डिजिटल इंडिया: मोदी संग बदलता भारत

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पवन‌ शुक्ला

भारत का चेहरा बदल रहा है। जहाँ कभी नागरिकों के जीवन में सरकारी दफ्तरों की लंबी कतारें और जटिल प्रक्रियाएँ सबसे बड़ी बाधा थीं, आज वहीं मोबाइल ऐप, QR कोड, स्मार्ट सिटी की रफ़्तार और ऑनलाइन सेवाओं की सहज उपलब्धता आम बात हो गई है। यह परिवर्तन किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि और “डिजिटल इंडिया” जैसे महत्त्वाकांक्षी अभियान की उपज है, जिसने शासन को नई परिभाषा दी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में डिजिटल इंडिया की शुरुआत करते हुए स्पष्ट संदेश दिया था कि 21वीं सदी का भारत तकनीक की ताक़त से ही अपने सपनों को साकार करेगा। उन्होंने इसे केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि नागरिकों को सशक्त बनाने का आंदोलन बताया। यही कारण है कि आज गाँव से लेकर महानगर तक हर वर्ग इस परिवर्तन की धड़कन महसूस कर रहा है।

मोदी का लक्ष्य था “ई-गवर्नेंस से एम-गवर्नेंस” तक की यात्रा—यानी शासन अब फाइलों और दफ्तरों तक सीमित न रहकर सीधे नागरिकों की हथेली पर, उनके मोबाइल स्क्रीन पर पहुँचे। भारतनेट परियोजना इसी सोच की रीढ़ बनी। जनवरी 2025 तक 2.18 लाख ग्राम पंचायतें हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड से जुड़ चुकी थीं और 6.92 लाख किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर बिछाया जा चुका था। परिणाम यह हुआ कि गाँव का युवा अब सिर्फ जानकारी पाने वाला नहीं, बल्कि तकनीक का सक्रिय भागीदार बन गया। आँकड़े बताते हैं कि 15–29 वर्ष आयु वर्ग के 90% से अधिक ग्रामीण युवा अब इंटरनेट का नियमित उपयोग कर रहे हैं—यह आँकड़ा केवल कनेक्टिविटी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास का प्रतीक है।

वित्तीय क्षेत्र में सबसे बड़ी क्रांति आई। अगस्त 2025 में UPI के ज़रिए 20 अरब से अधिक मासिक लेन-देने दर्ज हुए जिनकी कुल राशि ₹24.85 लाख करोड़ से अधिक रही। पहले जहाँ गाँवों में नक़द और बिचौलियों पर निर्भरता थी, अब छोटे दुकानदार, महिलाएँ और किसान भी QR कोड से लेन-देने करने लगे हैं। EY–CII रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में 38% लोग UPI को सबसे पसंदीदा भुगतान तरीका मानते हैं और 73% MSMEs ने डिजिटल टूल्स से अपने कारोबार में बढ़ोतरी पाई है। शहरी भारत में भी यह बदलाव गहरा है, जहाँ लगभग 90% उपभोक्ता ऑनलाइन ख़रीदारी के लिए डिजिटल भुगतान को प्राथमिकता दे रहे हैं।

भूमि और संपत्ति के अधिकारों में भी डिजिटलीकरण ने नया विश्वास जगाया। स्वामित्व योजना में ड्रोन और GIS तकनीक से गाँव की ज़मीन और मकानों की मैपिंग की जा रही है और अब तक 65 लाख से अधिक प्रॉपर्टी कार्ड वितरित हो चुके हैं। किसान इन कार्डों को गिरवी रखकर बैंक से आसानी से लोन ले पा रहे हैं।

शिक्षा और स्वास्थ्य में डिजिटलीकरण ने ग्रामीण और शहरी जीवन दोनों की दिशा मोड़ दी है। “ज्ञान कोश”, DIKSHA और SWAYAM जैसे ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म ने छात्रों को घर बैठे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी है। स्वास्थ्य क्षेत्र में टेली-हेल्थ और आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन ने लाखों लोगों को डिजिटल हेल्थ आईडी और ऑनलाइन परामर्श से जोड़ा। शहरी भारत में लगभग 70% स्वास्थ्य परामर्श अब टेलीमेडिसिन के माध्यम से हो रहे हैं, जिससे अस्पतालों की भीड़ घटी है और मरीजों को समय व लागत में बचत हुई है। POSHAN ट्रैकर ऐप ने आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को बच्चों और महिलाओं की पोषण स्थिति दर्ज करने में मदद दी है।

सरकारी सेवाओं का डिजिटलीकरण भी नागरिक जीवन को आसान बना रहा है। ई-लॉकर ने प्रमाणपत्रों को डिजिटल रूप में सुरक्षित रखने की सुविधा दी है। अब नौकरी या छात्रवृत्ति के लिए बार-बार दस्तावेज़ जमा करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। आधार और DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है और करोड़ों लोगों को सीधे लाभ मिला है।

रेलवे ने भी डिजिटलीकरण को अपनाया है। अब यात्रियों को लंबी कतारों में खड़े होने की ज़रूरत नहीं। UTS मोबाइल ऐप, QR आधारित टिकट और ट्रेन की लाइव ट्रैकिंग से यात्रा सुविधाजनक हो गई है। बैंकिंग और ई-कॉमर्स ने भी दिनचर्या बदल दी है। डिजिटल KYC और मोबाइल बैंकिंग से खाता खोलना और लेन-देन आसान हुआ है। छोटे व्यापारी अब अमेज़न, फ्लिपकार्ट और ONDC नेटवर्क जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर सीधे अपना सामान बेच रहे हैं। गाँव से शहद और हस्तशिल्प तो शहरों से इलेक्ट्रॉनिक्स—सब डिजिटल मार्केटप्लेस पर उपलब्ध है।

शहरी जीवन पर डिजिटलीकरण का असर और भी गहरा है। Smart Cities Mission के तहत देश के 100 शहर चुने गए, जिनमें से लगभग 94% प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं। इन शहरों में स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट, सीसीटीवी आधारित सुरक्षा, डिजिटल जल और बिजली आपूर्ति, अपशिष्ट प्रबंधन और स्मार्ट स्ट्रीट लाइटिंग ने जीवन को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाया है। अब तक 8,067 प्रोजेक्ट्स में से 7,555 पूरे हो चुके हैं और ₹1.51 लाख करोड़ से अधिक का निवेश किया जा चुका है।

5G नेटवर्क ने भी शहरी जीवन की गति बदल दी है। देश में अब 4.69 लाख 5G बेस ट्रांससीवर स्टेशन (BTSs) काम कर रहे हैं और 99.6% जिलों में कवरेज पहुँच चुका है। लगभग 25 करोड़ ग्राहक 5G सेवाएँ इस्तेमाल कर रहे हैं। स्मार्टफ़ोन बाज़ार में 87% नए फोन 5G समर्थित हैं। इससे तेज़ इंटरनेट ने ई-हेल्थ, ई-लर्निंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, क्लाउड-वर्किंग और ऑनलाइन मनोरंजन को नए आयाम दिए हैं। ऑफिस का काम अब घर से, कोर्ट की सुनवाई वर्चुअल मोड से और बैंकिंग मोबाइल से—ये सब शहरी जीवन का हिस्सा बन चुके हैं।

ग्रामीण जीवन में भी बदलाव की प्रेरक कहानियाँ हैं। प्रयागराज जिले में मॉडल डिजिटल गाँवों का प्रयोग हो रहा है। गुजरात में एक सरपंच रिपिन गामित ने इंस्टाग्राम रील्स पर सरकारी योजनाओं की जानकारी देनी शुरू की और सैकड़ों परिवारों को योजनाओं का लाभ दिलाया। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में 400 नए BSNL टावर लगाए जा रहे हैं जिससे दूरस्थ क्षेत्रों में भी इंटरनेट उपलब्ध हो रहा है।

इन पहलों का असर केवल आम नागरिक पर नहीं, नौकरशाही पर भी पड़ा है। मंत्रालयों और विभागों में फाइलें अब डिजिटल मोड में तेजी से निपट रही हैं। पीएम गति-शक्ति योजना ने मंत्रालयों के बीच समन्वय को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लाकर बड़े प्रोजेक्ट्स की निगरानी आसान की है। पहले जहाँ एक परियोजना में महीनों लग जाते थे, अब एकीकृत डैशबोर्ड से समय पर निर्णय और निगरानी संभव हो पाई है।

चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं—डिजिटल साक्षरता की कमी, साइबर सुरक्षा खतरे और नेटवर्क की असमान पहुँच। लेकिन इन बाधाओं के बावजूद यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिजिटल इंडिया पहल ने भारत के शासन और नागरिक जीवन को नया आयाम दिया है।

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