चार बोतल वोटका के नशे में बॉलीवुड के बाबूजी

विवेक कुमार पाठक
” चार बोतल वोदका, काम मेरा रोज का। न कोई मुझे रोके न किसी ने रोका” ।
ऊटपटांग तुकबंदी गाकर युवाओं में चर्चित यो यो हनीसिंह का ये अजब गजब गाना भारतीय सिनेमा को नशे में ले जाता दिखता है। किसको कितना नशा हुआ नशे में क्या क्या हुआ। परदे का साधु किरदार परदे के पीछे विलेन कैसे बना। कैसे संस्कारी बाबूजी हवस के बाबा बन गए। कैसे कलम से हाफ गर्लफेंड लिखकर शादीशुदा चेतन भगत दूसरी महिलाओं के प्रति लंपट हुए तो कैसे नाना पाटेकर अमिनेत्री तनुश्री दत्ता की ना ना का सम्मान नहीं कर सके।
ये तमाम सवाल मी टू कैम्पेन ने मुंबइया सिनेमा में तनुश्री के मुंह खोलने के बाद शुरू हुए हैं। आशिक बनाया आवारा फिल्म में अपने अभिनय से ज्यादा अपने तंग कपड़ों और अंतरंग दृश्यों के कारण चर्चित रहीं तनुश्री ने 10 साल बाद चुप्पी तोड़ी है। उन पर सवाल उठ रहे हैं कि वे इतने लंबे समय क्यों चुप रहीं। सवाल नाना की दशकों पुरानी अलग छवि पर भी उठ रहे हैं। क्या वाकई किसान हितैषी नाना नई कलाकारा पर नजर बदल रहे थे।
पहले मी टू कैम्पेन से सिनेमा में काम कहीं महिलाओं ने पुराने शोषण पर जुबान खोली तो उसके बाद पत्रकारिता, राजनीति, खेल और कला साहित्य जगत से भी महिलाओं के यौन शोषण के मामले उजागर होने लगे। इन सभी महिलाओं ने कहा है कि बड़ी हस्तियों ने अपनी शख्सियत का फायदा उठाकर उनसे जोर जबर्दस्ती की मगर उनके कद व निर्णायक हैसियत के कारण वे समय पर मुंह खोल न सकीं।
तय है कि एक साथ देश की इतनी सारी चर्चित महिलाएं न झूठ बोल सकती हैं और न उन पर इस तरह का घटिया आरोप लगाने का किसी को हक है।
गर उम्रदराज टीवी लेखिका विंता नंदा ने खुलकर कहा है कि आलोकनाथ ने उन्हें नशे में शराब पिलाकर उनसे दुष्कर्म किया तो ये झूठा नहीं बल्कि सिनेमा की चमक दमक में छिपे कालिख को सामने लाने वाला सच हो सकता है फिर भी जांच को नकारा नहीं जा सकता।
 लेखिका विंता के इस आरोप ने माया नगरी मुंबई में पर्दे के पीछे के जीवन और उनके असली किरदारों पर बहस छेड़ दी है।देखा जाए तो आलोकनाथ आज पर्दे पर बचे खुचे संस्कारों का अभिनय ही कर रहे हैं नहीं तो 1991 के बाद आए उदारवाद ने तो भारतीय सिनेमा को निरंतर नंग धड़ंग बनाकर जमकर पैसा कूटा है। बाजार के विज्ञापनों से चैनल चलेंगे। चैनल पर जो जितना उत्तेजक दिखाएगा बाजार उस पर उतना पैसा लुटाएगा और निर्माता सबसे आधुनिक वही जो समंदर समर्पित दृश्य में हीरोइन को बिकनी पहनाए बिना फिल्म बनाना भी पाप समझे।
जो विरले सूरज बढ़जात्या सरीखा संस्कारी निर्माता परिवार और रिश्ते नातों पर फिल्म बनाएगा उसे फिल्मकार की बजाय शादी का वीडियोग्राफर बोल बोलकर इतना ट्रोल किया जाए कि उन्हें भी मैं प्रेम की दीवानी हूं बनाकर छोटे छोटे कपड़े सिनेमा का सर्टिफिकेट लेने को मजबूर होना पड़ जाए। देखा जाए तो पश्चिमी सिनेमा की तरह हिन्दी सिनेमा में भी अधिकाधिक देह दिखाउ दृश्यों के पैरोकारों का बहुमत होता जा रहा है।
नया ट्रेंड है कि जिस ब्रांडेड कलाकार या नामधन्य फिल्मकार को कपड़े उतारने और उतरवाने पर सेंसर से सुधार का कड़ा नोटिस मिला नहीं कि उसे या तो भारत में डर लगने लगेगा या फिर उसकी फिल्मी रचनात्मकता उसे दिन रात फांसी पर लटकी और झूलती मिलेगी।
अब इसी बाजारवादी सिनेमा के बहुमत वाले हिन्दी सिनेमा के पैरोकारों को दारु देह और सैक्स के प्रति गजब लगाव उल्टा करंट मारता दिख रहा है।
हर फिल्म में सबसे बिकाऊ चीज के नाम पर जिन नंगे दृश्यों, संवादों को तेजी से शामिल किया जा रहा है वे शायद तमाम नामी कलाकारों का चरित्र बनते जा रहे हैं। अब बॉलीवुड कलाकारों के एक जीवन में कई दृश्य और अदृश्य विवाह हो रहे हैं।
कई सामने टूट रहे हैं, कई छिपकर तो कई आपसी समझ से अघोषित।
बिना गॉडफादर के सिनेमा में प्रवेश करने वाली अधिकांश  सिनेप्रेमी युवतियों की प्रतिभा उनके समर्पण से तय की जा रही है।
लगता है जैसे औरंगजेब के जमाने का जजिया कर हीरोइन बनने से पहले निर्माता और तमाम दिग्गज स्टार लेने लगे हों।
पर्दे पर दिखने की चाहत लेकर दशकों से लाखों हीरोइन बनने आती रहीं लड़कियां किस किस के आगे मजबूर हुईं ये पश्चिम से आया मी टू कैम्पेन पूरा पूरा बता पाएगा इसको लेकर अनेक सरोकारपरक बुद्धिजीवियों को संशय है।
बेशक मी टू ने बोलने की ताकत दी है इसमें कोई दो राय नहीं। इस अभियान की अभी चिंगारी निकली है। क्या पता कितना बड़ा विस्फोट सबको देखने को मिले।
खैर बॉलीवुड में बुजुर्ग अभिनेता आलोकनाथ अगर सालों तक महिला कलाकारों से ज्यादती करते रहे और तमाम सिनेमाई इस पर चुप रहे तो ये हमेशा अभिनय के मोड में रहने वाले मौनी सिने समाज का काला सच है।
शायद हम्माम में सब तरफ इतने नंगे होंगे कि कुछ लिबास वालों का मुंह तक न खुल सका।
नाना पाटेकर अगर तनुश्री को अपने करीब लाने के लिए डांस डायरेक्टर से प्रायोजित स्टेप्स तय कराने वाले साबित हुए तो ये शर्मनाक है। इस प्रकरण ने बॉलीवुड में पुरुष कलाकारों के रंगीले इरादों का सैम्पल सामने ला दिया है।
फिल्मों में एकता कपूर मुकेश भट्ट सरीखे निर्माता पहले से ही लाइव सिनेमा में इतने शारीरिक संबंधों को उजागर करते व्यस्क दृश्य डाल रहे हैं कि पर्देदारियां पर्दों की तलाश में हैं।
असल में सिनेमा में जो नंगापन दिनोंदिन जमकर परोसा जा रहा है वो अब सिनेमा वालों के निजी जीवन का हिस्सा भी बनता जा रहा है।
धन्य हों देश के वे तमाम दर्शक जो आलोकनाथ को आज  हम आपके हैं कौन जैसी यादगार फिल्म का कैलाशनाथ और तमाम धारावाहिकों का बाबूजी बनाए हुए हैं वरना नए भारत में कैलाशनाथ और बाबूजी होने को तो लंबे समय से खिल्ली उड़ाने का विषय बना दिया गया है।
ऐंजी और बेटाजी कहने वाले संवाद लिखने वाले गरियाए और ट्रोल किए जा रहे हैं। आज इस मी टू केम्पेन के छेद से जो सच्चाई सामने आ रही है वो एक दिन में फैला अंधकार नहीं है।
ये कोयले की वो स्याह कालिख है जो वासना को रचनाधर्म बताने वाली भट्टी में निरंतर धधकते हुए बनी है।
जीवन में इंसान कई रसायनों को लेकर पैदा हुआ है मगर मानवीय जीवन कुत्ते बिल्लियों और अन्य चौपायों से इसीलिए बेहतर माना गया कि यहां जीवन में अनुशासन है। रिश्ते नातों के बंधन हैं। प्रेम और प्रेमालाप के बीच पर्देदारियां हैं।
फिल्मों और सीरियलों में ऑडीशन से लेकर शूटिंग के बीच हजारों इंसान आसपास हैं। वे सभी न पुरुष हैं न सभी वासना के गुलाम मगर इन सभी के बीच में काम करने वाली महिला कलाकार अगर यौन शोषण का शिकार हो रही हैं तो ये उस सरोकारीन तमाशबीन सिनेमाई समाज पर तमाचा है।
ये तमाचा उन कथित नारीवादियों और सिनेमाई स्वत्रंतता पैरोकारों पर भी है जो नारी की निजता और नंगेपन को अपनाने की स्वतंत्रता के बीच का अंतर ही भूल गए हैं।
अगर पीड़ित महिला कलाकार यौन हमलावर बड़े कलाकार के खिलाफ अवसर न जाने के डर से चुप रहती हैं तो इसके लिए उन्हें शत प्रतिशत निर्दोष नहीं कहा जा सकता।
वे रुपहले पर्दे पर चमकना चाहती हैं तो उन्हें पर्दे के पीछे छिपी आसपास की कालिख के खिलाफ शुरू से बोलना होगा।
 एक मुखर आवाज अगर एक अवसर बंद करेगी तो दस नए रास्ते खोलेगी भी।
 अगर रास्ते तुरंत भी न मिलें तो भी संघर्ष का जज्बा तो मजबूत होगा ही। ये बात पत्रकारिता को पेशा बनाने वाली महिला पत्रकारों पर भी बराबर से लागू होती है। अगर वे अपने जगप्रसिद्ध संपादक की ज्यादती के खिलाफ समय पर नहीं बोल सकीं तो वे समाज की ज्यादती पर कैसे खुलकर बोल सकेंगी।
अगर इन सभी आरोपों को एक बार सौ टका सच मान भी लें क्या एम जे अकबर जैसे ख्यात संपादक आज वाला मी टू मौके पर ही महिला पत्रकार के मुखर होने पर इस तरह की ज्यादती कर पाते।
नामी लोग आसमान पर खड़े हैं। अगर वे महिलाओं का यौन शोषण कर रहे हैं तो जमीन पर खड़ी महिलाओं को उन्हें गिराने दमदार और असरदार आवाज तुरंत उठाना चाहिए।
 कोई शक नहीं है कि आसमान से गिरने वाला जमीन पर बिखर जाएगा मगर जमीन से जमीन पर गिरने वाली महिलाओं के लिए ऐसा क्या डर है।
आजाद हिन्दुस्तान में रुल ऑफ लॉ है तो पढ़ी लिखी, महिलाओं और युवतियों को सिनेमा, पत्रकारिता, राजनीति से लेकर हर क्षेत्र में हर अन्याय पर अविलंब मुखर होना होगा। अन्याय अत्याचार, यौन शोषण और लैंगिक हिंसा के खिलाफ आज जितनी भी महिलाएं और युवतियां बोल रही हैं उनका स्वागत है। चुप्पी तोड़ने पर उनका शुक्रिया मगर इस गुजारिश के साथ कि आगे समय से चुप्पी तोड़िए जिससे किसी भी महिला का शोषण न हो सके।
आपका शोषण देश और समाज कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। हर भारतीय आपके साथ है। मी टू।

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