डॉ. आलोक कुमार
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया भारत यात्रा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण घटना के रूप में उभरी है जिसने वैश्विक स्तर पर नए डिबेट को जन्म दिया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह यात्रा निरंतर चर्चा का विषय बनी रही। हालांकि महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस यात्रा को अमेरिका किस दृष्टि से देख रहा है, विशेष रूप से उस संदर्भ में जब ट्रंप प्रशासन ने भारत पर कई प्रकार टैरिफ लगाये जिसकी वजह से भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव देखने को मिल रहा है । अमेरिका भारत पर विभिन्न प्रकार के रणनीतिक और आर्थिक दबाव डाल रहा है, विशेष रूप से रूस से तेल आयात में कमी के लिए। ऐसी स्थिति में पुतिन की यात्रा को यह संकेत माना जा रहा है कि भारत बाहरी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अमेरिका अगला कदम किस दिशा में उठाता है: क्या वह चीन की भांति भारत पर अधिक दबाव बनाने का प्रयास करेगा, या नए तरीकों से भारत के साथ संबंधों को पुनर्संरचित करेगा चूँकि भारत और अमेरिका के बीच अरबों डॉलर का व्यापार है जिसे बढ़ावा देने में ही दोनों देशो का हित है।

यदि हम भारत और अमेरिका के संबंधो का मूल्यांकन करें तो हमें यह पता चलता है कि भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत-अमेरिका संबंधों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। सन 1947 से लेकर 1962 के भारत-चीन युद्ध तक भारत-अमेरिका के संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई किंतु चीन युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत की कुछ स्तर पर सहायता की जिससे द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक परिवर्तन आए लेकिन इस सकारात्मक परिवर्तन में उस समय विराम लग गया जब सन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध में अमेरिका ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया । इस परिस्थिति को समझते हुए भारत ने सोवियत संघ के साथ मैत्री संधि की जिसके फलस्वरूप सोवियत संघ ने भारत को हर प्रकार की सहायता प्रदान की । इस दौरान भारत-अमेरिका संबंध सबसे निचले पायदान पर पहुच गए थे। प्रधानमत्री इंदिरा गांधी के इस कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका संबंध के संबंधो में खास बदलाव नहीं आया लेकिन सन 1977 में जब पहली बार भारत में जब गैर-कांग्रेसी सरकार बनी और मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने तो भारत और अमेरिका के संबंधों में सुधार के प्रयास शुरू हुए।
सन 1991 में भारत ने आर्थिक उदारीकरण को अपनाया जिसके फलस्वरूप भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक, तकनीकी और रक्षा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा। अमेरिका ने रक्षा प्रौद्योगिकी साझा करने तथा भारत में रक्षा विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए भी सहमति व्यक्त की। इसी अवधि में ही सोवियत संघ का विघटन हुआ। यह एक ऐसा दौर था जब रूस आन्तरिक चुनौतियों के दौर से गुजर रहा था किंतु भारत-रूस संबंधों में विशेष परिवर्तन नहीं आया और दोनों देशों ने परंपरागत सहयोग बनाए रखा। 2001 के बाद भारत-अमेरिका संबंध और अधिक सुदृढ़ हुए। इस दौरान तकनीक, रक्षा, परमाणु ऊर्जा तथा व्यापार जैसे क्षेत्रों में अनेक महत्वपूर्ण समझौते हुए किंतु अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के बाद भारत-अमेरिका संबंध में पुनः अस्थिरता देखने को मिल रही है। अमेरिकी सरकार द्वारा लगाए गए नए व्यापारिक करों से भारत को आर्थिक हानि हुई है जिसके कारण भारत विश्व के विभिन्न क्षेत्रों जैसे दक्षिण एशिया, अफ्रीका, पश्चिम एशिया और मध्य एशिया के देशों के साथ नए अवसरों की खोज कर रहा है।
पिछले 25 वर्षों में भारत और अमेरिका ने अपने संबंधों को मजबूत करने में व्यापक निवेश किया है। लोकतांत्रिक मूल्यों की समानता के कारण भारत ने अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ निकटता बढ़ाने का प्रयास किया किंतु राष्ट्रीय हितों के स्तर पर उत्पन्न मतभेदों ने इस वैचारिक निकटता को सीमित कर दिया। इसके विपरीत, रूस और भारत की घरेलु राजनीतिक मान्यताएं भिन्न होने के बावजूद भी उनका संबंध अत्यंत स्थिर और सहयोगपूर्ण बना रहा है। यह एक दिलचस्प विरोधाभास प्रस्तुत करता है I यह विरोधाभास अमेरिकी नीतियों की देन है जिसकी वजह से भारतीय नीति निर्माताओं में हमेशा अमेरिका के प्रति अविश्वास बना रहता है। अमेरिकन रक्षा अधिकारी माइकल रुबिन ने कहा वर्तमान समय में भारत-अमेरिका के बीच तनाव अमेरिकन राष्ट्रपति ट्रम्प की देन है। ट्रम्प वैश्विक राजनीति के लिए योग्य नहीं है। भारत की अर्थव्यवस्था की अपनी जरूरतें है जिन्हें पूरा करने के लिए भारत हर संभव प्रयास करेगा । रूस-यूक्रेन युद्ध के पश्चात अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस की कड़ी आलोचना की है। यह एक ऐसा दौर है जब भारत और रूस दोनों अमेरिकी चुनौतियों का सामना कर रहे है। ऐसे वैश्विक वातावरण में पुतिन की भारत यात्रा भारत और रूस दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। पुतिन ने साफ़ कह दिया कि रूस भारत को हर संभव मदद करने को तैयार है भारत को उसी प्रकार से रूस के साथ व्यापार करने का अधिकार है जैसा कि अमेरिका एवं अन्य देश रूस के साथ व्यापार कर रहे है।बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में उसकी अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस यात्रा के बाद अमेरिका अपनी नीतियों में किस प्रकार परिवर्तन लाता हैं, क्या वह भारत के साथ तनाव कम करने का प्रयास करेगा, या अमेरिका एशियाई भू-राजनीति में नए समीकरण तलाशने की कोशिश करेगा।
डॉ. आलोक कुमार