क्या कनाडा में भारतीय समुदाय ने खालिस्तानियों से मुंह फेर लिया है!

रामस्वरूप रावतसरे

कनाडा के संघीय चुनाव में एक बार फिर से जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी ने जीत हासिल कर ली है। मार्क कार्नी, जिन्होंने जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद कनाडा के शासन को संभाला था, वो लिबरल्स की जीत के बाद फिर से देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। हालांकि जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में लिबरल पार्टी ने जनता का विश्वास खो दिया था लेकिन ट्रूडो के इस्तीफे और विपक्षी नेता पियरे पोइलिवर के बेहद खराब कैंपेन की वजह से मार्क कार्नी ने एक हारे हुए मैच को जीत में तब्दील कर दिया। लिबरल पार्टी ने डोनाल्ड ट्रंप के कनाडा विरोधी बयानबाजी को देश की संप्रभुता, अखंडता और राष्ट्रवाद से जोड़ दिया था, जिसका उन्हें जबरदस्त फायदा मिला। लिहाजा सवाल उठने लगे हैं कि जबकि कनाडा में एक बार फिर से लिबरल पार्टी की सरकार बनी है, क्या भारत के साथ संबंध सुधर पाएंगे?

    मार्क कार्नी ने पिछले दिनों भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों पर कहा था कि ’’मैं संकट के समय सबसे उपयोगी होता हूं।’’ उनके इस बयान को इस तरह से देखा गया है कि उनकी जीत नई दिल्ली और ओटावा के बीच द्विपक्षीय संबंधों में संभावित सुधार ला सकती है जो पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में काफी हद तक खराब हो गए थे। अपने चुनावी कैम्पेन के दौरान मार्क कार्नी ने कई मंदिरों का दौरा किया था और भारतीय समुदाय से जुड़ने की इच्छा जताई थी।

मार्क कार्नी ने इलेक्शन कैम्पेन के दौरान कहा था कि ’’कनाडा जो करने की कोशिश कर रहा है, वह समान विचारधारा वाले देशों के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों में विविधता लाना है और भारत के साथ संबंधों को फिर से बनाने के अवसर हैं। उस वाणिज्यिक संबंध के इर्द-गिर्द मूल्यों की साझा भावना होनी चाहिए और अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो मैं इसे बनाने के अवसर की तरह देखता।’’ मार्क कार्नी ने चुनाव अभियान के दौरान भारत को एक महत्वपूर्ण देश बताया था। इसके अलावा उन्होंने संकेत दिया था कि उनकी मंशा भारत के साथ संबंधों को सुधारने की है, खासकर कारोबारी संबंध को, क्योंकि कनाडा डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ युद्ध का नुकसान उठा रहा है। इसके अलावा मार्क कार्नी ने चुनावी कैम्पेन में अमेरिका के ऊपर से अपनी निर्भरता कम करने की बात कही थी, ऐसे में कनाडा के पास एक बड़े बाजार के तौर पर भारत ही बचता है, क्योंकि चीन के साथ उसके पहले से ही खराब संबंध हैं।

मार्क कार्नी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और कनाडा के बीच सीईपीए पर फिर से बातचीत शुरू होने की संभावना बढ़ी है। ये एक ट्रेड डील है, जिसे ट्रूडो ने भारत से विवाद के बाद रोक दिया था। जून 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में एक गुरुद्वारे के बाहर कनाडा के नागरिक और खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद भारत और कनाडा के संबंध बिगड़ने लगे थे। जस्टिन ट्रूडो ने हत्या का आरोप भारतीय एजेंट्स पर लगाए थे जिसके बाद भारत-कनाडा संबंध 2023 में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे। नई दिल्ली ने लंबे समय से ओटावा पर कनाडा के सिख प्रवासियों में चरमपंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। जस्टिन ट्रूडो की सरकार में खालिस्तानी चरमपंथियों का वर्चस्व था।

   इसके अलावा जगमीत सिंह, जो खालिस्तान समर्थक हैं, उनकी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन से जस्टिन ट्रूडो सरकार चला रहे थे, लिहाजा जगमीत सिंह को भारत कनाडा संबंधों के खराब होने की सबसे बड़ी वजह माना गया लेकिन इस बार जगमीत सिंह बुरी तरह से चुनाव हार गया है। वो तीसरे स्थान पर रहा है, जो खालिस्तानियों के लिए बहुत बड़ा झटका है। चुनाव कैम्पेन के दौरान भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक आदित्य झा, जो एक कारोबारी हैं और जिन्हें कनाडा का सर्वाच्च सम्मान ऑर्डर ऑफ कनाडा मिल चुका है, उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि ’’कनाडा के भारतीय समुदाय ने इस बार ऐसे तत्वों (खालिस्तानी) को हराने के लिए मतदान करने की योजना बनाई है और 30 से 35 सीटों को टारगेट किया गया है।’’ उन्होंने कहा था कि, ’’हिंदू समुदाय लिबरल पार्टी को नहीं बल्कि खालिस्तानियों को हराकर पार्टी के ऊपर से खालिस्तानियों के प्रभाव को खत्म करना चाहती है।’’

जगमीत सिंह का चुनाव हारना और उसकी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को काफी कम वोट मिलने का मतलब है कि भारतीय समुदाय अपने मकसद में कामयाब रहा है। न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को 2025 के संघीय चुनाव में सिर्फ 7 सीटें मिली हैं जबकि पिछले इलेक्शन (2021) में उसे 24 सीटें मिली थीं। कनाडा में रहने वाले भारतीय समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि भारत विरोधी स्टैंड की वजह से भारतीय समुदाय, खासकर पंजाब के भारत समर्थक सिखों ने न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट नहीं दिया है। न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का पूरा वोट बैंक तहस नहस हो गया है यानि संसद में उसका प्रभाव अब काफी कम हो गया है, लिहाजा नई सरकार के ऊपर खालिस्तानियों का प्रेशर नहीं रहेगा। जानकारों की माने तो कनाडा और भारत में मध्य फिर से सौहार्दपूर्ण संबंध बनेगें जिसका लाभ दोंनों देशों को होगा।

रामस्वरूप रावतसरे

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