विविधा

मानो अब ही पता चलेगी जाति!

-लीना

विभिन्न मीडिया पर इन दिनों जंग छिड़ी है। जातिगत जनगणना को लेकर। चाहे वह प्रिंट मीडिया हो, इलेक्ट्रानिक हो या फिर ई मीडिया- बहस जारी है। कहीं जातिगत गणना होनी चाहिए या नहीं इसको लेकर पक्ष-विपक्ष में चर्चा जारी है तो कहीं इसे आधार बनाकर सर्वेक्षण कराए जा रहे हैं और सर्वेक्षण के आधार पर जातिगत जनगणना के विरोध में जमीन तैयार करने का प्रयास भी किया जा रहा है कि इतनी फीसदी लोग जातिगत जनगणना के विरोध में है।

हालांकि सरकारी तौर पर अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है कि जनगणना 2011 में जातियों की गिनती होगी ही और होगी तो किस तरह। बावजूद मात्र इसकी चर्चा से ही मानो भूचाल आ गया है। जातिगत जनगणना के विरोध में लेख पर लेख लिखे जा रहे है। दलील दी जा रही है कि इससे मानव से मानव के बीच दूरी बढ़ेगी, समाज में कटुता फैलेगी। मानों जनगणना में जाति बताने के बाद ही समाज में एक दूसरे की जाति का पता चल पाएगा! ऐसी दलील देने वाले क्या यह सोचते हैं कि जनगणना कर्मी पड़ोस में गणना करते हुए पहले घर की जाति बताते चलेंगें। या फिर उन्हें शायद यह नहीं मालूम कि जनगणना में जुटाए गए आंकड़े व्यक्तिगत रूप में सार्वजनिक नहीं किए जाते। विरोध में दलील देने वालों को यह खबर नहीं है कि स्कूल में दाखिले से लेकर नौकरी देने तक भी बच्चों से उनके बाप दादा के सरनेम पूछ-पूछ कर जाति पता की जाती है।

विरोध में यह दलील भी दी जाती है कि कुछ लोग जाति छुपाएंगे या कुछ आरक्षण का लाभ लेने के लिए खुद को पिछड़ा या अनूसूचित जाति-जनजाति का बताएंगे।

सचमुच! क्या जनगणना में जाति लिखा देने मात्र से ही नौकरियों में उन्हें आरक्षण मिल जाएगा! यदि ऐसा होता तो आज तक देश में सभी आरक्षण का लाभ लेने के लिए अनूसूचित जाति- जनजाति के हो गए होते क्योंकि इनकी गणना तो हर जनगणना में होती आई है।

सवाल है जातिगत जनगणना का विरोध करने वाले कौन लोग है। अगड़े। और हमारे देश में अभी भी निष्चित तौर पर वे बहुमत में हैं। तो अगर सभी अगड़े जातिगत जनगणना का विरोध करें तो निश्चित तौर पर जातिगत जनगणना के विरोधियों की गिनती बहुमत में ही होगी। तो फिर ऐसे सर्वेक्षण का क्या फायदा? हालांकि सर्वेक्षण में दिखाने के लिए कुछ पिछड़ों को भी शामिल किया गया है और आंकड़े में दिखाया गया है कि उनमें से भी कुछ जातिगत जनगणना के विरोध में हैं। शायद हों भी।

विरोध में और भी कई दलीलें हैं। कुछ बेतुके, तो कुछ गणना के तकनीकी पहलुओं को लेकर। निश्‍चय ही ऐसी मुश्किलें हरेक काम को लेकर आती हैं, जो आसानी से हल कर ली जाऐंगी।

”मेरी जाति है हिन्दुस्तानी” का दम भरने और जातिसूचक नाम व उपनाम को हटाने की बात करने वाले क्या जातिगत गणना का विरोध करने से पहले यह मुहिम चलाएंगें कि अगड़े अपनी जातिसूचक टाइटिल हटा दें और अपने बच्चों की शादियां पिछड़े या अनूसूचित जाति-जनजाति में ही करें। निश्चित तौर पर समाज में तब जाति व्यवस्था मिट जाएगी और अगड़े पिछड़े का भेद भी। क्या ऐसा मुहिम चलाने की कोई बात करेगा।

निश्चित तौर पर समाज का जातिवाद से कोई भला नहीं हो सकता। लेकिन आंकड़े जुटाने का मकसद इस आधार पर बेहतर सुविधाएं मुहैया कराना होता है। यह दीगर बात है कि राजनीति में ”मंशाएं” भिन्न होती हैं। लेकिन तब तो सबसे पहले समाज में मतदान का विरोध होना चाहिए जिससे गुंडा-बाहुबली भी जीत संसद पहुंच जाते हैं, पहले भ्रष्टाचार का विरोध हो, शोषण- अत्याचार का, गरीबी- अशिक्षा का, असमानता का….. विरोध हो। मुद्दे और भी हैं! जाति क्या है!