कविता

आज गए धर्मेंद्र जी…

एक-एक कर जा रहे हैं, कोई उन्हें रोक न पाए।
आज धर्मेंद्र जी भी चले, जग को बिना बताए।
असरानी जी मुस्कानों संग, यादों में बस रह जाएँ।
सतीश जी की मधुर हँसी, दिल को फिर से रुलाए।

पर्दे का हर एक दृश्य, अब थोड़ा सूना-सूना है।
जैसे कोई अपना बढ़कर, हमसे दूर चला है।
बीते दिनों की बातें, अब दुआओं में रह गईं।
चलती राहों में उनकी, खुशबू सौरभ बह गई।

कलाकार यूँ जाते नहीं, बस रूप बदलकर आते हैं।
कहानियों, गीतों में ढलकर, फिर दिल में मुस्काते हैं।
एक युग जैसे ढलता है, पर यादें अमर हो जाती हैं।
उनके हर संवाद में, जीवन की गूँज सुनाई देती है।

मन झुककर नमन करता है, इन प्यारी आत्माओं को।
प्रभु दे शांत विश्राम उन्हें, अपने दिव्य द्वारों को।
हम यादों की बाती जलाकर, श्रद्धा से दीप सजाएँ।
ॐ शांति कहकर उनके लिए, मन से प्रार्थना गुनगुनाएँ। 🙏

  • डॉ सत्यवान सौरभ