डोनाल्ड ट्रं
राजेश कुमार पासी
डोनाल्ड ट्रंप एक व्यापारी हैं और अपनी इस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं । सिर्फ सात महीनों के कार्यकाल में ही अपने फैसलों से वो न केवल विदेशों में बल्कि अपने ही देश में घिरते जा रहे हैं । बेशक वो एक व्यापारी हैं लेकिन वहां भी कोई बड़ी उपलब्धि उनके नाम नहीं है. वो केवल अपने पारिवारिक व्यापार को आगे बढ़ा रहे हैं । उनकी वर्तमान हालत को देखते हुए कहा जा सकता है कि उन्हें न तो घरेलू राजनीति की समझ है और न ही वो वैश्विक राजनीति को समझ पा रहे हैं । अभी तक सिर्फ उनकी नीतियों को लेकर सवाल उठाया जा रहा था लेकिन अब उनकी नीयत पर भी सवाल उठा दिया गया है । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने डोनाल्ड ट्रंप पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ अपने परिवार के व्यापारिक हितों के कारण भारत के साथ दशकों पुराने रिश्तों को खतरे में डाल दिया है ।
सुलिवन का कहना है कि ट्रंप ने निजी फायदे के लिए विदेश नीति का दुरुपयोग किया है जो अमेरिका के दीर्घकालिक हितों के लिए नुकसानदेह है । उन्होंने इसे अमेरिका के लिए बड़ा रणनीतिक दुस्साहस बताया है । देखा जाए तो यह एक बहुत ही गंभीर आरोप हैं क्योंकि इससे यह संदेश जाता है कि ट्रंप को केवल अपने निजी हितों की चिंता है । भारत के प्रति उनकी बेरुखी और सख्ती पर यह आरोप सवालिया निशान लगाते हैं । भारत तो पहले ही पूरी दुनिया में यह बता रहा है कि वो अमेरिका के खिलाफ कुछ नहीं कर रहा है, डोनाल्ड ट्रंप ही बेवजह उसे निशाना बना रहे हैं । अभी तक तो यह माना जा रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी हितों के लिए भारत को झुकाकर समझौता करना चाहते हैं लेकिन जेक सुलिवन के आरोप कुछ और ही कहानी सुना रहे हैं । ऐसा नहीं है कि यह बात पहले नहीं कही गई है लेकिन इस तरीके से खुलकर किसी प्रतिष्ठित अमेरिकी ने ट्रंप को निशाने पर नहीं लिया है ।
यह आरोप उस समय लगाया गया है, जब पूरे अमेरिकी मीडिया में एससीओ शिखर सम्मेलन की खबरें चल रही हैं । इस समय पूरा अमेरिकी मीडिया डोनाल्ड ट्रंप को खलनायक साबित करने पर लगा हुआ है और प्रधानमंत्री मोदी को नायक बनाने पर तुला हुआ है । यह तब हो रहा है जब अमेरिकी मीडिया को भारत विरोधी रवैये के लिए जाना जाता है । जेक सुलिवन ने कहा है कि भारत अमेरिका का विश्वसनीय और मजबूत सहयोगी है, विशेष तौर पर तकनीक, प्रतिभा और आर्थिक क्षमता की दृष्टि से भारत महत्वपूर्ण देश है । उनका कहना है कि भारत के साथ मजबूत संबंध चीन और अन्य वैश्विक खतरों से निपटने में मदद कर सकते हैं । उन्होंने कहा है कि ट्रंप की नीतियों का असर केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि उनकी नीतियों के कारण अमेरिका के अन्य मित्र देशों में भी यह संदेश चला गया है कि अमेरिका पर भरोसा करना जोखिम भरा कदम हो सकता है । देखा जाए तो उनकी इस बात में सच्चाई है क्योंकि जापान और आस्ट्रेलिया ने डोनाल्ड ट्रंप की परवाह न करते हुए भारत से अपने संबंधों को बढ़ाने की बात कही है । यूरोपीय देश भी भारत से सहयोग बढ़ाने की बात कर रहे हैं जबकि ट्रंप चाहते हैं कि यूरोपीय देश भारत पर अमेरिका की तरह टैरिफ लगा दें ।
सुलिवन का कहना है कि अमेरिका का वचन ही उसकी ताकत है, इसलिए मित्र देशों को यह भरोसा है कि अमेरिका रणनीतिक साझेदारियों में विश्वसनीय है । उन्होंने कहा है कि ट्रंप की नीति अमेरिका की विश्वसनीयता और अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व पर प्रश्न चिन्ह लगा सकती है । वास्तव में देखा जाए तो सेलिवन जो कह रहे हैं, वो होने का अंदेशा नहीं है बल्कि हो चुका है । अमेरिका की विश्वसनीयता तो सवालों के घेरे में आ चुकी है और उसके ही मित्र देश उससे परेशान हैं । डोनाल्ड ट्रंप पूरी दुनिया को अपने टैरिफ वॉर से डराकर मनमाना समझौता करना चाहते हैं । यूरोप सहित कई देशों से उन्होंने ऐसे समझौते कर भी लिए हैं । जिन देशों ने ट्रंप के दबाव में आकर समझौते कर लिए हैं, उन देशों में अमेरिका का विरोध बढ़ता जा रहा है ।
अमेरिका के मशहूर अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर जॉन मियशीर्मर ने ट्रंप प्रशासन की भारत नीति को बड़ी गलती माना है । उनका कहना है कि तेल खरीदने पर लगाए गए टैरिफ काम करने वाले नहीं हैं । उन्होंने कहा है कि अमेरिका के इस कदम से भारत के साथ रिश्तों को बड़ा नुकसान हुआ है और अब भारत अमेरिका से दूर जा रहा है । उन्होंने कहा कि यह हमारी बहुत बड़ी गलती है, यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर यहां क्या हो रहा है । उन्होंने ट्रंप पर आरोप लगाया है कि उन्होंने भारत के साथ मजबूत रिश्तों को जहरीला बना दिया है । उनका कहना है कि चीन को रोकना अमेरिका की सबसे बड़ी प्राथमिकता है और इसमें भारत अहम साझेदार है । ट्रंप के कारण भारत हमसे बहुत नाराज है, मोदी न सिर्फ रूस बल्कि चीन के भी करीब आ रहे हैं । उन्होंने इसके लिए ट्रेड सलाहकार नवारो को जिम्मेदार बताते हुए कहा है कि उनकी नीतियों का उल्टा असर हो रहा है । उन्होंने कहा है कि भारत को झुकाने की कोशिश की जा रही है लेकिन भारत जो कदम उठा रहा है उससे पता चलता है कि यह रणनीति गलत है । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन का कहना है कि सोवियत संघ से नजदीकी और चीन से बढ़ते खतरे के बावजूद पश्चिमी देशों ने भारत के साथ रिश्ते मजबूत किए थे, लेकिन ट्रंप के टैरिफ ने दशकों पुरानी सारी मेहनत बर्बाद कर दी है । उन्होंने कहा है कि ट्रंप ने आर्थिक दृष्टिकोण अपनाकर रणनीतिक फायदों को खतरे में डाल दिया है । उनका कहना है कि ट्रंप के कारण चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग को पूर्वी देशों के साथ अपने रिश्ते सुधारने का मौका मिल गया है, ट्रंप की अपनी विनाशकारी टैरिफ नीति के कारण सारे प्रयासों पर पानी फिर गया है । उनका कहना है कि ट्रंप कूटनीति को समझना ही नहीं चाहते है, उन्होंने चिनफिंग को पूर्व के साथ रिश्ते बेहतर करने का मौका दे दिया है ।
वास्तव में देखा जाए तो इन लोगों द्वारा जो कुछ कहा जा रहा है, वो एससीओ की बैठक से सच साबित होता दिखाई दे रहा है । जिस पाकिस्तान को अमेरिकी राष्ट्रपति गोद में उठाकर घूम रहे हैं, उस पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को उस बैठक में कोई पूछने वाला नहीं था । ट्रंप पाकिस्तान को भारत के बराबर रखकर देख रहे हैं लेकिन चीन और रूस ने दिखा दिया है कि भारत की ताकत क्या है । अमेरिकी मीडिया भारत विरोधी रवैया रखता है और भारत को ज्यादा महत्व नहीं देता लेकिन एससीओ की सफल बैठक के बाद भारत अमेरिकी मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है । अमेरिकी मीडिया ने डोनाल्ड ट्रंप को भारत-अमेरिकी संबंधों को खराब करने के लिए खलनायक की तरह पेश करना शुरू कर दिया है । कहा जा रहा है कि चीन नई विश्व व्यवस्था का समीकरण तैयार कर रहा है । प्रधानमंत्री मोदी के चीन में हुए भव्य स्वागत और चीन के राष्ट्रपति का उनके साथ व्यवहार अमेरिकी मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है । वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि राष्ट्रपति शी चिनफिंग एससीओ को सिर्फ सुरक्षा मंच नहीं बल्कि आर्थिक-सहयोगी ब्लाक बनाना चाहते हैं ।
सीएनएन, न्यूयॉर्क टाइम्स, ब्लूमबर्ग समेत ज्यादातर अखबारों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि ट्रंप ने अमेरिका की 25 सालों की मेहनत बर्बाद कर दी है । अमेरिकी मीडिया का कहना है कि ट्रंप ने एक झटके में भारत को रूस और चीन के खेमे में खड़ा कर दिया है । अमेरिकी मीडिया चिंता जता रहा है कि पीएम मोदी की रूस और चीन से नजदीकी उन्हें धीरे-धीरे अमेरिका से दूर कर रही है । द इकोनॉमिस्ट ने एससीओ शिखर सम्मेलन को भारत और चीन के बीच सुधरते रिश्तों का एक शानदार उदाहरण बताया है । द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि ट्रंप के बेमतलब फैसलों ने भारत को अमेरिका से दूर कर दिया है । अखबार ने लिखा है कि चिनफिंग ने इस कार्यक्रम का इस्तेमाल चीन की वैश्विक ताकत का प्रदर्शन करने के लिए किया है । न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि रूस और भारत के नेताओं की यात्रा के जरिये चीन ने दिखाया है कि शासन कला, सैन्य शक्ति और इतिहास का उपयोग कैसे किया जा सकता है । अखबार लिखता है कि भारत, अमेरिका के लिए चीन का आर्थिक विकल्प था लेकिन ट्रंप ने उसे खत्म कर दिया है । वॉल स्ट्रीट ने लिखा है कि ट्रंप की नीतियों ने दुनिया को हिला दिया है, चीन इस मौके पर खुद को ग्लोबल लीडर के रूप में पेश कर रहा है । अमेरिकी मीडिया का ट्रंप के खिलाफ यह अभियान शायद ही उन्हें सोचने के लिए मजबूर करे । उम्मीद की जा रही है कि 2026 के मध्यावधि चुनाव के पहले ट्रंप की नीतियों में कुछ बदलाव हो । हमें उम्मीद करनी चाहिए कि डोनाल्ड ट्रंप को जल्दी समझ आ जाए कि भारत और अमेरिका स्वाभाविक रूप से सहयोगी देश हैं । भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और सबसे बड़ा लोकतंत्र है । भारत सरकार दोनों देशों के रिश्तों को ज्यादा खराब होने से बचाने के लिए बदले की कार्यवाही नहीं कर रही है । भारत सरकार जानती है कि अमेरिका से रिश्ते भारत के लिए जितने बहुत जरूरी हैं, उतने ही अमेरिका के लिए भारत से रिश्ते जरूरी हैं ।
राजेश कुमार पासी