टैरिफ नीति से नए ‘ग्लोबल ट्रेड’ का उदय ?

                    प्रभुनाथ शुक्ल

अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी ने ‘ग्लोबल ट्रेड’ को लेकर एक नई बहुत छेड़ दिया है। अमेरिका की यह आर्थिक नीति दुनिया को कहां ले जाएगी यह अपने आप में बड़ा सवाल है। खुद अमेरिका के लिए यह आर्थिक और सामरिक संबंधों पर कितनी कारगर होगी यह वक्त बताएगा। ट्रंप इस आर्थिक नीति से अमेरिका को कितना समृद्ध कर पाते हैं यह देखना होगा। लेकिन ट्रंप की दादागिरी ने ग्लोबल ट्रेड नीति को बड़ा झटका दिया है। अत्यधिक टैरिफ की मार झेल रहे भारत, चीन और रूस जैसे देश नई व्यापार नीति को अंजाम देने के लिए एक मंच पर आ रहे हैं। यह दक्षिण एशिया के लिए जहाँ सुखद है। दूसरी तरफ अमेरिका के भविष्य के लिए चिंतनीय।

अमेरिकी अदालत ने ट्रंप की टैरिफ़ नीति को खारिज कर दिया है। अदालत के फैसले के बाद ट्रंम्प को बड़ा झटका लगा है। सरकार और अदालत के बीच टकराव की स्थित बन सकती है। यह ट्रंप की विदेश नीति के खिलाफ बड़ा फैसला है। अदालत ने ट्रंम्प प्रशासन को 14 अक्टूबर तक का वक्त दिया है, सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। दुनिया के देशों के लिए यह सुखद फैसला है। क्योंकि अमेरिका में खुद ट्रंप अपनी आर्थिक नीति की आलोचना झेल रहे हैं। दूसरी तरफ अदालत के फैसले के बाद ट्रंप विरोधी और मजबूत होंगे। 

अमेरिका की इस पॉलिसी से भारत जैसे देश उसके खिलाफ हो गए। जिस चीन को सबक सिखाने के लिए वह भारत के साथ खड़ा था। वहीं चीन और भारत अब अमेरिकी नीति के खिलाफ एक मंच पर आ रहे हैं। दक्षिण एशिया की दो महाशक्तियां एक मंच पर आ रही है तो ट्रेडवॉर में कुछ नया होने वाला है।जिसमें रूसी राष्ट्रपति पुतिन की खास भूमिका है। इसका बड़ा नुकसान अमेरिका को उठाना पड़ सकता है। इसका असर सिर्फ आर्थिक नीतियों पर ही नहीं ग्लोबल वार, हथियार की होड़ और आर्थिक नीति पर भी पड़ेगा। ट्रंप के आगे भारत के ना झुकने की पॉलिसी ने अमेरिका की नींद उड़ा दी है।

दुनिया में सबसे अधिक भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ लगाया गया है। ट्रंप की यह नीति आर्थिक रूप से भारत की कमर तोड़ने की साजिश है। ट्रंम्प भारत को झुकाना चाहते हैं और पाकिस्तान की तरह खुद का पीठलग्गू बनाना चाहते हैं। लेकिन भारत के लिए यह संभव नहीं है। भारत की दुनिया में एक साख है। उसके पास विपुल आबादी है। कृषि आधारित मजबूत अर्थव्यवस्था उसका बेहद मजबूत आधार है। ऐसे हालात में भुखमरी के हालात बनने से रहे आर्थिक नुकसान भले उठाना पड़े। फिर भारत क्यों झुकेगा। 

आर्थिक विश्लेषण और मीडिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारतीय निर्यात पर काफी असर पड़ सकता है। टेक्सटाइल, कृषि उत्पादन, आर्नामेंट, चमड़ा,  फुटवियर,  केमिकल्स और मेडिसिन बाजार को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। भारत से करीब 28 फीसदी वस्त्र, कालीन का निर्यात अमेरिका को होता है। भारत के संपूर्ण व्यापार निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 20 फिसदी है। भारत की जीडीपी में है दो फीसदी योगदान है। यह माना जा रहा है कि भारत को अरबों डालर का नुकसान होगा। लेकिन क्या अमेरिका के सामने झुकना भी भारत का ठीक है। समस्याएं आती हैं तो हमें विकल्प भी तलाशना होगा। जिसकी पृष्ठभूमि तैयार करने में भारत जुटा है।

हालांकि ट्रंप की वजह से भारत में नौकरियां जाने का भी खतरा बना है। कई लाख लोग बेरोजगार हो सकते हैं। श्रमप्रधान सेक्टर में सबसे ज्यादा नुकसान का प्रभाव दिख सकता है। टेक्सटाइल, आभूषण, कृषि रत्न जैसे सेक्टर में यह स्थिति दिखाई देगी। केंद्र की मोदी सरकार इससे से निपटने के लिए रणनीति भी बना रही है। फिर भी अगर अमेरिका के साथ बीच में कोई समझौता न हुआ तो भारत को आर्थिक नुकसान तो उठाना पड़ेगा। भारत को अब हर हाल में अमेरिका पर निर्भरता को कम करनी होगी। 

प्रधानमंत्री का जापान इसके बाद चीन दौरा इसका संकेत है। वहां चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात कुछ नया गुल खिलाएगी। ग्लोबल ट्रेड पर कोई नया फैसला हो सकता है। अमेरिका की टैरिफ नीति के खिलाफ एक मजबूत रणनीति बन सकती है। अगर तीनों देशों की तिकड़ी सफल हो गई तो में भविष्य में अमेरिका को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

अमेरिका अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए टैरिफ़ नीति को अंजाम दिया। लेकिन उसकी इस पॉलिसी में साफ-सुथरी आर्थिक दृष्टि नहीं दिखती। अमेरिका की इस पॉलिसी में ग्लोबल पॉलिटिक्स की गंध आती है। ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने उसकी भूमिका खारिज कर दी तो चिढ़ गया। भारत, रूस से तेल लेना बंद नहीं किया तो उसका हित टकरा गया। उसने चीन के खिलाफ जहां 30 फ़ीसदी टैरिफ लगाया वहीं भारत के खिलाफ 50 फीसदी। यह ट्रंप की पारदर्शी टैरिफ़ नीति नहीं है। ट्रंप ने भारत के खिलाफ अपनी खींझ और गुस्से का प्रदर्शन किया है। लेकिन भारत भी अमेरिका के सामने झुकने वाला नहीं है।

 भारत समेत ब्रिक्स संगठन में शामिल देश अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। संगठन में भारत सबसे अग्रणी। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि और डेयरी उत्पादों में टैरिफ कम करें लेकिन भारत ने इसे स्वीकार नहीं किया। जिसका नतीजा हुआ ट्रंप ने टैरिफ बम भारत पर फोड़ दिया।

हालांकि इसका दुष्प्रभाव एक पक्षीय नहीं होगा। यह अलग बात है कि भारत को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा। लेकिन ट्रंप की इस टैरिफ नीति ने भारत के साथ दुनिया के देशों को एक कड़ा संदेश दिया है। संदेश साफ है कि पर सबसे अधिक आत्मनिर्भरता को हर हाल में खत्म या कम करना होगा। व्यापार नीति में बदलना लाना होगा। हालांकि अमेरिका ने जो आर्थिक जंग छेड़ी है उसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा। इसका असर सिर्फ व्यापार क्षेत्र में ही नहीं पड़ेगा। सामरिक संबंधों और वैश्विक कूटनीति पर भी दिखेगा। जिसके बाद एक ग्लोबल स्तर पर तनाव की स्थिति बनेगी। दुनिया को इसके लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। जिसकी सारी जिम्मेदारी अमेरिका की होगी।

प्रभुनाथ शुक्ल

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