राजनीति

भारत के समक्ष भविष्य की चुनौतियां एवं समाधान

डा रवि प्रभात

डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने आज से सौ वर्ष पूर्व जिस  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बीजारोपण किया था, वह आज शतायु होकर एक विशाल वट-वृक्ष के रूप में परिणत हो चुका है। निश्छल, निर्मल, निस्वार्थ भाव से  एवं शुचितापूर्ण साधनों से प्राप्त किया गया साध्य भी उतना ही पवित्र, लोक-कल्याणकारी एवं कालजयी होता है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए अगर कोई विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकता है तो वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।

 पराधीनता के कालखंड में, अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में , मूलभूत संसाधनों के अभाव में तथा तमाम विरोधों के झंझावात में भी संघ अगर निरंतर अपने विस्तार को प्राप्त हो पाया तो इसका एक बड़ा कारण रहा है संघ की भारत राष्ट्र के प्रति अनन्य निष्ठा एवं प्रतिबद्धता । संघ भारत के शाश्वत मूल्यों को आत्मसात कर, भारतीय संस्कृति एवं सनातन के प्रवाह को अपने में समेट कर, भारत के प्राचीन गौरव एवं स्वाभिमान को जनमानस में पुनर्जागृत कर भारत राष्ट्र को विश्व में सिरमौर बनाने के अपने उद्देश्यों में निरंतर संलग्न रहा,  जिस साधना का सुफल आज संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर स्पष्ट प्रतिबिंबित हो रहा है।

 भारतीय संस्कृति के चिरंतन प्रवाह में विजयादशमी उत्सव का विशेष महत्व है,  जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने अधर्म, अत्याचार, अन्याय एवं आसुरी शक्तियों के प्रतिनिधि रावण का संहार कर संसार में धर्म की प्रतिष्ठा की थी। संयम एवं शौर्य के समन्वित रूप विजयादशमी के उत्सव पर संघ की स्थापना एक मणिकांचन संयोग ही कहा जाएगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अनुशासन,  संयम, शौर्य एवं पराक्रम की पगडंडी पकड़े हुए आज इस विशाल स्वरूप को प्राप्त कर पाया है।

 शताब्दी वर्ष के इस स्वर्णिम अवसर पर संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन राव भागवत जी ने अपने संबोधन में भारत राष्ट्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों का खाका खींचते हुए जहां उनसे सावधान रहने का संदेश दिया है वहीं  कतिपय समाधान भी सुझाए हैं।

 वर्तमान संदर्भों में स्पेस टेक्नोलॉजी से लेकर सभी क्षेत्रों में भारत की वैश्विक स्तर पर जोरदार उपस्थिति दर्ज हो रही है, ऑपरेशन सिंदूर में भारत की युद्ध क्षमता से सारा विश्व विस्मित रह गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि भारत विरोधी शक्तियों द्वारा समय- समय पर भारत के मार्ग में अवरोध पैदा करने का प्रयास किया जाएगा । इसलिए आवश्यक है कि भारतीय जनमानस  इस प्रकार की परिस्थितियों के प्रतिकार के लिए हमेशा सन्नद्ध रहे। पहलगाम में मानवीयता पर हुए नृशंस  हमले के बाद आमजन के आक्रोश की अभिव्यक्ति ऑपरेशन सिंदूर के रूप में हुई। एक संप्रभु राष्ट्र के लिए यह उचित भी था कि भारत आतंकियों एवं उनके सहयोगियों पर कठोर प्रहार करे,  लेकिन यह भी ध्यातव्य  है कि ऑपरेशन सिंदूर की छाया में उपजी परिस्थितियों में वैश्विक स्तर पर कौन सा देश किस पाले में खड़ा था। भागवत जी ने इस बात पर विशेष बल दिया कि यह संकट काल जहां इन वास्तविकताओं से परिचित कराने का उपयुक्त माध्यम बना कि कौन सा देश हमारे साथ है और कौन हमारे शत्रुदेश के समर्थन में खड़ा हुआ है। इन स्थितियों को ध्यान में रखकर बिना किसी त्वरित  प्रतिक्रिया के भारत को भविष्य के लिए सजगता पूर्वक तैयारी करनी चाहिए। इस संदर्भ में यह रेखांकित करना आवश्यक है कि आपरेशन सिन्दूर के समय  संपूर्ण भारतीय जनमानस जिस एकात्मता के साथ डटकर एकजुट रहा वह निश्चित रूप से भारत राष्ट्र के लिए सकारात्मक संकेत है।

 लंबे समय से आंतरिक सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती देश के समक्ष रही है,  संविधान-विरोधी, नक्सली, उग्रवादी  आम वनवासियों के जीवन में निरंतर खलल डालते रहे हैं । न जाने कितने निर्दोष वनवासी एवं सुरक्षाकर्मी  इस उग्रवाद की भेंट चढ़ गये। लेकिन पिछले कुछ समय में इस लाल आतंक पर जिस रणनीति के साथ कठोर कार्यवाही की जा रही है एवं जिस प्रकार से इनका प्रभाव क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है यह एक सराहनीय कार्य है। इस अवसर पर आवश्यक है कि इन उग्रवादी समूह के जो पैरोकार शहरों में बैठे हैं वे किसी न किसी प्रकार से इन  उग्रवादी समूहों के लिए समाज में सहानुभूति उपजाने का प्रयास करेंगे , जिससे सावधान रहने की आवश्यकता है ।

मोहन भागवत जी ने  एक अत्यंत महत्वपूर्ण चुनौती का उल्लेख अपने उद्बोधन में किया जिस पर चर्चा करना बेहद आवश्यक है । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह मनमाने ढंग से भारतीय निर्यात पर टैरिफ लगाना शुरू किया है यह एक आर्थिक खतरे का संकेत तो है ही लेकिन एक सबक भी है । भारत एक स्वाभिमानी राष्ट्र है उसे इस प्रकार की गतिविधियों से बाध्य नहीं किया जा सकता कि जहां कोई अन्य देश भारत के नीति निर्धारण में हस्तक्षेप करने की चेष्टा करे।  इसके लिए आवश्यक है कि भारत को स्व के भाव को आत्मसात करते हुए , आत्मनिर्भर भारत की तरफ बढ़ना होगा। जनमानस में स्व का भाव प्रबल होना चाहिए तकनीकी क्षेत्र से लेकर चिकित्सा एवं सेवा समेत सभी क्षेत्रों में स्वावलंबी भारत ही इस वैश्विक स्थिति में अपनी शर्तों तथा स्वाभिमान के साथ खड़ा रह पाएगा।

 भारत के पड़ोसी देश नेपाल श्रीलंका बांग्लादेश आदि में पनपे अराजक वातावरण की आड़ में कुछ निहित स्वार्थी तत्व भारत में भी युवाओं को कथित क्रांति का सपना दिखाकर भारत को अस्थिर करने की चेष्टा कर रहे हैं अथवा भविष्य में ऐसा  कोई षड्यंत्र सामने आ सकता है। भागवत जी ने अपने वक्तव्य में कहा इस प्रकार के आचरण को बाबासाहेब अंबेडकर ने ग्रामर ऑफ अनार्की कहा है। इतिहास में इस प्रकार की अराजक परिस्थितियों से कभी भी उद्दिष्ट फल की प्राप्ति नहीं हो पाई है,  इसके विपरीत राष्ट्रविरोधी शक्तियां ही हमेशा इस तरह के वातावरण का लाभ उठाती रही हैं । देश का युवा सकारात्मकता के साथ राष्ट्र में सृजनात्मक शक्ति का संवाहक बन रहा है , परंतु कुछ तत्वों को यह रास नहीं आ रहा।  ऐसे तत्वों से हमेशा सावधान  चाहिए ।

इसी प्रकार भारत की एक अनुपम विशेषता है विविधता।  उसको भी कुछ तत्व विरोधाभासी प्रदर्शित कर नित नया बखेड़ा खडा करने का प्रयास करते हुए दिखलाइ पडते हैं। सरसंघचालक ने  अपने वक्तव्य में इस तरफ भी देश का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा की विविधता हमारे देश का वैशिष्ट्य है यह  भेद  का कारण नहीं बनना चाहिए, अतः सामाजिक एकता में किसी भी प्रकार का ह्रास  नहीं होना चाहिए,  यह दायित्व किसी एक वर्ग का नहीं सभी का है। भारत की समृद्धि एवं गौरव के लिए सामाजिक एकता का सुदृढ रहना अत्यंत आवश्यक है।

  भागवत जी  के इस संबोधन में भारत के लिए भविष्य की क्या चुनौतियां आ सकती हैं  एवं किस प्रकार उनसे सजग रहकर उनका समाधान किया जा सकता है इसका भली भांति निरूपण किया गया।

 भारत की सांस्कृतिक-सामाजिक एकता,  आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा,  युवा शक्ति समेत समग्र जनमानस का भारत के साथ एकात्मता का बोध तथा स्व   का गौरव,  इन्हीं सब कारकों  से भारत सशक्त, आत्मनिर्भर, स्वावलंबी एवं स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में खड़ा होकर विश्व में अग्रणी भूमिका का निर्वाह कर सकता है।