कविता

पूछ परख के चक्कर में घनचक्कर हुआ लोकतंत्र

-जावेद उस्मानी-
poem

मर गए अनगिनत गरीब देखते सियासी तंत्र मंत्र
महंगाई की ज्वाला से घिरा व्याकुल सारा प्रजातंत्र
कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, जंगल बना जनतंत्र
पूंजीधीश के गले लगते भजते विकास का महामंत्र
हवा पानी तक हजम कर गए जिनके उन्नत सयंत्र
अच्छा है यदि जपें न्याय सम्मत जनहित का जंत्र
लोकहित के नारों के पीछे, न स्वार्थ हो न षड्यंत्र