शख्सियत साहित्‍य

हिन्दी साहित्याकाश का सूर्य दुष्यन्त कुमार

dushyant kumarहिन्दी साहित्याकाश में दुष्यन्त सूर्य की तरह देदीप्यमान हैं द्यसमकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी गजल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यन्त कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है दुष्यन्त एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं.

दुष्यन्त का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है इस कवि ने आपात काल में बेखौफ कहा था मत कहो आकाश में कुहरा घना है ध्यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है इस कवि ने कविता ,गीत ,गजल ,काव्य नाटक ,कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया लेकिन गजलों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया।

दुष्यन्त कुमार का जन्म बिजनौर जनपद यूपी के ग्राम राजपुर नवादा में 01 सितम्बर 1933 को और निधन भोपाल में 30 दिसम्बर 1975 को हुआ था। इलाहबाद विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे बाद में प्रोड्यूसर पद पर ज्वाइन करना था लेकिन तभी हिन्दी साहित्याकाश का यह सूर्य अस्त हो गया। इलाहबाद में कमलेश्वर, मार्कण्डेय और दुष्यन्त की दोस्ती बहुत लोकप्रिय थी वास्तविक जीवन में दुष्यन्त बहुत सहज और मनमौजी व्यक्ति थे कथाकार कमलेश्वर बाद में दुष्यन्त के समधी भी हुए, दुष्यन्त का पूरा नाम दुष्यन्त कुमार त्यागी था, प्रारम्भ में दुष्यन्त कुमार परदेशी के नाम से लेखन करते थे कृतियाँ -सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे ,जलते हुए वन का वसंत, सभी कविता संग्रह, साये में धूप गजल संग्रह, एक कंठ विषपायी काव्य नाटक आदि दुष्यन्त की प्रमुख कृतियाँ हैं।

दुष्यंत कुमार के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था

दुष्यंत कुमार का निधन 30 दिसम्बर सन 1975 में सिर्फ 42 वर्ष की अवस्था में हो गया। दुष्यंत ने केवल देश के आम आदमी से ही हाथ नहीं मिलाया उस आदमी की भाषा को भी अपनाया और उसी के द्वारा अपने दौर का दुख-दर्द गाया।

कैसे आकाश में सुराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों!
दुष्यंत कुमार