सार्थक पहल

वाराणसी में पर्यावरण संरक्षण को समर्पित – ग्रीन प्लाटून

 
डा. अरविन्द कुमार सिंह
 
वैज्ञानिको का आकलन है कि प्रति पाॅच डिग्री सेन्टीग्रेड से लेकर एक दशमलव पाॅच डिग्री सेन्टीग्रेड पृथ्वी का तापमान प्रति वर्ष बढ रहा है। यदि तापमान इसी रफ्तार से बढता रहा तो 2050 तक पृथ्वी का बढा हुआ तापमान, पर्वतिय अंचलो के सारी बर्फो को पिघलाकर पानी के रूप में तब्दील कर देगा। परिणाम – समुद्र का तल एक से लेकर 1.5 मीटर तक उॅचा हो जायेगा। दूसरे शब्दो में संर्पूण पृथ्वी जल की आगोश में सिमट जायेगी।
कभी हमने बी.ए की कक्षाओं में जयशंकर प्रसाद की कामायनी के अन्र्तगत पढा था –
    हिमगिरी के उत्तंग शिखर पर
बैठ शिला की शितल छाॅव
एक पुरूष भीगे नयनो से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
वैज्ञानिको कहते है यदि समय रहते हमने होश नही सम्भाला तो यह दृश्य दुबारा उपस्थित हो सकता है। फर्क सिर्फ इतना होगा न कोई इसका वर्णन करने वाला जयशंकर प्रसाद होगा और ना ही कोई इसे सुनने वाला। अब यदि यह आपदा उपस्थित होगा तो इसकी जिम्मेदारी सिर्फ हमारी और आपकी होगी।
अब वाराणसी को ही ले लिजिए। कल तक उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक गर्म स्थान आगरा हुआ करता था। आज वाराणसी और इलाहाबाद है। कारण स्पष्ट है। स्वर्णिम चर्तुभुज योजना के अन्र्तगत सडक बनाने के लिये इलाहाबाद से वाराणसी तक के बीच के सारे पेड काट दिये गये। तापमान तो बढना ही था।
शहर आज की तारिख में कांक्रीट के जगंल के रूप में तब्दील हो चुका है। हमारे गर्म आॅसुओं को पोछने के लिये  अब शहर में मात्र काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, सेना का छावनी इलाका, डी.एल डबलू तथा उदय प्रताप कालेज की हरियाली से बहती हुयी ठण्डी हवा ही बची है। ये सोच  है, जहा से ग्रीन प्लाटून का जन्म हुआ।
ग्रीन प्लाटून ने पर्यावरण की कोख से जन्म लिया। थोडा तफसील में चलेगे इसको समझने के लिये –
प्लाटून शब्द सेना का बोध कराता है। सेना एक ऐसे संगठन का बोध कराती है, जिसके लिये कोई भी कार्य असम्भव नही है। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण से ग्रीन प्लाटून शब्द का जुडना चुनौतियों को स्वीकार करने की दिशा में उठाया गया एक मजबूत कदम है।
बात 2004 की है। मेरठ में एनसीसी अधिकारियो की कार्यशाला आयोजित थी। 17 से 26 जून 2004 तक हम मेरठ में थे। एक्स टैम्पोर लेक्चर में मुझे पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। मेरे व्याख्यान से प्रभावित होकर सनातन धर्म इण्टर कालेज मेरठ के एनसीसी अधिकारी ने मुझसे अपने विद्यालय में एक व्याख्यान हेतु आमंत्रण दिया।
दूसरे दिन तकरीबन चार बजे मैं उस विद्यालय में व्याख्यान हेतु पहुॅचा। पूरा विद्यालय प्र्यावरण संरक्षण का एक अनुपम उदाहरण था। विद्यालय में लगे गोल्डन डोरेन्टा के पौधे जून माह में आॅखों को एक अजीब शीतलता प्रदान कर रहे थे। उसी वक्त मैंने निश्चय किया कि अपने विद्यालय को भी पर्यावरण संरक्षण की दृष्टीकोण से मैं समृद्धि एवं मजबूत बनाउॅगा।
वापस आने के बाद मात्र पन्द्रह गोल्डन डोरेन्टा के पौधो को मैंने विद्यालय में लगाया। मुझे जानकारी प्राप्त हुयी कि इसकी कटिंग लगायी जाती है। उन दिनो वाराणसी में इस पौधे का अभी प्रचलन प्रारम्भ हुआ था। धीरे धीरे सम्पूर्ण विद्यालय में हमने इस पौधे को लगाया।  पौधारोपण का कार्य तो बहुत पहले से चल रहा था। माध्यम एनसीसी था। नेशनल कैडेट कोर के द्वारा आयोजित तीन साहसिक साईकिल अभियान में मैं शामिल हुआ। वाराणसी से खुजराहो मेरी प्रथम साईकिल यात्रा थी। आठ सौ पचास किमी की यात्रा हमने पूरी की।लगभग पाॅच सौ पौधो का हमने रोपण किया। पाॅच मार्च से पन्द्रह मार्च 1994 के बीच यह यात्रा हमने की। दूसरी यात्रा वाराणसी से मिर्जापुर करछना इलाहाबाद, जौनपुर होते हुये पुन वाराणसी आकर समाप्त हुयी। एक हजार किमी की दूरी हमने तय की। सोलह से सताईस सितम्बर 2001 के बीच हमने कुल पाॅच सौ पौधो का रोपण किया। तिसरी यात्रा काफी दिलचस्प थी। इस बार हम उत्तर प्रदेशिय बौद्ध परिपथ की यात्रा पर थे। पुन पाॅच सौ पौधो का रोपण किया और तकरीबन 1900 किमी की दूरी तय की।
इसी बीच हमारी मुलाकात ले. कर्नल संजीव सहाय से हुयी। ये हमारे समादेश अधिकारी थे। उन्होने एक बहुत उम्दा सुझााव दिया। कहा – ‘‘ अरविन्द , क्यो न आप एक ग्रीन प्लाटून बनाये। इसमें रिटार्यड सेना के अधिकारी, एनसीसी अधिकारी तथा एनसीसी के अन्डर आफिसर हो। जिनका मकसद – पौधारोपण, पर्यावरण संरक्षण एवं सम्ब्र्द्धन हो।’’ बात आयी गयी हो गयी। इस बीच हम पर्यावरण पर कार्य करते रहे।
आखिरकार आठ सितम्बर 2013 को ग्रीन प्लाटून अस्तीत्व में आ ही गया। रविवार का दिन था। उदय प्रताप इण्टर कालेज में मैने पत्रकार वार्ता बुला रखी थी। शहर के सभी सम्मानित और प्रतिष्ठीत प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार बन्धु उपस्थित थे। एक अन्य कारण से भी यह पत्रकार वार्ता मेरे लिये अविस्मरणीय है। मेरे अभिन्न मित्र तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया सीटी चैनेल के पत्रकार नरेश चन्द्र रूपानी का यह आखिरी पत्रकार वार्ता थी। बाद में उनका देहान्त समाचार कवरेज करते हुये गंगा में डूबकर हो गयी थी। उन्हे तैराना नही आता था।
मुझे याद है, रूपानी ने मुझसे बहुत से सवाल किये थे साथ ही बेशकिमती सुझाव भी दिया था। उसने कहा था – ‘‘ अरविन्द हो सके तो पीपल और नीम के पौधे प्राथमिकता के आधार पर लगाना क्यो कि आज की तारिख में ये पौधे विलुप्त हो रहे है।’’ हमने रूपानी के सुझााव को मद्दे नजर रखते हुये इसे अपने केन्द्रिय भाव में रखा ।सारे समाचार पत्रो ने दूसरे दिन इस पत्रकार वार्ता को प्रमुखता से अपने समाचार पत्रो मे जगह दिया। आज ग्रीन प्लाटून पर्यावरण के क्षेत्र में लगातार आपरेशन हरियाली के अन्र्तगत  पौधारोपण, संरक्षण एवं पर्यावरण जनजागरण का कार्य कर रही है। इस प्लाटून को सेना के अवकाश प्राप्त सैन्य अधिकारियो का आशवाद प्राप्त है।
ग्रीन प्लाटून का एक ही मकसद है।वाराणसी शहर को आक्सीजन टैंक में तब्दील करना। पहला कदम विद्यालयो को पर्यावरण के प्रति प्रोत्साहित करना। उदय प्रताप कालेज में इस संस्था ने काफी सराहनिय कार्य किया है। इस संस्था ने 100 बटालियन एनसीसी उदय प्रताप कालेज तथा विद्यालय स्थित इलाहाबाद बैंक के सहयोग से कई पौधारोपण के कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है।
 आज ग्रीन प्लाटून के अन्र्तगत कर्नल संजीव सहाय, ले.कर्नल ए.के. यादव, ले. कर्नल पी.के. सिंह, ले. कर्नल एस.एम. सिंह, कैप्टन ओ.पी सिंह, ले. प्रवीण श्रीवास्तव, पूर्व एनसीसी अधिकारी संतोष कुमार मिश्रा, कृषि वैज्ञानिक डा. कुलदीप सिंह, केयर टेकर एनसीसी अधिकारी भानू प्रताप सिंह, पूर्व एनसीसी अन्डर आफिसर अभिषेक मिश्रा तथा गोविन्द केशरी जैसे कर्मठ एवं कर्तव्यनिष्ठ सदस्यो की टुकडी पर्यावरण के प्रति सतत कार्यशील एवं जागरूक है।
अधिक से अधिक पौधारोपण, उनका संरक्षण तथा पर्यावरण जनजागरण के प्रति ग्रीन प्लाटून प्रतिबद्ध है।