बाबा रामदेव का लोककारी हठयोग

राजीव रंजन प्रसाद

भारत पर बाबा रामदेव की असीम कृपा है। देश की जनता उनकी अनन्य भक्त है। दैनिक योग-प्रक्रिया के अनुपालन से बाबा रामदेव ने गरीबों को असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाई है। आधे दशक से भी कम समय में भारत रोगमुक्त और लाइलाज बीमारियों के प्रकोप से निजात पा चुका है। ऐसा औरों का नहीं बाबा रामदेव का खुद ही मानना है। अपनी संपति को लोक-संपति घोषित कर चुके बाबा रामदेव पूँजी के अनावश्यक एकत्रण के सख्त खिलाफ हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ हालिया अभियान इसी का प्रमाण है। वे कहते हैं-‘विदेश ले जाए गए काले धन को राष्ट्रीय सम्पति घोषित किया जाना चाहिए और काला धन रखने को राजद्रोह के समान समझा जाना चाहिए।’

योगगुरु का उसूल है कि जो देने योग्य है उससे अधिकतम वसूल करो। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे कारोबारी हैं या कि योग-साधना को ‘व्यापार’ की तरह ‘हैण्डल’ करते हैं; जैसा कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने ताजा बयान में कहा है। बड़बोलेपन के आदी कांग्रेस महासचिव यह क्यों भूल जाते हैं कि अमीर लोग मुफ्त-सेवा या चिकित्सा के बूते कभी ठीक ही नहीं हो सकते हैं। धनाढ्य वर्ग के लोग शुगर फ्री एक कप चाय के लिए जबतक 100 रुपए की तुल्य कीमत न चुकता कर दें; उनके ‘पसर्नल इगो’ को संतुष्टि नहीं मिलती है। ‘फ्री ट्रिटमेंट’ से तो उनकी गरिमा को ही ठेस पहुँचता है।

लिहाजा, बाबा रामदेव ने इसका सर्वमान्य हल यह निकाला है कि आगे की पंक्ति में बैठने वाले 50 हजार रुपए दें तो उसके पीछे बैठने वाले 30 हजार और एकदम आखिर में बैठ समान रूप से लाभान्वित हो रहे व्यक्ति सिर्फ एक हजार रुपए देकर अपनी तमाम बीमारियों से छुटकारा पा जाएँ।

दरअसल, बाबा रामदेव अपने सर्ववर्गसमभाव के जिस नीति को बढ़ावा दे रहे हैं, उसे देशवासियों द्वारा हाथोंहाथ लिए जाने का सीधा अर्थ है कि देश में उनके चहेते खूब हैं। दूसरी बात यह है कि उनकी लोकप्रियता का कारण स्वाभाव से मुखर होना है। वे पद-रुतबा और सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं देखते हैं; बल्कि जन-स्वाभिमान के लिए आला मंत्री-हुक्मरानों की भी आलोचना करने से नहीं चूकते हैं। बाबा रामदेव का गणवेष भी अनुपम है। वह वस्त्र का उतना ही टुकड़ा ग्रहण करते हैं जिससे समाज की मर्यादा बनी रहे। बाद बाकी उन्हें किसी तरह के धन-वैभव के प्रति कोई मोह नहीं है। जनसेवा में अहर्निश जुटे बाबा रामदेव का उदात्त भाव देशवासियों के लिए अनूठा आदर्श है जिसके पास होने को तो करोड़ों-अरबों हैं पर उसमें उनका मालिकाना हक शून्य है।

पतांजलि योगपीठ को वह देश की सामूहिक संपति कहते हैं। उनके कार्यों की सुभाषितानी से देश का मंगल अपरिहार्य है। उनके संसर्ग में आए लोग मनुष्यता के अप्रतिम मूरत हैं। संवेदना की खान हैं। उनके भीतर मानवीयता के जो लक्षण विद्यमान है उससे पूरा भारत दीप्त हो रहा है। ये ऐसी ईमानदार टोली है जिसमें बेईमानी का शतांश कण भी नहीं देखा जा सकता है। ये करोड़ो-करोड़ लोग मानव भीतर नवमानव(इसको थोड़ा ठीक-ठीक परिभाषित किए जाने की जरूरत है) को गढ़ रहे हैं। लोगों को लोक-परम्परा और संस्कृति से जोड़ रहे हैं। वे ‘स्व’ के स्वार्थी भाव को त्यागने की कला सिखा रहे हैं।

आमोख़ास सभी बाबा के मुरीद है। वे चर्चा में जरूर रहते हैं, लेकिन आत्मप्रचार उन्हें सुहाता नहीं है। आज देश योगगुरु को प्राणायाम कर रहा है। राष्ट्र-राज्य, समाज, संस्कृति, राजनीति, लोकतंत्र एवं संप्रभुता के चितेरे बाबा रामदेव का कारवाँ थम या रूक जाए, इसके दूर-दूर तक कोई आसार नहीं है। वे देश में आमूल बदलाव चाहते हैं। और अब यह हो कर ही रहेगा।

एयरपोर्ट पर आगवानी में आये कांग्रेस के वरिष्ठतम मंत्री प्रणब मुखर्जी को बाबा रामदेव ने बैरंग वापिस कर अपना नेक-इरादा जतला दिया है। दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव ‘याचना नहीं अब रण होगा’ वाले मुड में हैं। हठयोग के मर्मज्ञ बाबा रामदेव अनशन-अभियान में कबतक डटे रहेंगे, यह तो कोई नहीं बता सकता है; लेकिन एक बात तो तय है कि बाबा रामदेव अपने इस अभियान को सरकारी बाज़ार नहीं बनने देंगे जहाँ लोक-कार्य और लोक-अभियान को भी मोलभाव के तराजू पर तौलने का ‘ट्रेण्ड’ विकसित हो चुका है।

अस्तु, वैसे यह मेरी व्यक्तिगत पत्रकारीय उम्मीद कव सीमाकंन है जिसके अलख-नियंता बाबा रामदेव जून महीने के प्रथम पखवाड़े से देशव्यापी आन्दोलन और मुहिम खड़ा करने वाले हैं। जिनके साथ में अण्णा हजारे हैं तो आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर भी हैं। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने बाबा के इस आन्दोलन को अपना समर्थन दिया है। और भी अनगिनत लोग हैं जो देश को सच्चे मन से आगे ले जाना चाहते हैं। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के ‘विजन-2020’ को साकार करना चाहते हैं। शायद ‘मिशन-2012’ वाले राहुल गाँधी भी इस मुहिम में शरीक हों क्योंकि अभी तक ऐसा कोई भी मौका नहीं आया है जहाँ राहुल गाँधी मौका-ए-वारदात पर प्रकट न हों। किसानों और आदिवासियों के हितचिन्तक राहुल गाँधी का बाबा रामदेव के आन्दोलन में शामिल होना कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। देश की युवा-पीढ़ी जिसे हाल के दिनों में राहुल गाँधी ने अपने ऐतिहासिक दौरों, भाषणों एवं क्रियाकलापों से वैकल्पिक सोच एवं राजनीति की भूमि तैयार करने हेतु जागरूक(?) किया है; वह इस अभियान में भला क्यों नहीं शामिल होंगे? आमीन!

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