ruguruतर्ज: एक तेरा साथ हमको दो जहाँ से _
दोहा: गुरु बिन भव निधि तरहिं न कोई,
जो विरंच शंकर सम होई।
मु: थाम लो गुरुवर हाथ, आसरा तुम्हारा है।
एक साधक ने पुकारा है, तेरा ही सहारा है।।
थाम लो गुरुवर हाथ __
अंत १: दे दिया है हाथ, अब तेरे हाथों में हमने अपना।
तुमने ही बतलाया हमको ये जग सब है सपना।।
मि : मिथ्या ही लगता -२ संसार पसारा है।
थाम लो गुरुवर हाथ_
अंत २: सत्संग सुनाया है तुमने हमको ऐसा।
प्यास नहीं भुजती है मन की, लागे अमृत सा।।
मि: सुनाने से मिटाता -२, सब अज्ञान हमारा है।
थाम लो गुरुवर हाथ_
अंत ३: मिल गया है ज्ञान उनको, जो सत्संग में जाते हैं।
वो न भूलें तुमको कभी और गुण तेरे गाते हैं।।
मि: तेरी प्यारी सूरत को -२, हुमन जबसे निहारा है।
थाम लो गुरुवर हाथ__
अंत ४: योग साधना अपनाकर वह तन मन शुद्ध करें।
गुरु मंत्र नित्य जप कर सब ध्यान धरें।
मि: तेरे द्वारा ही हमने -२ ,जीवन ये सुधारा है।।
तेरी आज्ञा में चल कर जीवन को सुधारा है
थाम लो गुरुवर हाथ,
अंत ५: नन्दो भैया पर गुरूवर, ऐसी कृपा करो।
हम सब साधकों के अवगुण साईं चित्त न धरो।
मि: हम सब को करना है -२, प्रभु का दीदार है
थाम लो गुरुवर हाथ_