इस धरती पर मानव के आने से पहले ईश्वर की बात करने वाला कोई नहीं था । जानवरों, पक्षियों और अन्य जीवों को ईश्वर से कोई मतलब नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि दुनिया को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए हमने ही ईश्वर का निर्माण अपनी सहूलियत को देखते हुए किया है। धर्मों की यह विशेषता है कि वो ईश्वर का डर दिखाकर मनुष्य को अनुशासन में रखते हैं। समस्या यह है कि धर्म इसमें भी कामयाब नहीं हुए हैं। इसके कारण ही राजनीति पैदा हुई जिसने मनुष्यों को अनुशासन में रहने के लिए मजबूर किया । दूसरी तरफ धर्म और राजनीति के कारण मानव जाति को बेइंतहा जुल्म और शोषण का सामना करना पड़ा है। अंत में इतना कहना चाहता हूं कि ईश्वर के अस्तित्व पर बहस नहीं होनी चाहिए. बहस इस पर होनी चाहिए कि इस दुनिया को बेहतर कैसे बनाया जाए । ईश्वर के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है, इसलिए उसे भुलाकर इंसानों की बात की जाए। वो कहीं दूर बैठकर हमें देख रहा है तो हमारी हरकतों पर शर्मिंदा न हो, सिर्फ इसका ध्यान रखने की जरूरत है। अगर ईश्वर एक है, तो उसके बनाये सभी मानव भी एक हैं ।

राजेश कुमार पासी