जूता है तो सबकुछ मुमकिन है

प्रभुनाथ शुक्ल

भारतखंडे आर्यावर्ते जूता पुराणे प्रथमो अध्यायः। मित्रों! अब तो आप मेरा इशारा समझ गए होंगे, क्योंकि आप बेहद अक्ल और हुनरमंद हैं। आजकल जूता यानी पादुका संस्कृति हमारे संस्कार में बेहद गहरी पैठा बना चुकी है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए हम आपको इसकी महत्ता बताने जा रहे हैं। कहते हैं कि जूता है तो सबकुछ मुमकिन है। हमारी देशी-विदेशी राजनीति में जूते का जलवा कायम है। आजकल राजनीति में बात से नहीं जूते से बात बनती हैं। बचपन में हमने भी बाबूजी के कई जूते खाए हैं। मेरी हर शरारत पर जूते की मिसाइलें टपकती थी।मीडिया में जूते की सर्जिकल स्ट्राइक छा गयी है। सोशलमीडिया पर जितनी एयर स्ट्राइक टीआरपी नहीं जुटा पायी , उससे कहीं अधिक नेताओं के जूतम पैजार पर मिल चुकी है। यह टीवी चैनलों पर टीआरपी बढ़ाने का भी काम कर रहा है। कहते हैं कि जूते से व्यक्ति की पहचान होती है और गहर जूता जापानी हो तो फिर क्या कहने। यह वह महाप्रसाद है जो खाए वह भी पछताए ना खाए वह भी। मीडिया युग में जूते से पिटने वाला बेहद सौभाग्यशाली और टीआरपी वाला माना जाता है। कितने तो जूते खा कर ही राजनेता बन गए। राजनीति में कहावत भी है कि जिसने जूता नहीं खाया वह कुछ भी नहीं कर पाया। हाल के जूताकांड के बाद टीवी आंख गड़ाए पत्नी ने कहा देखो, जी! तुम हमारे बेलन से रोज पीटते हो, लेकिन टीवी वाले तुम्हें घास तक नहीं डाली, वो देखा दोनों नेता किस तरह क्रिकेट मैच की तरह हैटिक लगा रहे हैं। एक पीट कर तो दूसरा पिटवा कर। कई लोग तो जूता पहन कर भी महान बन गए। कितनों के पुतलों को भी यह सौभाग्य मिला। विरोधियों को क्या कहें, उन्हें तो शर्म आती नहीं, वह एयर और शू स्टाइक में अंतर नहीं कर पाते। अब नारा लगाते फिर रहे है कि जूता है तो सबकुछ मुमकिन है।सच कहूं जूता पुरान की कथा किसी परमार्थ से कम नहीं है। इसे खाने वाला रथी तो खिलाने वाला महारथी होता है। यह स्वयं में पुरुषार्थ की कथा है। जूता अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष से जुड़ा है। इसमें सतो और तमो गुण की प्रधानता होती है। इसका परिस्कृत उत्पाद सैंडिल है। जिसने जूता खाया वह नेतृत्वकर्ता बन गया और सैंडिल जिसके भाग्य में आयी वह प्रेमिका के गले का हार बन गया। श्रीराम जी की पादुका ने भरत जी को सबसे बड़ा सेवक बना दिया। जूता धनार्जन के साथ परिमार्जन से भी जुड़ा है। कहते हैं कि बातों के भूत लातों से मानते हैं। जूता प्रहार की संस्कृति राष्टीय नहीं अंतरराष्टीय है। देश और विदेश के कई भूतपूर्व और वर्तमान नेता जूते के महाप्रहार से भूतपूर्व से अभूतपूर्व बन गए हैं। अमेरिकन, इंडियन, चाइनीज सभी के सफेदपोशों ने जूते का महाप्रसाद लिया है। जूते की महिमा से लोग सीएम से पीएम  तक बना दिया। जूते की वजह से किसी सत्ता चली गयी थी। वहीं एक की जूती को उड़न खटोले का सौभाग्य मिला। हमारे जैसे कई घरवालियों की जूती का महाप्रसाद ग्रहण कर भूतपूर्व से अभूतपूर्व बन चुके हैं या फिर कतार में लगे लोग अपना भविष्य उज्ज्वल बना रहे हैं। सालियों के लिए तो जीजू का जूता मुनाफे का अच्छा सौदा है। पिछले दिनों हम सुसुराल गए तो मंुह बोली साली ने कहा जीजू आपके जूते चुराने का जी करता है। हमने कहां डियर! जमाना फोर-जी में पहुंच चुका है और तू टू-जी की स्पीड में अटकी हो। साली जी। आजकल जूता खाने में जीतना मजा आता वो चुराने में कहां ? जूते और काली स्याही का सफेदपोश राजनीति में चोली-दामन का साथ रहा है। जूता और जुबान तो परिणय सूत्र में बंधे हैं। किसी महान कवि ने इस पर एक दोहा भी लिखा है… जीभिया ऐसी वावरी, कही गई सरग पताल!! आपुनि कहि भीतर गई, जूती खात कपार!! कहते हैं जब अहम टकराता है तो पैर का जूता सिरचढ़ बोलता है। जूते पर अनगिनत मुहावरे भी हैं। इसका साहित्यिक इतिहास भी पुराना है। बात-बात में यह कहावत भी खूब चलती है कि आपकी जूता मेरा सिर।लोकतंत्र और राजनीति में जूता संस्कृति का रिश्ता बेहद पुराना है। कभी राजनेता तो कभी उनके पुतले इसके हकदार बनते हैं। जूता अब अराजक सियासी संस्कृति का अंग बनता जा रहा है। रानेताओं में इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ चली है। सरकार को अब इस पर अध्यादेश लाना चाहिए। आफिसों में तो यह चेतावनी पहले से लिखी जाती रही है कि कृपया जूता उतार कर प्रवेश करें। अब अध्यादेश के जरिए संसद, राज्य विधानसभाओं और नेताओं की जमात में जूता पहन कर आने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। क्योंकि न रहेगा बांस न बजेगी बंसरी। जूते की महानता और बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए यह कहना मुमकिन होगा कि …नेता जूता राखिए, बिन जूता सब सून!! जूता गए न उबरे, राजनीति के चून!! यानी जूता है तो सबकुछ मुमकिन है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,029 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress