गंगा दशहरा विशेष :
डॉ० घनश्याम बादल
इस बार पर्यावरण दिवस एवं गंगा दशहरा एक साथ पड़ रहे हैं. जहां पर्यावरण दिवस भौतिक शुद्धता का प्रतीक है जिससे प्रदूषण पर चोट की जाती है और पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लिया जाता है, यही हमारी संस्कृति भी है और जीवन शैली भी।
जब बात धर्म एवं संस्कृति की की जाती है तो हम जानते हैं कि गंगा भारतीय धर्म व संस्कृति का अभिन्न अंग है । कभी मन के कलुषों को धोने के लिए तो कभी तन को गंगा सा चंगा करने के लिए, कभी घूमने, तीर्थाटन,पर्यटन , दान व पुण्य के बहाने हम गंगा से भेंट करने का अवसर ढूंढ लेते हैं पर हमें खास अवसर देते हैं त्यौहार ।
ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को पड़ने वाला पर्व गंगा दशहरा गंगा के धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण पर्व है । गंगा दशहरा एक पर्व मात्र नहीं वरन् हमें हमारी संस्कृति की ओर ले जाने व पापों के नाश करने का अनोखा पर्व है । यह पर्व भारत की आत्मा में बसने वाले त्यौहारों में से एक है । शायद इसी पर्व की वजह से गंगा को पापनाशिनी की संज्ञा भी दी गई है।
दस विशेष ज्योतिष योग:
आज के दिन दस विशेष ज्योतिष योग एक साथ इकट्ठे होते हैं, इस वजह से भी इसे दशहरा नाम मिला है । ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि गंगा दशहरा पर ज्येष्ठ मास, शुक्लपक्ष, दशमी तिथि, बुधहस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर करण, आनंद योग, कन्या राशि का चंद्रमा, वृष राशि का सूर्य एक साथ होते हैं. यही वजह है इसे दशहरा नाम मिलने का क्योंकि यह दस योगों को हरा या प्रसन्न करने वाला पर्व है ।
नष्ट होते दस पाप
मान्यता है कि गंगा दशहरे के दिन यदि कोई व्यक्ति गंगा में प्रवेश करके‘‘ ओउम् नमो भगवती, हिलि हिलि गंगा, मिलि मिलि गंगा , पावय पावय स्वाहा ….’’ का जाप दस बार कर लेता है तो उसके दस पाप काम, क्रोध्, लोभ, मद, मोह, डाह, ईर्ष्या, द्वेष, दूषित विचार व हिंसाभाव नष्ट हो जाते हैं। सोचिये जिसके यें दस पाप नष्ट हो गए वह तो सोने सा खरा हो जाएगा । स्कंद पुराण के अनुसार दस पापों के हरने के कारण ही यह स्नान पर्व दश-हरा कहलाया ।
क्या कहते हैं मिथक
आज के ही दिन महाराजा सगर के प्रपौत्र भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर शिव ने गंगा को पृथ्वी पर अपनी केशराशि में रोककर सुरक्षित उतारा था , ज्ञात हो कि यें सगर पुत्र रानी कुशनी व सुमति के बेटे थे जो अगस्त्य मुनि के शाप से भस्म हो गए थे और उनके तर्पण के लिए कहीं भी जल तक नहीं मिला था क्योंकि अगस्त्य ने उन्हे मुक्ति न मिलने देने के लिए पृथ्वी का सारा जल पी लिया था, तब भागीरथ ने तप करके पहले ब्रह्मा और विष्णु व बाद में शिव को प्रसन्न करके गंगा को पृथ्वी पर लाने में कामयाबी पाई थी , जिसके जल से उनके पुरखों को मुक्ति मिली । तब से गंगा को मोक्षदायिनी कहा गया ।
समृद्धि व खुशहाली लाती
भारत के लिए गंगा आज भी समृद्धि व खुशहाली लाती है गंगा के बिना समृद्धिशाली भारत की कल्पना बेमानी है । यह भारत के लिए महज एक नदी मात्र नहीं वरन् पाप नाशिनी, मुक्तिदायिनी व सींचन की सबसे बड़ी साधिका, जल के रूप में जीवन देने वाली , कृषि का आधार तथा विद्युत उत्पादन का स्रोत है ।
‘शिवोऽहं’ का भाव का जागरण
गंगा हममें ‘शिवोऽहं’ का भाव जाग्रत करती है । गंगावतरण एक आध्यात्मिक पक्ष है जो मनुष्य के तीनों गुणों को जाग्रत करती है. ब्रह्मा के रूप में रजोगुण, विष्णु के रूप में सतो गुण व शिव के रूप में तमो गुण के संतुलन के लिए प्रेरित करता है गंगावतरण का प्रसंग ।
कर्म की महत्ता
भागीरथ यहां मानव के कर्म की महत्ता को प्रतिपादित करते हैं, तप कर्म का रूप है व गंगा उसके कर्म का पुरस्कार । यह कहीं गीता के ‘‘कर्मण्येवऽध्किारस्ते मा फलेषु कदाचन ’’ के सिद्धांत को भी पुष्ट करता है क्योंकि यदि आरम्भ से ही फल की इच्छा मन में घर कर गई तो तपश्चर्या जैसा कष्ट साघ्य कर्म हो ही नहीं सकता है । यह पर्व मूलाधर;ब्रह्मा से हृदयचक्र ;विष्णु और उससे भी आगे सहस्रनर शिव की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है ।
गंगा की उपेक्षा चिन्ताजनक
आज के संदर्भो में गंगा दशहरा पर्व गंगा के प्रति उपजे उपेक्षाभाव की चिन्ता भी जाग्रत करता है , हमारे पर्यावरणविद् लगातार गंगा पर आए संकट से सजग कर रहे हैं , साधु संत भी गंगा पर बनने वाले बांधों, उसके जल प्रवाह को रोकने,नियंत्रित करने , उससे जलविद्युत बनाने जैसे कार्यों का विरोध कर रहे हैं जो कुछ जायज़ और कुछ नाजायज़ है । हां , गंगा की पवित्रता को बनाए रखने की उनकी चिंता उचित है क्योंकि जिस गति से गंगा में प्रदूषण बढ़ रहा है उससे तो वह मोक्षदायिनी की बजाय रोगदायिनी ही बनती जा रही है ।
समय की मांग
आज समय की मांग है कि गंगा को हर हाल में पावन रखा जाए, उसमें गिरते मल मूत्र, औद्यागिक दूषित जल व कचरे को रोका जाए, उसकी नियमित सफाई की जाए, उसके जल को खेतों तक जाने दिया जाए , जरुरत से ज्यादा पानी रोका न जाए व नई पीढ़ी को भी उसके महत्त्व से परिचित कराया जाए ।
गंगा की स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने भी गंगा की पवित्रता और स्वच्छता को नमामि गंगे कार्यक्रम के द्वारा पर्याप्त महत्व दिया है । पर, सारे प्रयासों के बावजूद भी गंगा की निर्मलता का लक्ष्य नहीं प्राप्त की जा सका जो चिंता का विषय है । आशा है गंगा की सफाई व उसकी निर्मलता पर और ध्यान दिया जाएगा तथा आमजन भी रुढ़िवादी चिंतन को छोड़ आस्था के साथ गंगा को निर्मल करने में अधिक से अधिक योगदान करेंगे ।
गंगा दशहरा जरूर मनाएं
अस्तु, गंगा दशहरा जरूर मनाएं पर आज के दिन दान करना न भूलें, भले ही इसे तिलादि के रूप में करें , धर्मिक दृष्टि से करें , आत्मिक सुख के लिए करें या फिर जरुरतमंदों की सहायता के लिये, हर दृष्टि से यह दान गंगाा दशहरे पर आपको लाभ ही पहुंचाएगा । और इन सबसे बढ़कर पर्यावरण एवं विज्ञान की दृष्टि से गंगा की स्वच्छता में योगदान जरूर करें जिसे सबसे बेहतर तरीका है गंगा में किसी भी प्रकार की गंदगी ना डालें एवं वर्ष में काम से कम 10 दिन गंगा की सफाई में स्वयंसेवक के रूप में अपना योगदान दें जिससे गंगा एक बार फिर से निर्मल शीतल और मोक्षदायिनी बन सके।
डॉ घनश्याम बादल