राजेश कुमार पासी
नानक दुखिया सब संसारा, वर्तमान हालातों पर ये बात पूरी तरह लागू होती है क्योंकि हर व्यक्ति अलग-अलग कारणों से परेशान है । आज का बड़ा सच है कि बुजुर्ग बच्चों से परेशान हैं और बच्चे बुजुर्गों से परेशान हैं । इसके लिए ज्यादातर लोग जनरेशन गैप को दोषी ठहराते हैं जबकि यह सच नहीं है । यह ठीक है कि आज की युवा पीढ़ी और पिछली पीढ़ी की सोच में बड़ा अंतर है लेकिन सोच का अंतर परेशानी का सबब इसलिए बनता है क्योंकि दोनों पीढ़ियों में संवादहीनता पैदा होती जा रही है । परिवारों का टूटना आज बड़ी समस्या बन गया है लेकिन इसके दूसरे पहलू भी हैं । हिन्दू समाज में परिवार खत्म हो रहे हैं जबकि मुस्लिम समाज इस मामले में बहुत बेहतर स्थिति में है । इस पर भी विचार करने की जरूरत है कि दोनों समुदायों में क्या अलग है जिसके कारण एक समुदाय परिवारों के विघटन से बचा हुआ है ।
मेरा मानना है कि इसकी बड़ी वजह यह हो सकती है कि हिन्दू समाज में पैसे को इतना ज्यादा महत्व दिया जाता है कि परिवार कहीं पीछे छूट जाता है । मुस्लिम समाज की सोच में इतना बड़ा अंतर नहीं आया है जितना बड़ा अंतर हिन्दू समाज की सोच में आ गया है । इसकी बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि हिन्दू समाज के युवा नौकरी करना चाहते हैं फिर चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट लेकिन मुस्लिम समाज के युवा कुशलता प्राप्त करके अपना काम करने को प्राथमिकता देते हैं । जहां नौकरियों के कारण हिन्दू समाज के युवा बड़े शहरों की ओर जा रहे हैं तो मुस्लिम समाज के युवा अपने ही शहरों में काम कर रहे हैं ।
इसके अलावा कई और वजह हैं जिनके कारण मुस्लिम समाज की पारिवारिक संस्था अभी भी मजबूत बनी हुई है लेकिन हिन्दू समाज की कमजोर पड़ गई है । परिवारों के टूटने के लिए ज्यादातर बच्चों को दोष दिया जाता है लेकिन यह सच नहीं है । परिवारों की टूटन के पीछे ज्यादातर माता-पिता ही जिम्मेदार हैं । इसके लिए बदलते जमाने को दोष दिया जाता है लेकिन जमाने के साथ न बदलने वाले क्या दोषी नहीं है । 21वीं सदी की शुरूआत के बाद इतनी तेजी से सब कुछ बदला है कि उसके साथ तारतम्य बिठाना पिछली पीढ़ी के लिए मुश्किल हो गया है । सवाल यह है कि क्या सिर्फ युवा पीढ़ी में ही बदलाव आया है और पिछली पीढ़ी यथावत है ।
जीवन का बहुत बड़ा सच यह है कि हमारे अच्छे दिनों में ही बुरे दिनों की आहट छुपी रहती है लेकिन तब हम इतने मस्त होते हैं कि उस आहट को सुन नहीं पाते । जवानी में की गई गलतियों की सजा बुढ़ापे में भुगतनी पड़ती है । अगर बच्चे बुजुर्गों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं तो इसके लिए काफी हद तक हम जिम्मेदार हैं क्योंकि बच्चों को संस्कार देना आज हमारी प्राथमिकता से निकल चुका है । पैसा कमाने और घर चलाने में हम इस तरह से व्यस्त हो जाते हैं कि बच्चों की तरफ ध्यान देना ही बंद कर देते हैं । आज हमारे समाज के लिए जनरेशन गैप बड़ी समस्या बन चुका है लेकिन इसकी वजह दो पीढ़ियों की सोच का अंतर नहीं बल्कि संवादहीनता है । हम इस कदर व्यस्त हो गए हैं कि बच्चों की भौतिक जरूरतों को पूरा करके अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा लेना चाहते हैं । ऐसे में अगर हमारे बच्चे हमें अपना एटीएम समझने लगे हैं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए ।
संवादहीनता के कारण हम बच्चों की सोच को समझ नहीं पाते हैं, जब उन्हें हमारी जरूरत होती है तो हम उनके साथ नहीं होते हैं । कई शहरों में बच्चियों के साथ संगठित यौन शोषण की ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें पीड़िताओं की संख्या दर्जनों से सैकड़ों में थी । कितनी हैरानी की बात है कि बच्चियां घुट-घुटकर जीवन बिता रही थी लेकिन माँ-बाप को पता तक नहीं था । ऐसे ही पढ़ाई के बोझ से कितने बच्चों ने आत्महत्या कर ली लेकिन माँ-बाप को अहसास तक नहीं हुआ । परिवारों के बीच संवादहीनता ही वो वजह है जिसके कारण माता-पिता समय पर अपने बच्चों की तकलीफ को समझ नहीं पाते हैं । यह सब बताने का तात्पर्य यह है कि हम अपने बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं जिसके कारण परिवार टूट रहे हैं । अगर बच्चे शादी के बाद अलग घर बसा रहे हैं तो इसके लिए एक पक्ष जिम्मेदार नहीं है । एक ही घर में कई चूल्हे जलने लगे हैं इसलिए कहा जा सकता है कि एक मकान में कई घर पैदा होने लगे हैं ।
बुजुर्गों की बड़ी समस्या यह है कि वो हमेशा इस कोशिश में रहते हैं कि जीवन कैसा होना चाहिए, इसलिए वो वर्तमान हालातों से समझौता नहीं कर पाते । सब कुछ मनमर्जी का करने के चक्कर में अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर देते हैं। जहां बच्चे वर्तमान को अच्छी तरह समझतें हैं, वहीं बुजुर्गों ने जीवन के बड़े उतार-चढ़ाव देखे होते हैं इसलिए वो बच्चों को अपने तरीके चलाना चाहते हैं। बड़ी मेहनत और पूरे जीवन की जमापूंजी लगाकर बनाये गए घर भी बुजुर्गों की बड़ी समस्या है । बुजुर्गों की कोशिश होती है कि उनके घर में उनके अनुसार ही सब कुछ होना चाहिए । माता-पिता की यह सोच बहुत खतरनाक है कि मेरा घर मेरे हिसाब से चलेगा । वो भूल जाते हैं कि बेशक उन्होंने घर बनाया है लेकिन इससे वो सबको नियंत्रित करने का अधिकार नहीं हासिल कर लेते । प्यार, ममता और मोह में बड़ा सूक्ष्म अंतर होता है इसलिए हमारी भावना क्या है, हम पहचान नहीं पाते । प्यार स्वतंत्र करता है जबकि मोह बांधता है । बाप के प्यार और मोह में तो फिर भी यह अंतर पहचाना जा सकता है लेकिन माँ की ममता और मोह में तो इतना बारीक अंतर है कि उसे पहचानना बहुत मुश्किल है । माता-पिता को लगता है कि वो अपने बच्चों के लिए सबसे बढ़िया सोचते हैं इसलिए वो बच्चों पर अपनी मर्जी थोपते हैं । विशेष तौर पर करियर और विवाह के मामले में माता-पिता बच्चों पर अपनी मर्जी चलाना चाहते हैं । बच्चों को उनकी मर्जी की शादी से रोकने के लिए उन्हें इमोशनल ब्लैकमेल किया जाता है। समाज में अपनी इज्ज़त का हवाला देकर जाति-धर्म के बंधनों से बाहर निकलने से रोका जाता है। विशेष रूप से माँ ऐसे मामलों में मरने की धमकी देकर बच्चों को मजबूर करती हैं। एक रिश्ते से जबरदस्ती निकाल कर दूसरे रिश्ते में जबरदस्ती बांधना कई बार परिवारों को बर्बाद कर देता है।
अपनी औकात से ज्यादा उनकी शिक्षा पर खर्च करना, बाद में इसके लिए बच्चों को ताने देना आम बात है । सवाल यह है कि क्या बच्चे ने ऐसा करने के लिए कहा था। माँ-बाप का कहना होता है कि हमने अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए ऐसा किया था जबकि सच्चाई यह है कि समाज में अपनी गर्दन ऊंची रखने के चक्कर में ज्यादातर माँ-बाप ऐसा करते हैं । बच्चों को अपनी शर्तों पर जीने के लिए मजबूर करते हैं । उन्हें बार-बार अहसास दिलाते हैं कि हम तुम्हें पालपोस,पढ़ा-लिखा कर तुम पर अहसान कर रहे हैं जबकि सच यह है कि बच्चे पैदा करना और उन्हें पालना एक प्राकृतिक जिम्मेदारी है। इसमें माता-पिता का एक स्वार्थ भी छिपा होता है। अगर बच्चे बोझ होते तो बिना बच्चे वाले बहुत खुश होते, क्या कारण है कि जब तक बच्चे न हो, लोग परेशान रहते हैं । हम आज्ञाकारी बच्चे चाहते हैं जबकि सच यह है कि ऐसे बच्चे बहुत कम कामयाब होते हैं। जो अपने फैसले नहीं ले पाते, उनके लिए आगे बढ़ना मुश्किल होता है ।
दूसरों से तुलना करना गलत है लेकिन किसी वजह से असफल और बेरोजगार बच्चों के साथ बार-बार ऐसा किया जाता है। बच्चों का सबके सामने अपमान करना और दूसरों से भी करवाना, उन्हें छोटा महसूस करवाना है । कई बार रंग, कद-काठी को लेकर भी उन्हें छोटा महसूस कराया जाता है, उस पर यह जताया जाता है कि हम तुम्हारे भले के लिए ऐसा कर रहे हैं । हमें याद रखना चाहिए कि एक उम्र के बाद बच्चों को माँ-बाप की जरूरत नहीं होती है लेकिन माँ-बाप को बच्चों की जरूरत होती है। आजकल बुजुर्गों का अकेलापन बड़ी समस्या बनता जा रहा है लेकिन इसके लिए सिर्फ बच्चे जिम्मेदार नहीं हैं। नौकरी और रोजगार के लिए बच्चों को अपना शहर और देश छोड़ना पड़ रहा है लेकिन कई बार स्वतंत्र रूप से जीने के लिए भी बच्चे ऐसा कर रहे हैं। बुजुर्गों के अकेलेपन के लिए कोई भी जिम्मेदार हो लेकिन कीमत तो उन्हें ही चुकानी पड़ती है।
अगर हम चाहते हैं कि परिवार टूटने से बचे और बुजुर्गों के अकेलेपन की समस्या पर काबू पाया जाए तो दो पीढ़ियों के बीच संवाद बढ़ाने के उपाय ढूंढने होंगे । यह दुनिया का बड़ा सच है कि बातचीत से रिश्ते बनते हैं । अगर हम अपने बच्चों से प्यार करते हैं तो वो भी हमें उतना ही प्यार करते हैं । सवाल यह है कि इसके बावजूद परिवार टूट रहे हैं । नई पीढ़ी को गैर-जिम्मेदार बताकर हम समस्या से दूर नहीं भाग सकते क्योंकि इससे समस्या खत्म होने वाली नहीं है । जब हम अपने बुजुर्गों से गलत व्यवहार कर रहे होते हैं तो भविष्य में अपने साथ ऐसा होने की जमीन तैयार कर रहे होते हैं क्योंकि बच्चे सुनकर नहीं देखकर समझते हैं । बचपन के दिए गए संस्कार जीवन भर चलते हैं।
राजेश कुमार पासी