अवसर लेकर आई है ‘हर मन’ की जीत ! यह जीत बदल सकती है लड़कियों की दुनिया !
डॉ घनश्याम बादल
2 नवंबर 2025 की तारीख की रोशन रात भारतीय खेल जगत की एक ऐतिहासिक एवं स्वर्णिम घटना के रूप में याद की जाएगी जो भारत और भारत की लड़कियों तथा महिला खिलाड़ियों के लिए एक स्वर्णिम सुबह लेकर आई।
यदि इस जीत को हमने देश के महिला जगत एवं खेल जगत के लिए एक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर लिया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह जीत यह एक ‘टर्निंग प्वाइंट’ सिद्ध होगी ।
भारत की महिला क्रिकेट खिलाड़ियों ने अफ्रीका की मजबूत क्रिकेट टीम को 52 रन के भारी अंतर से हराकर आईसीसी महिला विश्व क्रिकेट कप पर ही कब्जा नहीं किया अपितु यह सिद्ध किया है कि अब भारत की लड़कियां दुनिया के किसी हिस्से की लड़कियों से कम नहीं हैं।
भारत की महिला क्रिकेट टीम ने आईसीसी महिला वर्ल्ड कप जीतकर न केवल खेल के मैदान में बल्कि देश के हर घर में गर्व, प्रेरणा और आत्मविश्वास का संचार किया है। यह विजय भारतीय खेल इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है—एक ऐसा क्षण जिसने यह साबित कर दिया कि अब महिला खिलाड़ी किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। यह जीत केवल एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि भारतीय नारी शक्ति की नई परिभाषा है।
पूरे टूर्नामेंट में भारतीय महिला टीम ने अपने खेल से मंत्रमुग्ध किया। कप्तान हरमनप्रीत कौर के नेतृत्व में टीम ने हर चुनौती, हार-जीत और उतार चढ़ाव का डटकर सामना किया और लीग चरण से लेकर फाइनल तक अपनी रणनीति, अनुशासन और टीम भावना के बल पर देश को विश्व चैंपियन बनाया।
इस विश्व कप के फाइनल में जीत का परचम लहराने वाली इन लड़कियों का सामना हार से भी हुआ और वह लगातार तीन मैच ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड तथा दक्षिण अफ्रीका से हारी जब वह हार रही थीं तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यें शेरनिया पलट कर ऐसा वार भी कर सकती हैं मगर 1983 की कपिल देव की टीम की तरह ही उन्होंने सिद्ध किया कि उनमें जोश जज्बे और देश के लिए कुछ करने के माद्दे की कमी नहीं है। ।
अवसर को कैसे बनाया जाए, इसकी मिसाल दी युवा बल्लेबाज शेफाली वर्मा ने. उनकी आक्रामक बल्लेबाजी, अनुभवी स्मृति मंधाना की सधी हुई पारी, और हरमनप्रीत कौर की कप्तानी, मिताली का कैच, रेणुका सिंह ठाकुर की गेंदबाजी का जिक्र तो होगा ही, सबसे ज्यादा जिक्र होगा इन खिलाड़ियों की टीम स्पिरिट और खेल भावना के नायाब प्रदर्शन का।
सेमिफाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीम को हराना ऐतिहासिक था। तो फाइनल में 52 रन की बड़ी जीत किस टीम के जज्बे और संकल्प को रेखांकित करती है। इस मैच में भारतीय टीम ने न केवल तकनीकी श्रेष्ठता बल्कि मानसिक दृढ़ता का परिचय दिया। हर खिलाड़ी ने टीम की सफलता में योगदान दिया—चाहे वह फील्डिंग में चपलता हो या आखिरी ओवरों में दबाव झेलने की क्षमता।
इस विजय का सबसे बड़ा कारण टीम स्पिरिट और आपसी विश्वास था। हर खिलाड़ी ने अपनी भूमिका को बखूबी समझा और व्यक्तिगत उपलब्धियों से अधिक टीम की जीत को प्राथमिकता दी।
इस टीम के कोच और देश के अंदरूनी क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर कहे जाने वाले अनमोल मजूमदार की कभी नीली जर्सी ना पहन पाने की टीस भी इन लड़कियों ने खत्म कर दी। उनकी कोचिंग ,कोचिंग स्टाफ और सपोर्ट टीम की भी खिलाड़ियों को मानसिक रूप से तैयार करने में अहम भूमिका रही।
टीम की यह एकजुटता और सामूहिक प्रयास उस परंपरा का प्रतीक है जिसमें सामूहिक सफलता को सर्वोच्च माना जाता है। महिला खिलाड़ियों ने यह दिखा दिया कि सफलता केवल व्यक्तिगत प्रतिभा से नहीं बल्कि सामूहिक समर्पण और एक-दूसरे पर भरोसे से हासिल होती है।
लेकिन यह मान लेना कि इस विजय के पीछे केवल वर्तमान टीम का ही रोल है, यह भी ठीक नहीं होगा। महिला क्रिकेट को आगे बढ़ाने में शांता रंगास्वामी, डायना एडुलजी, मिताली राज जैसी कितनी ही उन खिलाड़ियों का भी योगदान है जिन्होंने न के बराबर सुविधाओं उपेक्षा के बीच महिला क्रिकेट को न केवल जिंदा रखा बल्कि आगे भी बढ़ाया।
इस ऐतिहासिक जीत ने भारत की लाखों लड़कियों के दिलों में एक नया सपना जगाया है। जहाँ कभी क्रिकेट को पुरुषों का खेल माना जाता था, आज के बाद महिला क्रिकेट को भी बराबर का दर्जा दिया जाना चाहिए. इसमें दो राय नहीं कि सरकार और समाज तथा प्रमोटर पैसे की बारिश कर सकते हैं लेकिन सबसे ज्यादा जरूरत है। ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ की तर्ज पर ही ‘बेटी खिलाओ, बेटी बढ़ाओ’ जैसे अभियान यथार्थ के धरातल पर चलाए जाने चाहिएं।
बेशक, यदि सब ठीक रहे तो यह जीत सामाजिक मानसिकता में बड़ा परिवर्तन लाएगी। अब माता-पिता अपनी बेटियों को खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। महिला खेल अकादमियों की स्थापना व वृद्धि के साथ वहां की दशा एवं दिशा दोनों में सुधार की गति को बढ़ाना होगा। उम्मीद करनी चाहिए कि यह जीत इन प्रयासों को और गति देगी।
विश्व चैंपियन बनने के साथ ही भारतीय महिला क्रिकेट एक नए युग में प्रवेश कर चुका है। यह विजय न केवल खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को बढ़ाएगी बल्कि महिला क्रिकेट के बुनियादी ढांचे को भी सुदृढ़ करेगी और विश्व कप की जीत से इसकी लोकप्रियता और निवेश दोनों में वृद्धि होगी, ऐसी उम्मीद करना अनुचित नहीं होगा। नए स्पॉन्सर, बेहतर प्रशिक्षण सुविधाएं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक मैचों की संभावना आने वाले वर्षों में भारत को विश्व की सबसे मजबूत महिला क्रिकेट संरचनाओं में से एक बना सकते हैं ।
महिला क्रिकेट की इस अभूतपूर्व सफलता को बनाए रखने के लिए सरकार और समाज दोनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार को चाहिए कि वह महिला खिलाड़ियों को उचित आर्थिक सहायता, विश्वस्तरीय प्रशिक्षण केंद्र और खेल उपकरण उपलब्ध कराए। ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में महिला क्रिकेट अकादमियों की स्थापना से नई प्रतिभाओं को मौका मिलेगा। साथ ही, खिलाड़ियों को स्पोर्ट्स कोटा के तहत नौकरियों और प्रोत्साहनों से सम्मानित करना चाहिए ताकि वे आर्थिक रूप से सुरक्षित रहते हुए अपने खेल पर पूरा ध्यान दे सकें।
मीडिया और निजी क्षेत्र को भी महिला क्रिकेट को उसी स्तर की पहचान देनी चाहिए जैसी पुरुष क्रिकेट को दी जाती हैं।
यह ट्रॉफी भारत के लिए केवल एक खेल उपलब्धि नहीं बल्कि सामाजिक सशक्तिकरण का प्रतीक है। इस जीत ने यह संदेश दिया है कि यदि अवसर मिले तो भारतीय महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में विश्व विजेता बन सकती हैं।
मगर याद यह भी रखना होगा की जीत को परंपरा कायम रखना भी एक बड़ी जिम्मेदारी होगी। इसलिए इससे खुश होने के साथ-साथ इसे बरकरार रखने के लिए कड़े परिश्रम की भी ज़रूरत होगी।
डॉ घनश्याम बादल