कविता साहित्‍य

चिन्गारी भर दे मन में

चिन्गारी भर दे मन में

ऐसा गीत सुनाओ कविवर, खुद्दारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर, चिन्गारी भर दे मन में।।

हम सब यारों देख रहे हैं, कैसे हैं हालात अभी?
कदम कदम पर आमजनों को, मिलते हैं आघात अभी।
हक की रखवाली करने को, आमलोग ने चुना जिसे,
महलों में रहते क्या करते, हम सब की वे बात अभी?

सत्य लिखो पर वो ना लिखना, मक्कारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर, चिन्गारी भर दे मन में।।

लिखो हास्य पर व्यंग्य साथ में, लोगों से सम्वाद करो।
भूत-प्रेत और जादू-टोना, से उनको आजाद करो।
भूख-गरीबी से लड़ना है, ऐसे शब्द सजाओ तुम,
जाति-धरम से ऊपर उठकर, कोई नहीं विवाद करो।

कभी नहीं ऐसा कुछ लिखना, लाचारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर, चिन्गारी भर दे मन में।।

बिना आग उगले लेखन में, आपस का सद्भाव रहे।
लोग जगें और मिल सहलायें, अगर किसी को घाव रहे।
शब्दों की दीवार बना दो, रोके नफरत की आँधी,
सबको सुमन बराबर अवसर, जहाँ पे जिसका चाव रहे।

ऐसी तान कभी मत छेड़ो, बीमारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर, चिन्गारी भर दे मन में।।

 

घर मेरा है नाम किसी का

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घर मेरा है नाम किसी का

और निकलता काम किसी का

 

मेरी मिहनत और पसीना

होता है आराम किसी का

 

कोई आकर जहर उगलता

शहर हुआ बदनाम किसी का

 

गद्दी पर दिखता है कोई

कसता रोज लगाम किसी का

 

लाखों मरते रोटी खातिर

सड़ता है बादाम किसी का

 

जीसस, अल्ला जब मेरे हैं

कैसे कह दूँ राम किसी का

 

साथी कोई कहीं गिरे ना

हाथ सुमन लो थाम किसी का