कमलेश पांडेय
आखिरकार दुनिया का थानेदार समझे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने मित्र यहूदी देश इजरायल की शांति के लिए चुनौती बन चुके कट्टरपंथी इस्लामिक राष्ट्र ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों पर हवाई हमले करके जहां विगत 10 दिनों से चल रहे इजरायल-ईरान युद्ध को एक नया मोड़ दे दिया, वहीं अपनी इस अप्रत्याशित कार्रवाई से उनकी थानेदारी को महज बयानी चुनौती देने वाले चीन-रूस-उत्तर कोरिया आदि देशों को भी एक स्पष्ट संदेश दे दिया कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी हद में रहो अन्यथा अंजाम और भी बुरे हो सकते हैं। इस प्रकार ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले के वैश्विक मायने स्पष्ट हैं जो एक ध्रुवीय विश्व को बहुध्रुवीय बनाने के प्रयासों की विफलता को उजागर करते हैं। वहीं, ये कुछ अन्य महत्वपूर्ण वैश्विक पहलुओं पर भी प्रकाश डालते हैं जो अग्रलिखित हैं।
पहला, ईरान पर हुए अमेरिकी हमले से एक बार फिर यह स्पष्ट हो चुका है कि मौजूदा एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका के सजग और शातिर नेतृत्व को ऑन द स्पॉट चुनौती देने का दमखम अभी रूस-चीन-उत्तर कोरिया गुट के पास के पास नहीं है, खासकर अपने ऊपर आश्रित राष्ट्रों के लिए भी। ऐसा इसलिए कि जहां अमेरिका अपने मित्र नाटो देशों- इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान व ऑस्ट्रेलिया आदि को विश्वास में लेकर अपने इजरायल व यूक्रेन जैसे सहयोगियों के पक्ष निर्णायक फैसला करता रहता है, वहीं रूस-चीन-उत्तर कोरिया जैसे सीटो देश ऐन मौके पर सीरिया व ईरान जैसे अपने सहयोगियों पर आए आफत को दूर करने के लिए त्वरित एकजुटता प्रदर्शित करने और अपेक्षित सैन्य पलटवार शुरू करने के मुद्दे पर घबरा जाते हैं।
दूसरा, चीन-रूस-उत्तर कोरिया की कथनी व करनी में बहुत अंतर पाया जाता है। वहीं ये आपसी दांवपेंच में भी सटीक निर्णय नहीं ले पाते हैं। यही वजह है कि कभी अफगानिस्तान, कभी सीरिया और कभी ईरान जैसे मुल्क इनके हाथों से निकल जाते हैं और वहां पर पुनः अमेरिका का दबदबा बढ़ जाता है। अपने देखा होगा कि जब इजरायल-ईरान युद्ध में मिसाइल हमलों में ईरान ने इजरायल पर बढ़त ले ली और इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम में भी सुराग लगा दिया तो अचानक अमेरिका उसके पक्ष में उतरा और ईरान के फोर्दो, नतांज और इस्फहान स्थित न्यूकलियर साइटों को निशाना बना लिया।
तीसरा, इस अमेरिकी हमले का एक खास मकसद था जिसे उसके अलावा कोई अन्य नाटो देश इसे कदापि पूरा नहीं कर सकता था। उल्लेखनीय है कि फोर्दो न्यूकलियर साइट इसमें बेहद महत्वपूर्ण है जो तेहरान के दक्षिण में एक पहाड़ के नीचे स्थित है और बेहद गहराई पर बना है। इसे इंग्लिश चैनल टनल से भी गहरा माना जाता है। यही वजह है कि अमेरिका ने अपने हमले में जीबीयू (GBU)-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर (MOP) नामक भारी बम का इस्तेमाल किया जो 13,000 किलोग्राम वजनी होता है और 61 मीटर मिट्टी या 18 मीटर कंक्रीट को भेद सकता है, लेकिन इससे इस केंद्र को कितना नुकसान पहुंचा, कुछ समय बाद पता चलेगा जब सही आंकड़े व फोटो ईरान सरकार द्वारा जारी किए जाएंगे।
चतुर्थ, अमेरिकी हमले के प्रभाव की पूरी जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि निश्चित तौर पर ईरान को पिछले कई सालों से अपने न्यूकलियर रिसर्च सेंटरों पर हमले की आशंका थी जो इस बार पूरी हो गई। इसलिए ईऱान ने अपनी गुप्त रणनीति के अनुरूप कोई वैकल्पिक व्यवस्था जरूर की होगी जैसा कि एक अन्य इस्लामिक देश पाकिस्तान ने अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम के अधीन पाकिस्तानी हुक्मरानों के इशारे पर कर रखा है। यही वजह है कि खुद ईऱानी अधिकारियों ने दावा किया है कि न्यूकलियर साइटों को पहले ही खाली कर दिया गया था और जरूरी परमाणु रिसर्च उपकरण को हटा दिया गया था। यदि ऐसा है तो यह अमेरिका-इजरायल के लिए किसी दुःस्वप्न जैसा है।
पंचम, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि परमाणु साइटें पूरी तरह से नष्ट कर दी गई हैं लेकिन कई पूर्व अमेरिकी राजनयिकों का मानना है कि यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगा कि इरानी न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर पूरी तरह से नष्ट या खत्म हो गए हैं। हो सकता है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने इजरायल को संतुष्ट करने के लिए या महज दिखावे के लिए न्यूक्लियर रिसर्च सेंटरों पर हमला किया हो, क्योंकि ट्रंप व्यापारी है, व्यापार उनकी प्राथमिकता है, और अमेरिका को पूर्ण युद्ध में वो शायद नहीं शामिल करना चाहते है। यही वजह है कि ईरान प्रशासन को उन्होंने पहले ही आगाह कर दिया था कि वह उनके परमाणु ठिकाने पर हमला करेंगे लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति पर इजरायल पब्लिक अफेयर्स कमेटी औऱ यहूदी काउंसिल फॉर पब्लिक अफेर्यस का दबाव है, जो रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों को फंड करती है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था वहां के 2 प्रतिशत यहूदियों के इशारे पर ही कुलांचें मारती फिरती है।
छठा, वैसे तो ईरान को न्यूक्लियर रिसर्च सेंटरों पर हमले की संभावना लंबे समय से व्यक्त की जा रही थी, इसलिए जरूरी न्यूक्लियर रिसर्च उपकरणों को बचाने का वैकल्पिक इंतजाम ईऱान ने पहले ही कर रखा होगा। बता दें कि ईऱान की तरह पाकिस्तान भी अपने न्यूक्लियर सेंटर्स पर हमले की आशंका व्यक्त करता रहा है। पाकिस्तान का स्ट्रैटजिक प्लान डिविजन जो नेशनल कमांड अथॉरिटी का सचिवालय है, ने अपने जरूरी न्यूक्लियर रिसर्च उपकरणों के लिए लगभग 15 गोपनीय स्थान बना रखे हैं जहां समय-समय पर इसे रखा जाता है।
सातवां, यूँ तो पाकिस्तान ने भी लगातार यही आशंका प्रकट की है कि अमेरिका, भारत या इज़राइल उसकी परमाणु क्षमताओं को नष्ट करने की कोशिश कर सकते हैं। बता दें कि 1980 और 1990 के दशक में पाकिस्तान ने कई बार अपने परमाणु रिसर्च केंद्रों पर हमले की संभावना जतायी जबकि मौजूदा दौर में ईरान भी वैसी ही मनोदशा से गुजर रहा है। गौरतलब है कि 1982 में इज़राइल द्वारा इराक के ओसिराक रिएक्टर पर हमले के बाद, पाकिस्तान को आशंका हुई कि भारत भी पाकिस्तान के परमाणु केंद्रों पर हमला कर सकता है। पाकिस्तान के तत्कालीन शासक जनरल जिया उल हक ने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि भारत पाकिस्तान पर ओसिराक रिएक्टर पर हुए इजरायली अटैक की तरह हमला कर सकता है। उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी।
आठवां, वर्ष 1984 में पाकिस्तानी अधिकारियों ने कनैडियन और यूरोपियन इंटेजिलेंस एजेंसियों की रिपोर्ट के हवाले से यह आशंका व्यक्त की थी कि इज़राइल पाकिस्तान के काहुटा न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर पर हमले की योजना बना रहा है। इसके लिए इजरायल, भारत और तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) की मदद ले सकता है। वहीं, 1985 में फिर से पाकिस्तान ने काहुटा पर भारत द्वारा संभावित हमले की आशंका जताई। उस समय भी जिया पाकिस्तान के शासक थे जबकि मिस्टर क्लीन के नाम से मशहूर राजीव गाँधी भारत के प्रधानमंत्री थे। वहीं, साल 1998 में भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया तो पाकिस्तान ने फिर कहा कि उसके परमाणु केंद्रों पर हमला हो सकता है। उस समय नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे और अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे।
नवम, ईरान पर हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्र को संबोधित किया और ईरान और इजरायल के युद्ध पर खुलकर बात की। इस दौरान ट्रंप ने ईरान को दो टूक शब्दों में चेतावनी दी है कि अगर ईरान में शांति नहीं हुई तो फिर विनाश तय है। इससे साफ है कि गत 13 जून 2025 को शुरू हुए इजरायल और ईरान के तनाव में अब अमेरिका की एंट्री हो गई है क्योंकि अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बम बसराए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने व्यथा पूर्वक बताया कि ईरान पिछले 40 साल से अमेरिका के खिलाफ है और कई अमेरिकी इस नफरत की भेंट चढ़ चुके हैं। अब यह और नहीं होगा। ईरान की वजह से हजारों अमेरिकियों और इजरायली नागरिकों की जान गई है मगर बस, अब यह और नहीं होगा। ईरान पर अमेरिका के हमले का उद्देश्य परमाणु खतरे को हमेशा के लिए खत्म करना था। इसीलिए अमेरिका ने ईरान की परमाणु साइट्स को निशाना बनाया है।
दशम, ट्रंप ने साफ शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर ईरान में शांति स्थापित नहीं हुई तो फिर विनाश होगा। ईरान आगे और भी हमलों के लिए तैयार रहे। भविष्य के हमले इससे कहीं ज्यादा भयानक होंगे। ट्रंप ने आगे कहा कि बीती रात अमेरिका ने ईरान के जिन परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया था, वो बेहद कठिन थे मगर अमेरिकी सेना ने यह कर दिखाया। अब तेहरान का सबसे महत्वपूर्ण परमाणु प्रोग्राम साइट फोर्डो तबाह हो चुकी है।
ग्यारह, ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन (AEOI) ने भी फोर्डो, नतांज और इस्फहान परमाणु ठिकानों पर हमलों की पुष्टि की है। AEOI का कहना है कि अमेरिका की यह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। इसमें अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी (IAEA) ने भी अमेरिका का साथ दिया है। वैश्विक समुदाय को इस हमले की कड़ी निंदा करनी चाहिए। ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखेगा, यह किसी भी कीमत पर नहीं रुकेगा।
बारह, तेहरान में शरियातमदारी के हवाले से कहा गया है, “अब बिना देरी किए कार्रवाई करने की हमारी बारी है। पहले कदम के तौर पर हमें बहरीन में अमेरिकी नौसेना के बेड़े पर मिसाइल हमला करना चाहिए और साथ ही अमेरिकी, ब्रिटिश, जर्मन और फ्रांसीसी जहाजों के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करना चाहिए।” बता दें कि होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच एक जलडमरूमध्य है। यह फारस की खाड़ी से खुले समुद्र तक एकमात्र समुद्री मार्ग प्रदान करता है और दुनिया के सबसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोक पॉइंट्स में से एक है। यदि ऐसा हुआ तो यह पूरी दुनिया में ऊर्जा संकट पैदा कर देगा।
तेरह, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी अमेरिका के इस कदम को साहसिक करार दिया है। उन्होंने कहा कि, मैं और ट्रंप यही मानते हैं कि शक्ति से ही शांति स्थापित होती है। पहले शक्ति दिखाई जाती है और फिर शांति होती है। अमेरिका ने ईरान पर पूरी ताकत के साथ कार्रवाई की है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने ईरान के तीन सबसे महत्वपूर्ण परमाणु स्थल फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर कुल 6 जीबीयू (GBU)-57 बंकर बस्टर बम गिराए हैं। बी (B)-2 स्टील्थ बॉम्बर्स से इन महा विशालकाय बमों को गिराए हैं और उन्हें नेस्तनाबूद कर दिया है।
चौदह, सवाल है कि अगर अमेरिका खुलकर युद्ध में कूदता है तो क्या ईरान की सरकार का युद्ध में टिकना मुश्किल हो जाएगा। तो जवाब होगा- हां। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अमेरिका विजेता होगा। बल्कि अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, लीबिया, सीरिया, हर जगह पश्चिमी हस्तक्षेप के बाद जैसे स्थिति बदतर हुई और कट्टरपंथी ताक़तें सत्ता में आ गईं और आतंकवाद बढ़ा। लिहाजा, ईरान की हार से पश्चिमी एशिया में फिर से वही चक्र शुरू हो सकता है, शरणार्थी संकट, अस्थिरता और आतंकवाद का बढ़ना।
पंद्रह, ईरानी दूतावास ने कहा है कि वो इस हमले से रूकने वाला नहीं है। यह हमला उस समय हुआ जब कूटनीतिक बातचीत चल रही थी। वह इजराइल जैसे आक्रामक देश का साथ देकर एक खतरनाक जंग की शुरुआत कर रहा है। ईरान ने साफ कहा कि वह अपने देश की सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी ताकत से जवाब देगा। ईरान ने अमेरिका को एक गैर-जिम्मेदार देश बताया जो किसी भी नियम का पालन नहीं करता।
सोलह, पश्चिमी एशिया व यूरोपीय देशों का मानना है कि अगर इसराइल और ईरान के बीच संघर्ष और बढ़ा, तो इसका असर केवल क्षेत्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि यह पूरी दुनिया को प्रभावित करेगा। इसलिए अब हर किसी की नज़र इस बात पर टिकी है कि अमेरिका के ईरान पर हमलों के बाद इस्लामिक देशों का रुख़ क्या होगा? जबकि ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था ने एक तीखा और भावनात्मक बयान जारी किया है। भारत स्थित ईरानी दूतावास ने इस बयान को जारी करते हुए अमेरिका की सख्त शब्दों में निंदा की गई है और फिर से परमाणु कार्यक्रम शुरू करने की कसम खाई गई है।
सत्रह, ईरानी बयान में अमेरिका के इस हमले को ‘जंगल का कानून’ बताया गया है। इसके अलावा ईरान ने IAEA की चुप्पी की निंदा करते हुए देश के ‘परमाणु शहीदों’ के नाम पर शपथ ली है और फिर से अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखने की कसम खाई है। परमाणु सुविधाओं पर हमले के बाद ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन की तरफ से जारी बयान में अमेरिका की निंदा की गई है। ईरानी दूतावास ने अपने बयान में कहा है कि “हाल के दिनों में जायोनी दुश्मन द्वारा किए गए क्रूर हमलों के बाद, आज सुबह देश के कई परमाणु स्थलों पर बर्बर हमला किया गया, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों, विशेष रूप से एनपीटी का उल्लंघन है।
अठारह, ईरान ने दो टूक कहा है कि अमेरिकी कार्रवाई, जो अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करती है, वो दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की उदासीनता, और यहां तक कि मिलीभगत से हुई है। अमेरिकी दुश्मन ने वर्चुअल सैटेलाइट तस्वीरों के माध्यम से और अपने राष्ट्रपति की घोषणा के द्वारा साइटों पर हमलों की जिम्मेदारी ली है जो सुरक्षा समझौते और एनपीटी के मुताबिक लगातार IAEA निगरानी के अधीन हैं। यह उम्मीद की जाती है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय “जंगल के नियमों” में निहित इस अराजकता की निंदा करेगा और ईरान को उसके वैध अधिकारों का दावा करने में समर्थन देगा।”
उन्नीस, ईरानी दूतावास ने कहा है कि “ईरान का परमाणु ऊर्जा संगठन ईरान के महान राष्ट्र को आश्वस्त करता है कि अपने दुश्मनों की दुर्भावनापूर्ण साजिशों के बावजूद, हजारों क्रांतिकारी और प्रेरित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के समर्पण के साथ, यह परमाणु शहीदों के खून पर बने इस राष्ट्रीय उद्योग के डेवलपमेंट को रुकने नहीं देगा। यह संगठन कानूनी कार्रवाइयों सहित महान ईरानी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा रहा है।” ईरान ने यह आरोप लगाया कि यह हमला उन ठिकानों पर किया गया है जो पहले से ही अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी में थे और इसलिए यह कदम पूरी तरह अवैध और उकसावे की कार्यवाही है।
बीस, निष्कर्षत:, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका के इस कदम को साहसिक करार दिया और कहा कि, “मैं और ट्रंप यही मानते हैं कि शक्ति से ही शांति स्थापित होती है। पहले शक्ति दिखाई जाती है और फिर शांति होती है। अमेरिका ने ईरान पर पूरी ताकत के साथ कार्रवाई की है। नेतन्याहू ने ट्रम्प को स्वतंत्र दुनिया का साहसी नेता और इजराइल का सबसे बड़ा दोस्त बताया।” उन्होंने कहा कि, ‘‘पूरे यहूदी समुदाय और इजराइली नागरिकों की ओर से मैं उनका आभार प्रकट करता हूं।’’
कमलेश पांडेय