पजामा संभलता कोन्या, शौक बन्दूकां का राख्खें

सुशील कुमार ‘ नवीन ‘ 

हरियाणवी में एक बड़ी प्रसिद्ध कहावत है कि सूत न कपास, जुलाहे गेल लठ्ठम लठ। अर्थात् खुद के पास कुछ भी नहीं है, दूसरों से उलझते फिरें। एक बार राह चलते एक व्यक्ति जान बूझकर दूसरे से टकरा गया। यही नहीं बहस कर उसे ललकारने भी लगा। जिससे टकराया था वो बात को बढ़ाना नहीं चाहता था, सो बात को वहीं खत्म कर निकल रहा था, पर टकराने वाला तो हर हाल में लड़ने की तैयारी में था। बहस बढ़ने लगी। बात हाथापाई तक पहुंच गई। थप्पड़ मुक्का जोर पकड़ने ही वाले थे कि जानबूझकर टकराने वाला बोला- तुझे थोड़ी सी शर्म नहीं आती जो भूखे आदमी से लड़ रहा है। दम है तो पहले कुछ खिला पिला,फिर लड़के दिखा। 

     इंसानियत की भावना दिखाते हुए पहले उसे पेटभर खिलाया गया। खाना पेट में जाते ही टोन बदल गई और वो फिर गाली गलौज करने लगा। इस पर दोनों गुत्थमगुत्था हो गए। कभी वो ऊपर तो कभी वो नीचे। इसी दौरान उसका कुर्ता कुर्ता फट गया। फटा तो वो वैसे ही पहले से पड़ा था। कुर्ता फटते ही नया ड्रामा शुरू कर दिया। जोर-जोर से रोने लगा। कहा – अब क्या पहनूंगा, मेरे पास तो यही कुर्ता था। दूसरा बोला-कोई बात नहीं, पहले लड़ाई कर ले, फिर तेरे कुर्ते का भी इंतजाम करेंगे।

    लड़ाई फिर शुरू हो गई। अबकी बार छलनी स्टाइल बनियान के चीथड़े उड़ गये। रोना फिर शुरू हो गया। बोला-कुर्ते के साथ बनियान दोगे तो ही लडूंगा। यह भी स्वीकार हो गया। थोड़ी देर बाद जोर आजमाइश हुई तो इस बार पाजामे का नाड़ा टूट गया। उसने फौरन कहा कि लड़ाई तो रोकनी होगी,मेरे पाजामे का नाड़ा टूट गया है। थोड़ी देर रुको, मैं अभी पाजामा बदलकर आया। दूसरे ने कहा कि कोई बात नहीं, चड्डी पहन रखी होगी। लड़ाई के बाद पाजामा बदल लेना। जवाब दिल दहलाने वाला था। बोला-यहां खाना तो मांग-मांगकर खाना पड़ रहा है। चड्डी कहां से खरीदूं? 

    दूसरे ने फौरन उसके दो धरे और यह कहकर भगा दिया कि जब खाने को रोटी नहीं है, पहनने को चड्डी नहीं है। तो लड़ना जरूरी है क्या। भीख मांग, भीख। आप भी सोच रहे होंगे कि कहानी किस संदर्भ में सुनाई गई है तो सुनें। एशिया कप में भारत-पाकिस्तान का रविवार का मैच तो अपने जरूर देखा होगा। खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत पूरे मैच में लगातार देखने को मिली। बार-बार ऐसी हरकतें की गई कि भारतीय खिलाड़ी अपना संयम खो दें। बैट को बंदूक के रूप में चलाने का साइन किसी सीधी छेड़ से कमतर नहीं था। उसके बाद बैटिंग के दौरान शुभमन गिल और अभिषेक शर्मा से उलझना साफ दिखा रहा था कि ये पूरी प्लानिंग के साथ आज मैदान में आए थे कि किसी तरह बात बिगड़े और हमारी इज्ज़त रह जाए।

   इतिहास गवाह है कि जब-जब भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच हुआ है। वो एक मैच न होकर मैदान-ए-जंग बना है। पाकिस्तान निचले पायदान की टीम से हार जाए सहन हो जायेगा,पर भारत से हार सहन नहीं होगी। तोड़ फोड़ होगी, गाली गलौज तो सामान्य बात ही है। 

    रविवार को दोनों के बीच दुबई में एशिया कप में दोबारा आमना-सामना हुआ, नतीजा वही। अभिषेक शर्मा और शुभमन गिल ने ऐसा उठा-उठाकर मारा कि दर्द कई दिन तक नहीं जाएगा। खास बात ये दर्द घाव पर मिर्च छिड़कने जैसा था। हालांकि उनके लिए ये अब कोई नई बात नहीं है। इस तरह की बेइज्जती तो वे कई बार करवा चुके हैं। भारत ने इन्हें हर जगह मात दी है। चाहे खेल का मैदान हो या फिर लड़ाई का। साइकिल ढंग से चलानी नहीं आती हो तो, लंबोर्गिनी चलाने के सपने नहीं देखने चाहिए। खेल के मैदान में ताकत खेलकर ही दिखाई जाती है। हरकतों से नहीं। बच्चों की बंदूकों से बच्चे ही डरते हैं, बड़े नहीं। सूर्या भाऊ ने मैच के बाद जो बात कही है वो और भी बिल्कुल सही बैठती है कि मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए सूर्या ने साफ-साफ कह दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच अब कोई प्रतिद्वंद्विता (राईवइलरी) नहीं है। सूर्या की यह बात भी सही है। मुकाबला तो बराबर वालों में ही होता है। इसलिए पहले पाकिस्तान क्रिकेट में भारत के बराबर बने, फिर कोई बात हो।

लेखक: 

सुशील कुमार ‘नवीन’ 

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