बिहार में चुनाव सुधार और मतदाता पुनरीक्षण : लोकतंत्र की मजबूती बनाम सियासत की चाल

अशोक कुमार झा

लोकतंत्र की असली ताक़त मतदाता होता है। मतदाता का अधिकार केवल एक पर्ची या बटन दबाने तक सीमित नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नींव का प्रतीक है। लेकिन जब मतदाता सूची ही त्रुटिपूर्ण, अधूरी और संदिग्ध हो, तो लोकतंत्र की पूरी इमारत खोखली हो जाती है। बिहार—जो हिंदुस्तान की राजनीति का धड़कता दिल माना जाता है—आज इसी चुनौती से जूझ रहा है।

चुनाव आयोग ने हाल में बिहार की मतदाता सूची के व्यापक पुनरीक्षण का प्रस्ताव रखा, जिसमें आधार से लिंकिंग, डिजिटल सत्यापन और फर्जी नामों की सफाई जैसी सख़्त प्रक्रियाएँ शामिल हैं। यह कदम लोकतंत्र को और मजबूत करने की दिशा में ऐतिहासिक साबित हो सकता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इस सुधार का सबसे बड़ा विरोध वही दल कर रहे हैं जो खुद को लोकतंत्र का संरक्षक बताते हैं—राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस। संसद ठप करना, सड़कों पर जनता को भड़काना और अदालतों में याचिकाएँ दायर करना उनकी रणनीति का हिस्सा बन चुका है।

वोटर लिस्ट की खामियाँ : लोकतंत्र के लिए खतरा

लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूलभूत आधार मतदाता सूची है। जब सूची ही अपूर्ण और त्रुटिपूर्ण हो, तो पूरा चुनाव संदिग्ध हो जाता है।

  • फर्जी नाम और मृतकों के नाम : बिहार की सूचियों में हजारों मृत व्यक्तियों के नाम अब भी मौजूद हैं, जिन पर वोट डाले जाते हैं।
  • दोहरी प्रविष्टि : एक ही व्यक्ति का नाम दो-दो जगह दर्ज पाया गया है, जिससे फर्जी वोटिंग आसान हो जाती है।
  • प्रवासी मजदूरों की समस्या : हर चुनाव में लाखों मजदूर अपने कार्यस्थल से वापस नहीं आ पाते और मताधिकार से वंचित हो जाते हैं।
  • युवाओं का बहिष्कार : लाखों नए मतदाता 18 वर्ष की आयु पूरी करने के बावजूद नाम दर्ज नहीं करा पाते।
  • विदेशी नागरिकों का घुसपैठिया वोट : सबसे गंभीर आरोप यह है कि बिहार की वर्तमान यानी पुरानी वोटर लिस्ट में हजारों बांग्लादेशी और अन्य विदेशी नागरिकों के नाम शामिल हैं, जिन्हें विभिन्न दलों की मिलीभगत से जोड़ा गया है।

यह स्थिति न केवल लोकतंत्र की साख को कमजोर करती है, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन के लिए भी खतरा है।

2024 के चुनावों से मिले सबक

लोकसभा चुनाव 2024 और बिहार विधानसभा के हालिया उपचुनावों में बड़ी संख्या में फर्जी वोटिंग और बूथ कैप्चरिंग की शिकायतें दर्ज हुईं।

  • कई जगह मृत व्यक्तियों के नाम से वोट डाले गए।
  • कई सीटों पर दोहरी प्रविष्टियों ने नतीजे प्रभावित किए।
  • स्वतंत्र एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार, कुल मतदाताओं का लगभग 8–10% हिस्सा या तो फर्जी या संदिग्ध पाया गया।
    अगर यह सुधार नहीं किया गया, तो आने वाले विधानसभा चुनावों में भी यही परिदृश्य दोहराया जाएगा, और लोकतंत्र की नींव हिल जाएगी।

विपक्ष का विरोध : संसद से सड़क तक

चुनाव आयोग द्वारा सुधार की घोषणा के बाद विपक्ष ने आक्रामक रुख अपनाया।

  • संसद ठप : पूरे सत्र को बाधित कर दिया गया।
  • सड़क पर आंदोलन : यह प्रचारित किया गया कि सरकार जानबूझकर खास जातीय और धार्मिक समुदायों के नाम सूची से हटाना चाहती है।
  • न्यायालय का सहारा : बार-बार याचिकाएँ दायर कर प्रक्रिया को लंबा खींचने की कोशिश।

यह विरोध केवल राजनीतिक असहमति नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चाल है।

विपक्ष ऐसा क्यों कर रहा है?

  1. जातीय समीकरणों का डर
    बिहार की राजनीति जातीय गणित पर टिकी रही है। अगर सूची शुद्ध कर दी गई तो कई पारंपरिक वोट बैंक टूट जाएंगे।
  2. फर्जी वोटिंग पर रोक
    बूथ कैप्चरिंग और फर्जी मतदान की प्रथा बिहार की राजनीति का हिस्सा रही है। जब आधार आधारित सत्यापन और डिजिटल निगरानी होगी, तो यह रास्ता बंद हो जाएगा।
  3. विदेशी नागरिकों का वोट बैंक
    आरोप है कि विपक्षी दल बांग्लादेशी और अन्य विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची में शामिल कराते रहे हैं। ये नाम हटने पर उनके वोट बैंक में भारी कमी आ सकती है।
  4. नए युवाओं और प्रवासियों की भागीदारी का डर
    नए मतदाता विकास और रोजगार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देंगे। इससे जातीय राजनीति कमजोर होगी और विपक्ष के पारंपरिक समीकरण ढह सकते हैं।

विपक्ष को क्या लाभ होगा?

  • सहानुभूति की राजनीति : जनता को यह विश्वास दिलाना कि उनके समुदाय को वंचित किया जा रहा है।
  • सरकार को घेरना : संसद ठप कर और अदालत में केस डालकर सरकार को असफल दिखाना।
  • चुनावी फायदा : डर और भ्रम फैलाकर अपने समर्थकों को संगठित रखना।

जनता पर असर

  • भ्रम और असुरक्षा : अफवाहों के कारण लोग असुरक्षित महसूस करेंगे।
  • विश्वास में कमी : जनता चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाने लगेगी।
  • सामाजिक तनाव : जातीय और सामुदायिक विभाजन गहरा होगा।
  • वोटिंग प्रतिशत पर असर : डर और असमंजस में मतदाता मतदान से दूर हो सकते हैं।

विदेशी नागरिकों के नाम हटाना क्यों जरूरी

लोकतंत्र केवल नागरिकों के अधिकारों पर आधारित होता है। जब गैर-नागरिकों को अवैध रूप से मताधिकार दिया जाता है, तो यह न केवल लोकतंत्र का अपमान है, बल्कि राष्ट्र की संप्रभुता के साथ सीधा खिलवाड़ है।

  • 2024 की एक स्वतंत्र रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि बिहार की मतदाता सूची में लगभग 1.5 से 2% नाम विदेशी नागरिकों के हो सकते हैं
  • इनमें अधिकांश बांग्लादेश से आए घुसपैठिए हैं, जिन्हें स्थानीय राजनीतिक संरक्षण के तहत नामांकित किया गया।
  • यह स्थिति न केवल चुनाव को प्रभावित करती है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक संतुलन पर भी गहरा असर डालती है।

इसलिए इन नामों को ईमानदारी से हटाना लोकतंत्र की पवित्रता के लिए आवश्यक है।

डिजिटल युग की चुनौती और समाधान

आज आधार, मोबाइल और डिजिटल पहचान ने नई संभावनाएँ खोली हैं।

  • आधार आधारित सत्यापन से फर्जी और दोहरे नाम हटाए जा सकते हैं।
  • ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल वोटिंग प्रक्रिया को पूरी तरह सुरक्षित बना सकता है।
  • ऑनलाइन और डाक मतपत्र जैसी सुविधा प्रवासी मजदूरों को भी मताधिकार दिला सकती है।

क्या विपक्ष का विरोध उचित है?

लोकतंत्र में सवाल उठाना विपक्ष का अधिकार है। लेकिन लोकतंत्र की नींव को कमजोर करना कभी उचित नहीं हो सकता।

  • अगर वाकई गड़बड़ी है, तो विपक्ष को प्रक्रिया में शामिल होकर पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • संसद ठप करना और जनता को भड़काना यह बताता है कि असली मक़सद सुधार को रोकना नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक हितों की रक्षा करना है।

आगे का रास्ता

  1. नियमित और समयबद्ध पुनरीक्षण : हर साल तय समय पर सूची का शुद्धिकरण।
  2. विदेशी नागरिकों की पहचान और विलोपन : सख़्त जाँच से सभी अवैध नाम हटाना।
  3. प्रवासी मजदूरों के लिए सुविधा : डाक मतपत्र या ऑनलाइन वोटिंग व्यवस्था।
  4. युवाओं को जोड़ना : स्वतः पंजीकरण और विशेष अभियान।
  5. सभी दलों की सहभागिता : पुनरीक्षण प्रक्रिया में सभी को शामिल कर पारदर्शिता सुनिश्चित करना।

बिहार में मतदाता पुनरीक्षण केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा की रक्षा का अभियान है।

  • फर्जी नाम, मृत व्यक्तियों की प्रविष्टि, दोहरी वोटिंग और विदेशी नागरिकों का मतदान लोकतंत्र को खोखला कर रहे हैं।
  • विपक्षी दलों का इसे रोकने का प्रयास यह दिखाता है कि वे लोकतंत्र की मजबूती नहीं, बल्कि अपने वोट बैंक की सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • साफ-सुथरी वोटर लिस्ट के बिना वास्तविक लोकतंत्र की कल्पना असंभव है।

बिहार को यह तय करना होगा कि वह जातीय समीकरणों और फर्जी वोटिंग के सहारे लोकतंत्र का मज़ाक बनाए रखेगा या एक पारदर्शी और मज़बूत लोकतंत्र की राह चुनेगा। इतिहास गवाह है कि जिस राष्ट्र की मतदाता सूची साफ होती है, वहां लोकतंत्र उतना ही मज़बूत और विश्वसनीय होता है।

अशोक कुमार झा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress