तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण: भारत की एक बड़ी सफलता

सुनील कुमार महला


आतंकवाद भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए आज भी एक नासूर है और हाल ही में इस नासूर पर लगाम लगाने के क्रम में मुंबई धमाकों 2008 के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत लाया गया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह भारत की आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ी जीत है। सच तो यह है कि यह भारत सरकार के अथक रणनीतिक प्रयासों का ही परिणाम है कि तहव्वुर राणा को भारत लाया जा सका है। पाठकों को बताता चलूं कि मुंबई आतंकवादी हमले में सैकड़ों लोग मारे गए थे जिनमें 26 विदेशी नागरिक भी थे और इस हमले की विश्वव्यापी निंदा हुई थी। वास्तव में भारत का यह कदम आतंकवादी संगठनों, विशेषकर पाकिस्तान के लिए एक सशक्त/सख्त संदेश है कि किसी एक देश का आतंकवादी किसी अन्य देश में बेफिक्र होकर नहीं घूम सकता।

पाठक अच्छी तरह से जानते होंगे कि आतंकवाद का मतलब है, किसी राजनीतिक, धार्मिक, या वैचारिक मकसद को पूरा करने के लिए हिंसा या धमकी का इस्तेमाल करना। वास्तव में आतंकवाद का मकसद, सरकार को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करना या लोगों को डराना होता है। वास्तव में सच तो यह है कि आतंकवाद को एक तरह की हिंसात्मक गतिविधि माना जाता है। संक्षेप में कहें तो यह मानवता के विरूद्ध एक गंभीर अपराध है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि इस कदम से अमेरिका का आतंकवाद के प्रति दृष्टिकोण भी और अधिक स्पष्ट हो गया है। सच तो यह है कि आतंकवाद व आतंकवादी किसी भी राष्ट्र के मित्र नहीं हो सकते हैं। यदि हम यहां पर आतंकवाद की खास बातों पर विचार करें तो यह व्यक्तियों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह तो एक प्रकार से सामाजिक समूहों और राजनीतिक शक्तियों के बीच संघर्ष है। वास्तव में सच तो यह है कि आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति, असीमित युद्ध का एक रूप ही तो है।

कहना ग़लत नहीं होगा कि आतंकवाद को संरक्षण देने वाले देश स्वयं इसके दुष्परिणामों से अछूते नहीं रह सके हैं और विशेषकर पाकिस्तान इसका जीता-जागता उदाहरण है।आतंकवाद बहुत ही घृणित और विनाशकारी अपराध है। गौरतलब है कि तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण आतंकवाद के प्रति वैश्विक परिप्रेक्ष्य में परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है। साथ ही, भारत सरकार ने आतंकवाद के प्रति अपनी जीरो टोलरेंस(शून्य सहनशीलता) नीति को भी वैश्विक स्तर पर दृढ़ता से प्रमाणित किया है। अब सरकार से यह अपेक्षा की जा सकती है कि भविष्य में भी इसी प्रकार से अन्य आतंकवादियों और आर्थिक अपराधियों के प्रत्यर्पण को भी सुनिश्चित किया जाएगा। बहरहाल, पाठकों को यह याद होगा कि कुछ समय पहले ही व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में तहव्वुर राणा को भारतीय कानून का सामना करने के लिए भारत भेजने पर सहमति व्यक्त की थी। उपलब्ध जानकारी के अनुसार राणा पेशे से चिकित्सक है, जिसका जन्म पाकिस्तान में हुआ था तथा बाद में वह कनाडा चला गया था और वहां का नागरिक बन गया।

मुंबई आतंकवादी हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं में एक अमेरिकी नागरिक डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाउद गिलानी का राणा करीबी सहयोगी रहा है। उल्लेखनीय है कि हेडली ने मुंबई हमले की रेकी की थी और इस साजिश को साकार करने में राणा ने उसकी मदद की थी। पाठकों को बताता चलूं कि उस समय मुंबई के ताज होटल, सीएसटी और कामा अस्पताल समेत कई जगहों पर हमला हुआ था। इस दौरान पुलिस व सेना की जवाबी कार्रवाई में आतंकी अजमल कसाब जीवित पकड़ा गया था तथा उसे कानूनी प्रक्रिया में दोषी पाये जाने के बाद वर्ष 2012 में उसे 21 नवंबर 2012 में फांसी दे दी गई। गौरतलब है कि कसाब के विरुद्ध दायर चार्जशीट में राणा, हेडली के नामों का भी उल्लेख किया गया है।आरोप है कि राणा ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और हरकत-उल-जिहादी इस्लामी के आतंकवादियों के साथ मिल कर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हमले की साजिश रची थी।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई ने वर्ष 2020 में राणा को गिरफ्तार किया था। दरअसल, उसकी गिरफ्तारी भारत के कूटनीतिक दबाव के कारण हुई थी। बाद में जांच एजेंसियों की पूछताछ में यह सामने आया कि मुंबई आतंकी हमले में राणा का भी हाथ रहा है। हाल फिलहाल, एनआईए को तहव्वुर राणा की 18 दिन की रिमांड मिली है और इस संबंध में पटियाला हाउस कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।

उम्मीद की जा सकती है कि पूरी जांच के बाद मुंबई हमले में पाकिस्तान की भूमिका की भी पुख्ता जानकारी भारत को मिल सकेगी। हालांकि, यह बात अलग है कि यह पहले भी प्रमाणित हो चुका है कि इस हमले की साजिश पड़ौसी देश पाकिस्तान में ही रची गई थी। भारत के पास इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं, लेकिन पाकिस्तान यह कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। हालांकि, पाकिस्तान का चेहरा अब पूरी दुनिया के समक्ष एक्सपोज हो चुका है कि वह आतंकवाद और आतंकियों का असली गढ़ है। हाल फिलहाल, 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा का अमरीका से भारत प्रत्यर्पण एक कानूनी सफलता भर नहीं है बल्कि यह हमारी  राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है कि हम आतंकवाद को किसी भी हाल और सूरत में स्वीकार करने वाले नहीं हैं। जैसा कि ऊपर भी यह कह चुका हूं कि यह भारत की आतंकवाद के प्रति ज़ीरो टोलरेंस की नीति को स्पष्टतया दिखाता है। यहां पाठकों को यह भी बताता चलूं कि भारत ने न केवल राणा की आतंकी हमले में संलिप्तता के ठोस प्रमाण प्रस्तुत किए बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि उसके साथ अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप व्यवहार किया जाएगा। इसके बाद, अमरीकी अदालतों में लंबी कानूनी प्रक्रिया चली। राणा ने भारत में निष्पक्ष सुनवाई न होने का तर्क देने के साथ अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रत्यर्पण का विरोध भी किया था।

 अंत में यही कहूंगा कि मुंबई हमला देश की आत्मा पर हुआ एक ऐसा घातक वार था जिसके जख्म आज भी हमारे मन में हरे हैं। वास्तव में तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण वैश्विक एकजुटता को भी दर्शाता है जो कि आतंकवाद के खिलाफ आवश्यक है। अमरीका के इस सहयोग से दोनों देशों(भारत-अमेरिका) के रणनीतिक संबंधों को भी गति मिल सकेगी और दोनों देशों का भरोसा भी इससे कहीं न कहीं मजबूत हो सकेगा। हाल फिलहाल तहव्वुर राणा भारत की न्यायिक प्रक्रिया के अधीन है, अतः यह आवश्यक है कि उसके खिलाफ मुकदमा पारदर्शिता और निष्पक्षता से चलाया जाए। यह भारत की न्याय प्रणाली के प्रति आमजन के विश्वास को और मजबूत करेगा। साथ ही, मुंबई हमले के उन पीड़ित परिवारों के लिए ढांढस बढ़ाएगा जिन्हें उस आतंकी हमले ने अपूरणीय क्षति पहुंचाई।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,337 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress