दक्षिण – वाम के झगड़े में गाँधी- नेहरू और पटेल का विभाजन ?

                       प्रभुनाथ शुक्ल

संविधान के मूल में अभिव्यक्ति की आजादी को पूरी तवज्जों दी गई है। सवाल तब उठता है जब विचारों की आजादी हाथ में पत्थर उठा ले। बेगुनाह लोगों की माब लिंचिंग करे। बसों, रेलवे स्टेशनों, सार्वजरिक संपत्ति को आग के हवाले कर दे। बदले में सरकारें ऐसे लोगों के खिलाफ पोस्टर जारी कर उनकी शिनाख्त करने की अपील करें। उनके घरों पर सरकारी नोटिस चस्पा हो जाए। यूपी जैसे राज्य में पुलिस दो-चार नहीं दस-दस हजार लोगों को आरोपी बना डाले। सरकारी संपत्ति क्षतिपूर्ति की नोटिस तामिल कराई जाय। हिंसक प्रदर्शन में लोगों को जेलों में ठूंस दिया जाए। यह कैसी आजादी है ? हम किस तरह की आजादी चाहते हैं। हमारा संविधान क्या ऐसी अभिव्यक्ति की आजादी देता है ? दक्षिण और वामपंथ की लड़ाई में देश जल रहा है। सेक्युलरवाद के नाम पर नई परिभाषा गढ़ी जा रही है। विचारधाराओं के हिंसक धड़े तैयार हो गए हैं।

राष्ट्रवाद की नई परिभाषाएं निरंतर गढ़ी जा रही हैं। जेएनयू, जामिया, डीडीयू और अलीगढ़, बीएचयू, जावधपुर जैसे शिक्षा संस्थानों के हालात क्या हैं। ऐसे संस्थानों में किस तरह की विचारधाराएं गढ़ी जा रही हैं। यह विचारणीय बिंदु है। महामना मदनमोहन मालवीय ने जिस काशी हिंदू विश्वविद्यालय को अपने खून-पसीने से सींचा। उसी बगिया में संस्कृत विभाग में एक प्रोफेसर की नियुक्ति को लेकर किस तरह सांप्रदायिकता और विभाजन का खेल खेला गया। शिक्षा के मंदिर को भी सांप्रदायिकता में बांटने की साजिश रची गई, यह बेहद शर्मनाक है।विचारधाराओं में मतभेद होना आवश्यक है। लेकिन जब बात मनभेद तक पहुंच जाती है तो हिंसा का रुप पकड़ लेती है। केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय में जिस तरह दक्षिण विचारधारा के हिमायती राज्यपाल आरिफ मोहम्मद के साथ बदसलूकी की गई वह हमारे इतिहास को कलंलित करने वाली है। सभ्य समाज में कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए। यह बात तब और अहम हो जाती है जब उस मंच पर जानेमाने इतिहासकार इरफान हबीब जैसी शख्सियत मौजूद हो। राज्यपाल की सुरक्षा में लगे गार्ड का बिल्ला नोंचना और राज्यपाल के साथ हुई बदसलूकी किस लोकतंत्र का हिस्सा कही जा सकती है। जिन्होंने हमें भारत जैसे देश का अनुपम गुलदस्ता सौंपा उन्हीं गांधी, नेहरु और सरदार पटेल को दक्षिण और वामपंथ में बांट कर नई परिभाषा गढ़ने को बेताब हैं।

दक्षिणपंथ और वामपंथ के झगढ़े की असली वजह देश में हुए राजनैतिक परविर्तन हैं। देश में दक्षिणपंथ विचारधारा की हिमायती भाजपा का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। जिसकी वजह से दक्षिणपंथ और वामपंथ की वैचारिक पृष्ठभूमि सियासी हिंसा दौर बढ़ रहा है। पश्चिम बंगाल और केरल में राजनैतिक कार्यकर्ताओं की हत्याएं इसका प्रबल उदाहरण हैं। बंगाल के लोकसभा और पंचायत चुनाव में हुई हिंसा किसी से छुपी नहीं है। पुरस्कार वापसी गैंग, टुकड़े-टुकड़े और माबलिचिंग जैसी विचारधाएं इसी दक्षिण और वामपंथ की उपज हैं। उच्च शैक्षणिक संस्थान हिंसा और प्रदर्शन के अड्डे बन गए हैं। दक्षिण और वामपंथ की लड़ाई का नतीजा है कि नागरिकता बिल पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी संयुक्तराष्ट तक पहुंच गई। उन्होंने संयुक्तराष्ट संघ की निगरानी में नागरिकता बिल पर मत विभाजन तक की मांग कर डाली। वोट बैंक की राजनीति में हम कितने गिर जाएंगे, इसका पैमाना हमारे पास नहीं है। सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर लगी आग शांत होने का नाम नहीं ले रही है। झूठ किस तरह बेंचा जा रहा है कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच अभी तक यह तय नहीं हो पाया है। वोटबैंक की भट्ठी पर जनतंत्र को उबाल कर सड़क पर खड़ा कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर, गृहमंत्री अमितशाह के साथ पूरी सरकार संसद से लेकर सड़क तक। सोशलमीडिया से लेकर टीवी और प्रिंट तक साफ कर चुकी है कि एनआरसी का कोई खाका नहीं तैयार है।

देश संविधान और विधान से चलता है। हमारे संविधान का निर्माण धर्म, पंथ, जाति, लिंग, भाषा, रंग, विचार से नहीं हुआ है। संविधान मूल में सेक्युलरवाद की अवधारणा हैं। उसमें दक्षिण और वामपंथ का कोई स्थान नहीं है। फिर देश को बांटने की राजनीति क्यों की जा रही है। देश में 2014 में आए राजनीतिक परिवर्तन के बाद वाम और दक्षिणपंथ की बहस अधिक तीखी हो चली है। सेक्युलरवादी भारतीय राष्टीय कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा वाले राज्यों में भाजपा की जीत ने गैर भाजपाई दलों की परेशानी बढ़ा दी है। पूरब से लेकर दक्षिण भारत तक यह उभार दिखता है। साल 2019 दक्षिणपंथी विचारधारावाली भाजपा के लिए बेहद अहम रहा। भाजपा अपनी राजनीतिक घोषणा को लागू करने में सफल रही है। जम्मू-कश्मीर में आर्किटल 35 ए और धारा-370 का खात्मा उसकी बड़ी उपलब्धि रही है। राममंदिर पर फैसला सबसे अहम पड़ाव साबित हुआ। इसके बाद नागरिकता बिल भी उसने अपना बोटबैंक मजूबत किया है। तीन तलाक जैसे मसले पर भी वह विपक्ष को कटघरे में रखा। अब सिविल कोड और धर्म परिवर्तन जैसे बिल भी वह ला सकती है। वह संघ की सोच को आगे बढ़ाना चाहती है। क्योंकि हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफ कर दिया है कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है। ऐसी स्थिति में भाजपा अपनी सधी रणनीति से आगे बढ़ रही है जबकि वामपंथ को तगड़ा झटका लगा है। हालांकि महाराष्ट्र के बाद झारखंड में उसे तगड़ा झटका लगा है। उसका जनश्विास घटा है। हमें दक्षिण और वामपंथ के झगड़े से निकलना होगा। राष्ट्र निर्माण में सरकार और प्रतिपक्ष को एक साथ आना होगा। विभाजनकारी तागतों को पहचानने का वक्त है। सरकार का भी दायित्व है कि वह बहुमत के अखंड जनादेश का सम्मान कर प्रतिपक्ष को विश्वास में ले। देश की सेक्युलर छबि को आघात न पहुंचे। देश आम सहमति से चलेगा हिंसा से नहीं।

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